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2021 में इंडियन स्टार्टअप्स का धमाल: इस साल 33 स्टार्टअप बने यूनिकॉर्न, 2 दिग्गज फाउंडर्स से समझें कैसे कामयाब हो सकता है नया बिजनेस

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नई दिल्ली17 घंटे पहले

इंडियन स्टार्टअप्स के लिए 2021 का साल बेहतरीन रहा है। इस साल अब तक भारत के 33 स्टार्टअप यूनिकॉर्न क्लब में शामिल हो चुके हैं। इस क्लब में शामिल होने वाला सबसे लेटेस्ट स्टार्टअप कार देखो है जिसने हाल ही में लीपफ्रॉग इन्वेस्टमेंट से 250 मिलियन डॉलर की फंडिंग जुटाई है। अगर इसी रफ्तार से स्टार्टअप की जर्नी आगे बढ़ती रही तो ये संख्या साल के अंत तक 40 को पार कर सकती है। ऐसे में हम आपको बताने जा रहे हैं कि इन स्टार्टअप्स ने ऐसा क्या किया कि वो इस क्लब में शामिल होने में कामयाब रहे। इसमें कोरोना संक्रमण और टेक्नोलॉजी ने कितना बढ़ा रोल प्ले किया।

यूनिकॉर्न, डेकाकॉर्न और हेक्टोकॉर्न
यूनिकॉर्न का मतलब ऐसा स्टार्टअप है जिसका वैल्यूएशन एक अरब डॉलर तक पहुंच गया हो। वेंचर कैपिटल इंडस्ट्री में इस शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। इस शब्द का इस्तेमाल पहली बार काउबॉय वेंचर्स की फाउंडर ऐलीन ली ने किया था। 10 अरब डॉलर के वैल्यूएशन से अधिक के स्टार्टअप को डेकाकॉर्न कहा जाता है और 100 अरब डॉलर के वैल्यूएशन तक पहुंचने वाले स्टार्टअप को हेक्टोकॉर्न।

यूनिकॉर्न स्टार्टअप के फीचर्स

1. डिसरप्टिव इनोवेशन
ज्यादातर, सभी यूनिकॉर्न्स ने उस क्षेत्र को डिसरप्ट किया है जिससे वे संबंधित हैं। उदाहरण के लिए, फ्लिपकार्ट ने भारत में शॉपिंग के तरीके को बदल दिया। ओला कैब ने लोगों के आने-जाने के तरीके को बदल दिया। पेटीएम ने पेमेंट के तरीके को बदल दिया। वहीं जोमैटो जैसे स्टार्टअप ने लोगों के खाने के तरीके में काफी बड़ा बदलाव किया।

2. इंडस्ट्री के स्टार्टर
यह ज्यादातर देखा गया है कि यूनिकॉर्न अपनी इंडस्ट्री के स्टार्टर होते हैं। वे लोगों के काम करने के तरीके को बदलते हैं और धीरे-धीरे अपनी आवश्यकता पैदा करते हैं। वे अपने प्रोडक्ट को लगातार इनोवेट करते रहते हैं ताकि इंडस्ट्री में बाद में आने वाले दूसरे कॉम्पिटिटर्स का मुकाबला किया जा सके।

3. हाई टेक्नोलॉजी
यूनिकॉर्न में एक और आम ट्रेंड यह है कि उनका बिजनेस मॉडल टेक्नोलॉजी पर चलता है। उदाहरण के लिए डिजिट ने ऐप के जरिए इंश्योरेंस की सुविधा दी। अर्बन कंपनी ने भारत में हैंडीमैन हायर करने के लिए ऐप डेवलप किया। ओला ने कैब सर्विस के लिए ऐप बनाकर लोगों की ट्रैवलिंग आसान की।

4. कंज्यूमर फोकस्ड
करीब 62% यूनिकॉर्न बिजनेस टू कंज्यूमर (B2C) कंपनियां हैं। उनका लक्ष्य कंज्यूमर्स के लिए चीजों को आसान बनाना और उनके दैनिक जीवन का हिस्सा बनना है। चीजों को किफायती रखना इन स्टार्टअप्स की एक और अहम खासियत है।

बायजूस और फार्मईजी के फाउंडरों से जानें यूनिकॉर्न बनने का सफर
बायजूस ने जहां भारत में पढ़ाई के तरीके को पूरी तरह से बदल दिया है तो वहीं फार्मईजी ने लोगों के दवा खरीदने के तरीके को बदला है। इन कंपनियों के फाउंडर्स की अब तक की जर्नी से आप समझ पाएंगे कि कैसे इन्होंने 1 अरब डॉलर के रास्ते को तय किया। इन फाउंडर्स की एडवाइज को फॉलो कर आप इस क्लब में शामिल हो सकते हैं।

शुरुआत में रविंद्रन ने 40 स्थानों पर VSAT सेंटर स्थापित किए
बायजूस के फाउंडर रविंद्रन ने फॉर्च्यून इंडिया को बताया कि उन्होंने बायजूस की शुरुआत बिजनेस मॉडल से नहीं की थी। यह समय के साथ विकसित हुआ। रविंद्रन बताते हैं कि उन्होंने 2004 में ऑफलाइन क्लासेज शुरू की। 2009 में उन्होंने ज्यादा से ज्यादा छात्रों तक पहुंचने के लिए VSAT (सैटेलाइट कम्युनिकेशन सिस्टम) टेक्नोलॉजी के साथ एक्सपेरिमेंट करना शुरू किया और 40 स्थानों पर VSAT सेंटर स्थापित किए। करीब चार-पांच सालों तक ऐसा चलता रहा। रविंद्रन क्लास लेते थे और रिकॉर्ड किए वीडियो को पूरे शहर में प्रसारित करते थे।

ऑनलाइन मॉडल में परिवर्तन एक बड़ा मोड़
रविंद्रन ने बताया कि 2015 में बायजूस लर्निंग ऐप के लॉन्च के साथ पूरी तरह से ऑनलाइन मॉडल में परिवर्तन एक बड़ा मोड़ था। टेक्नोलॉजी कंपनी न होने के चलते शुरुआती दिनों में टेक टैलेंट को अट्रैक्ट करना एक चुनौती थी। रविंद्रन ने कहा कि इस स्टार्टअप में ऑनलाइन और ऑफलाइन का सही मिश्रण और इस सेगमेंट के लिए जागरूकता पैदा करना भी बड़ी चुनौतियों में से एक थी।

एजुकेशन सेक्टर में ज्यादातर निवेशकों ने पैसे गंवाए
इन्वेस्टर्स को मैनेज करने को लेकर रविंद्रन कहते हैं कि एजुकेशन एक ऐसा सेक्टर है जहां हर कोई शामिल होना चाहता है, लेकिन यह एक ऐसी जगह भी है जहां ज्यादातर निवेशकों ने पैसे गंवाए हैं। इस स्पेस में कोई बेंचमार्क नहीं है जिसे हम फॉलो कर सकते हैं। बायजूस कोई कट, कॉपी और पेस्ट मॉडल नहीं है। उन्होंने कहा, फंडिंग के लिए बिजनेस के पोटेंशियल के बारे में इन्वेस्टर्स को काफी समझाना पड़ा था।

फार्मईजी यूनिकॉर्न क्लब में शामिल होने वाली पहली ई-फार्मेसी
फार्मईजी पहली भारतीय ई-फार्मेसी है जो इस साल यूनिकॉर्न क्लब में शामिल हुई है। फार्मईजी के पांच को-फाउंडर हैं। सिद्धार्थ शाह, हर्ष पारेख, हार्दिक देधिया, धर्मिल सेठ और धवल शाह। फॉर्च्यून इंडिया को सिद्धार्थ शाह ने बताया कि उन्होंने इस बिजनेस की शुरुआत ऑनलाइन मॉडल के साथ की थी। इस मॉडल ने काम नहीं किया, क्योंकि उनके पास केवल डिमांड थी, सप्लाई नहीं।

सप्लाई के लिए, उन्होंने स्टोर्स की एक चेन खोली। बाद में महसूस किया कि इसका कोई सेंस नहीं बनता और बैकएंड में चले गए। चूंकि उनके पास एक मजबूत बैकएंड था, इसलिए उन्होंने दोबारा फ्रंटएंड क्रिएट करने की दिशा में काम किया और तभी फार्मईजी की शुरुआत हुई। सिद्धार्थ ने कहा, ‘भारत में एक बड़ी समस्या सेल्फ मेडिकेशन है। इसे मैनेज करने के लिए हमने टेलीमेडिसिन प्लेटफॉर्म लॉन्च किया। हमने थायरोकेयर के साथ पार्टनरशिप की। आज हमारे पास 90,000 रिटेल पार्टनर हैं।’

टेक्नोलॉजी तैयार करना सबसे बड़ा चैलेंज
सिद्धार्थ इस बिजनेस में आए चैलेंज के बारे में बताते हैं कि ईकोसिस्टम का डिजिटाइजेशन सबसे बड़ी चुनौती और अवसर है। इसके लिए टेक्नोलॉजी तैयार करना सबसे बड़ा चैलेंज था। एक अच्छी टीम को हायर करना और इनवेस्टर्स को मैनेज करना भी बड़ी चुनौती थी। सिद्धार्थ कहते हैं कि इनवेस्टर्स के साथ पारदर्शी होना जरूरी है। इनवेस्टर्स को पार्टनर्स की तरह मानने की कोशिश करना चाहिए।

प्रोडक्ट तभी बढ़ेगा जब उसमें वास्तविक मूल्य होगा
किसी भी बिजनेस के लिए सेल्स और मार्केटिंग बेहद महत्वपूर्ण है। सेल्स और मार्केटिंग के बारे में सिद्धार्थ कहते हैं कि आपका प्रोडक्ट तभी बढ़ेगा जब उसमें वास्तविक मूल्य होगा। सिद्धार्थ ने कहा कि सितंबर-अक्टूबर 2018 तक, उन्होंने टीवी विज्ञापनों पर एक रुपया भी खर्च नहीं किया। जब आपके पास एक अच्छा प्रोडक्ट होगा, तो मार्केटिंग एक एम्प्लीफायर के रूप में काम करेगी।

कंपनी को खत्म करने का सबसे अच्छा तरीका…
सिद्धार्थ कहते हैं अपनी कंपनी को खत्म करने का सबसे अच्छा तरीका है कि एक खराब प्रोडक्ट तैयार किया जाए और फिर उसकी मार्केटिंग की जाए। सिद्धार्थ ने कहा, यह महत्वपूर्ण है कि शुरुआत में आपके प्रोडक्ट की ग्रोथ रेफरल, वर्ड ऑफ माउथ के माध्यम से हो।

सात दिनों के भीतर हर रोज आने लगे 100 से ज्यादा ऑर्डर
सिद्धार्थ कहते हैं कि जब उन्होंने फार्मईजी को लॉन्च किया और सात दिनों के भीतर ही हर रोज 100 से ज्यादा ऑर्डर आने लगे, तो उन्हें लगा कि वे सही दिशा में बढ़ रहे हैं। दवाओं पर बचत के लिए फार्मईजी से जुड़े वॉट्सऐप मैसेज भी अचानक वायरल होने लगे थे।

कुछ लोगों ने मेरे माता-पिता को परेशान किया और धमकाया
अपने सबसे कठिन समय के बारे में सिद्धार्थ बताते हैं कि 2014 में ऐसा समय आया था जब कुछ महीनों तक उनके पास ब्याज देने के लिए भी पैसे नहीं थे। सिद्धार्थ ने कहा, दूसरी बार कठिन समय तब आया जब कुछ लोगों ने उनके माता-पिता को परेशान किया और धमकाया। उन लोगों ने तोड़फोड़ भी की और कुछ लोगों को पीटा भी।

इस साल भारत को सबसे ज्यादा 33 यूनिकॉर्न मिले
साल 2021 में यूनिकॉर्न की दौड़ डिजिट इंश्योरेंस के साथ शुरू हुई थी। फिनटेक से लेकर ई-फार्मेसी और यहां तक कि क्लाउड किचन स्टार्टअप यूनिकॉर्न बनने में कामयाब रहे हैं।

यूनिकॉर्न क्लब में शामिल होने वाला भारत का पहला स्टार्टअप इनमोबी
भारत को 2011 से लेकर अब तक कुल 70 यूनिकॉर्न मिल चुके हैं. इस क्लब में शामिल होने वाला भारत का पहला स्टार्टअप इनमोबी था।

इनमोबी साल 2011 में इस क्लब में शामिल हुआ था। साल 2012 में ई-कॉमर्स फ्लिपकार्ट ने इस क्लब में अपनी जगह बनाई। 2013 में SaaS- एनालिटिक्स MU सिग्मा और 2014 में ई-कॉमर्स स्नैपडील इस क्लब में शामिल हुए। 2015 में यूनिकॉर्न क्लब में 4, 2016 में 2, 2017 में शून्य, 2018 में 7, 2019 में 9, 2020 में 10 और 2021 में 33 स्टार्टअप शामिल हुए।

यूनिकॉर्न रश में टेक्नोलॉजी और कोविड का रोल
कोविड महामारी के दौरान देश और दुनिया में वर्क फ्रॉम होम कल्चर तेजी से बढ़ा। इससे डिजिटल बिजनेस को बढ़ावा मिला और साल 2021 में भारत की यूनिकॉर्न लिस्ट 70 पर पहुंच गई। एक्सपर्ट्स के मुताबिक स्टार्टअप्स के इतनी तेजी से ग्रो करने में डिजिटल पेमेंट ईकोसिस्टम और लार्जर स्मार्टफोन यूजर बेस की भूमिका अहम रही है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि आने वाले समय में छोटे शहरों में इंटरनेट यूजर्स के बढ़ने के साथ डिजिटल बिजनेस की ग्रोथ होगी। वेंचर कैपिटल इन्वेस्टर्स के अनुमान के मुताबिक 2025 तक भारत में 150 यूनिकॉर्न होंगे।

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