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26 साल के सफर की कहानी: 1995 में फोर्ड और 1996 में भारत आई हुंडई, लंबी महंगी कारों से फोर्ड को हुआ घाटा; सस्ती लग्जरी कारों से हुंडई बनी नंबर-2 कंपनी

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नई दिल्ली34 मिनट पहले

बात 1990 के दशक की है। भारत में ये वो दौर था जब कारों की डिमांड बढ़ रही थी। मारुति सुजुकी अपनी पकड़ मजबूत कर चुकी थी। अब कई विदेशी कंपनियां भी भारत में फोर व्हीलर बिजनेस में एंट्री करने तैयार थीं। 1995 में अमेरिकी कंपनी फोर्ड भारत आई। उसने महिंद्रा एंड महिंद्रा के साथ पार्टनरशिप की थी। ठीक एक साल बाद यानी 1996 में कोरियन कंपनी हुंडई भी भारत आ गई। दोनों का मकसद भारतीय ऑटो बाजार से मोटी कमाई करना था।

करीब 26 साल के सफर के बाद दोनों कंपनियों के हालात एक-दूसरे से एकदम अलग हैं। फोर्ड ने जहां अपना कार प्रोडक्शन बंद करने का ऐलान कर दिया। तो दूसर तरफ, हुंडई सबसे ज्यादा कार बेचने वाली देश की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी बन गई। आखिर ऐसा क्या हुआ कि एक कंपनी का कद लगातार बढ़ता गया, वहीं दूसरी ऊपर उठकर भी धरासाई हो गई। इस खबर में इसी को जानते हैं…

फोर्ड की भारत में एंट्री और सफर
1991 में आर्थिक उदारीकरण के बाद सरकार निवेशकों का स्वागत कर रही थी। माना जा रहा था कि मध्यम वर्ग की खरीदारी क्षमता में तेजी आएगी। अनुमान था कि इनकम बढ़ने से विदेशी कार कंपनियां 10 फीसदी बाजार पर कब्जा कर सकती हैं। इसी इरादे के साथ 1995 में फोर्ड मोटर ने भारत में अपना पहला प्लांट लगाया। उम्मीद इस बात की थी कि तेजी से उभरते भारतीय बाजार में वो अपनी जगह बनाने में सफल रहेगी।

  • फोर्ड मोटर ने भारतीय बाजार में अपनी पहली कार एस्कॉर्ट सैलून लॉन्च की। इसे 1960 के दशक में सबसे पहले यूरोप में उतारा गया था। मारुति की कार खरीदने वाले ग्राहकों के लिए एस्कॉर्ट की कीमत बहुत ज्यादा थी। उन्हीं दिनों हुंडई ने भी छोटी और सस्ती कार सेंट्रो के साथ भारतीय बाजार में एंट्री ली। सेंट्रो की कीमत करीब 2.34 लाख रुपए थी। कम कीमत और डिजाइन के चलते सेंट्रो को तेजी से सुर्खियां मिली। ये बिक्री के मामले में मारुति की आईकॉनिक कार 800 के बाद सबसे पॉपुलर कार बन गई।
  • फोर्ड ने भारतीय बाजार को समझते हुए 1999 में आईकॉन लॉन्च की। उस वक्त इस सबकॉम्पैक्ट सेडान की कीमत 2.83 लाख रुपए थी। इस कार में करीब 1299cc का इंजन था। ये 10.3km/l का माइलेज देती थी। इस वजह से भारतीय बाजार में इसे पॉपुलैरिटी भी मिली। बाजार में दूसरी कारों की एंट्री और बढ़ते कॉम्पटीशन के चलते 2003 में आइकॉन का सफर भी खत्म हो गया।
  • फोर्ड ने 26 साल के दौरान भारतीय बाजार में ईकोस्पोर्ट, एंडेवर, फिगो, फ्रीस्टाइल, एस्पायर समेत कई गाड़ियों लॉन्च कीं। उसकी ईकोस्पोर्ट और एंडेवर को पॉपुलैरिटी भी मिली, लेकिन उसकी कामयाबी के लिए ये कारें काफी नहीं थीं। दूसरी तरफ, हुंडई ने भारतीय बाजार में सेंट्रो के बाद इयॉन, i10, i20, वरना, क्रेटा, वेन्यू, ऑरा, कोना जैसे कई मॉडल लॉन्च किए। इनमें ज्यादातर सफल भी रहे। यही वजह है कि फाइनेंशियल ईयर 2021 में हुंडई का मार्केट शेयर 17.36% रहा। वहीं, फोर्ड का मार्केट शेयर सिर्फ 1.75% रहा।

महिंद्रा से रिश्ते बने-बिगड़े फिर खत्म

1995 में फोर्ड ने भारतीय बाजार में अपने बिजनेस की शुरुआत महिंद्रा एंड महिंद्रा के साथ शुरू की थी। 1998 में दोनों के रिश्ते में दरार आई और फोर्ड ने महिंद्रा से खुद को अलग कर लिया। 2019 में एक बार फिर दोनों कंपनियां साथ आईं। हालांकि, दोनों की पार्टनरशिप सालभर ही टिक पाई। दोनों कंपनियां 31 दिसंबर, 2020 को एक-दूसरे से अलग हो गईं। 9 सितंबर, 2021 को फोर्ड ने भारत में अपना कार प्रोडक्शन बंद करने का ऐलान कर दिया।

फोर्ड के घाटे की शुरुआत

फोर्ड भारत में ज्यादातर उन मॉडल को लेकर आई जो यूरोप या दूसरे विदेशी बाजारों में लॉन्च किए गए थे। इन मॉडल की इनकी लंबाई ज्यादा होती थी। देश में लंबी गाड़ियों पर ज्यादा टैक्स लगता था। ऐसे में मारुति, हुंडई जैसी कंपनियों के सामने फोर्ड की कारों की कीमत भी ज्यादा होती थी। अमेरिकी कंपनी भारतीय बाजार के मुताबिक छोटी गाड़ी बनाने में नाकाम रहीं। ऐसे में उसका घाटा शुरू हो गया जो लगातार और तेजी से बढ़ता चला गया।

जब फोर्ड का नुकसान 2 अरब डॉलर का हो गया, तब उसने भारत में कार प्रोडक्शन को बंद करने का फैसला लिया। कुछ ऐसी ही स्थिति अमेरिकन कंपनी जनरल मोटर्स और हार्ले डेविडसन के साथ भी हुई थी। हालांकि, फोर्ड गुजरात में इंजन बनाने वाले प्लांट को बंद नहीं करेगी।

बड़े रिकॉल से फोर्ड की इमेज गिरी

फोर्ड को दुनिया की ऐसा कार कंपनी के तौर पर भी जाना जाता है जिसने सबसे ज्यादा और सबसे बड़े रिकॉल किए। यानी कार बेचने के बाद जब कंपनी को उसमें किसी खराबी का पता चला तब कार को वापस बुलाया। 1980 में फोर्ड ने अपनी 2.1 करोड़ कारों को रिकॉल किया था, क्योंकि उसकी कारों के रिवर्स गियर में खराबी थी। वहीं, 1999 में उसने क्रूज कंट्रोल स्विच में खराबी की वजह से 1.5 करोड़ गाड़ियां रिकॉल की थीं। दुनिया के 5 सबसे बड़े रिकॉल में फोर्ड के 3 रिकॉल हो गई।

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