महिलाओं के लिए कोच नहीं, ट्रेनिंग भी 10 किमी दूर: राज्यों में सर्वे: भेदभाव के कारण अच्छे प्रदर्शन के बाद भी नहीं बढ़ती भागीदारी
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4 मिनट पहले
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महिला एथलीटों ने सर्वे में बताईं अपनी परेशानियां।
2002 के कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत की महिला हॉकी टीम की ऐतिहासिक जीत पर आधारित फिल्म चक दे इंडिया सभी को याद होगी। जहां महिला हॉकी टीम ने गोल्ड जीता था। इन गेम्स में लॉन्ग जंप में अंजु बॉबी जॉर्ज ने वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने के साथ ही ब्रॉन्ज अपने नाम किया था। टूर्नामेंट में भारत द्वारा जीते गए 69 मेडल्स में से 32 महिला खिलाड़ियों ने जीते थे। लेकिन यह महिला खेल का सिर्फ एक पक्ष है। दूसरा पहलू यह है कि महाराष्ट्र से सबसे ज्यादा अर्जुन पुरस्कार विजेता होने के बाद भी मुंबई के शिवाजी पार्क में शायद ही कभी लड़कियां मैदान पर नजर आती हैं।
सिंपली स्पोर्ट के “ब्रेकिंग बैरियर फॉर वीमेन इन स्पोर्ट्स’ पायलट सर्वे में बिहार, हरियाणा, मणिपुर, राजस्थान से 213 एथलीट से महिलाओं को आने वाली परेशानियों से संंबंधित सवाल पूछे गए। रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1008 पुरुषों पर केवल 257 महिलाओं ने खेलों में हिस्सा लिया। खेल सुविधाओं तक खराब पहुंच, खेलने के लिए सही उपकरण न होना, अच्छी सुविधाओं के लिए 10 किमी दूर जाना, सुरक्षा संबंधी चिंताएं, महिला कोचों की कमी, टूर्नामेंट के लिए असुरक्षित यात्रा और खेल में भेदभाव जैसे कारणों के चलते खेलों में महिलाओं का अच्छा प्रदर्शन भी उनकी भागीदारी को बढ़ावा नहीं दे पा रहा है।
अंजू बॉबी जॉर्ज लॉन्ग जंप की वर्ल्ड चैम्पियनशिप में मेडल जीत चुकी हैं।
50% प्रतिभागी किसी भारतीय महिला खिलाड़ी का नाम तक नहीं बता सके थे
2020 में हुए एक सर्वे में 50% प्रतिभागी एक भी भारतीय महिला खिलाड़ी का नाम नहीं ले पाए थे। वहीं 38% लोग मानते थे कि महिलाओं के टूर्नामेंट पुरुषों के मुकाबले कम दिलचस्प होते हैं। साथ ही केवल 38% लोग ही ऐसे थे, जो महिलाओं के टूर्नामेंट्स देखते थे। बिहार से कोई महिला इंटरनेशनल का हिस्सा नहीं: हरियाणा ने इंटरनेशनल टूर्नामेंट्स में 51 महिलाएं भेजी हैं। यहां पिछले साल खेलों के लिए 18.891 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया गया था। मणिपुर से 52 महिलाएं इन टूर्नामेंट्स के लिए भेजी गईं, लेकिन बजट के मामले में यहां 12.902 लाख आवंटित किए गए। राजस्थान से 5 महिलाएं टूर्नामेंट के लिए गईं। वहीं, बिहार से एक भी महिला इंटरनेशनल टूर्नामेंट का हिस्सा नहीं बनी।
कोच और प्रबंधक के तौर पर महिलाओं की कमी:
अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक कमेटी के निर्देशों के मुताबिक, खेलों से जुड़े किसी भी ऑर्गनाइजेशन में 30% महिलाओं का होना जरूरी है। इसके बावजूद भारत में मौजूद 8 नेशनल स्पोर्ट्स फेडरेशन में एक भी महिला प्रतिनिधि नहीं है। रिपोर्ट के मुताबिक, रिटायर्ड महिला खिलाड़ियों को कोचिंग देने के लिए संपर्क ही नहीं किया जाता क्योंकि वो प्रोफेशनल स्पोर्ट छोड़ चुकी होती हैं। इन खिलाड़ियों को कई बार हेड कोच बनने के लायक ही नहीं माना जाता है। प्रैक्टिस के दौरान बुनियादी सुविधाओं की कमी: कोचिंग के मैदान में पीने के पानी और शौचालय की कमी एक आम बात हो गई है। चेंजिंग रूम में जेंडर के आधार पर संवेदनशीलता की कमी महिलाओं की कम भागीदारी का बड़ा कारण है। सर्वे में शामिल खिलाड़ियों के अनुसार, बिहार में महिला एथलीट्स के लिए शॉर्ट्स या ऐसे ही दूसरे कपड़े पहनकर प्रैक्टिस करना उनकी सुरक्षा के लिहाज से सही नहीं है। वहीं ज्यादातर मैदानों में शाम को प्रैक्टिस करने के लिए सही लाइटिंग भी मौजूद नहीं है।
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