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भास्कर एक्सप्लेनर: दुनिया के ​​​​​​​सुपर पावर ही ओलिंपिक में टॉप पर क्यों आते हैं? अमेरिका-सोवियत संघ के बाद अब अमेरिका-चीन में होड़

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नई दिल्ली17 घंटे पहले

ओलिंपिक गेम्स दुनिया का सबसे बड़ा स्पोर्ट्स इवेंट है। अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक समिति में 206 नेशनल ओलिंपिक कमेटी सदस्य हैं। यह संयुक्त राष्ट्र में शामिल देशों की संख्या (193) से भी ज्यादा हैं। जाहिर है कि तमाम देश ओलिंपिक में हिस्सा लेने और इसमें अच्छे प्रदर्शन को बहुत ज्यादा तरजीह देते हैं। हालांकि, इसमें आमतौर पर वही देश सबसे अच्छा प्रदर्शन कर पाते हैं जो शारीरिक के साथ-साथ आर्थिक, सामरिक और बौद्धिक स्तर पर भी प्रभावशाली होते हैं।

मेडल टेबल में ऊपरी स्थानों पर तो वही देश आ पाते हैं जो सुपर पावर होने की हैसियत रखते हैं। इस एक्सप्लेनर में हम जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर ओलिंपिक में प्रदर्शन का महाशक्ति होने से क्या संबंध है? हम यह भी जानेंगे कि दुनिया के सुपर पावर ओलिंपिक में सफलता पाने के लिए क्या करते हैं।

पहले जानते हैं कि मॉडर्न ओलिंपिक में दुनिया के सुपर पावर का प्रदर्शन कैसा रहा
1896 से मॉडर्न ओलिंपिक गेम्स आयोजित हो रहे हैं। तब से दुनिया ने अमेरिका, सोवियत संघ, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान जैसे देशों को महाशक्ति के दौर पर देखा। ओलिंपिक की ऑल टाइम मेडल टैली के टॉप-10 पर नजर डालें तो इन्हीं देशों का दबदबा दिखता है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद दो सबसे बड़े सुपर पावर अमेरिका और सोवियत संघ टॉप-2 पॉजीशन पर हैं। इन दोनों से पहले सुपर पावर और उपनिवेशवाद के प्रतिनिधि रहे देश ब्रिटेन और फ्रांस भी टॉप-5 में हैं। दूसरे विश्व युद्ध में सहयोगी रहे जर्मनी और इटली भी टॉप-10 में हैं।

अब जानते हैं कि सुपर पावर्स ओलिंपिक में क्यों अच्छा प्रदर्शन करना चाहते हैं

1. खुद को दूसरों से आगे और बेहतर बताना
ओलिंपिक का मोटो या सूत्र वाक्य तीन इटैलियन शब्दों से बना है। ये हैं सिटियस-अल्टियस-फोर्टियस…इनका मतलब है फास्टर, हायर और स्ट्रॉन्गर, यानी ज्यादा तेज, ज्यादा ऊंचा और ज्यादा मजबूत। कोई देश सुपर पावर बनता है या बनना चाहता है तो वह इन तीनों कसौटियों पर भी खरा उतरने की कोशिश करता है। ओलिंपिक इसके लिए उन्हें सबसे बड़ा प्लेटफॉर्म मुहैया कराता है। इससे बिना युद्ध लड़े और बिना खून बहाए खुद को शक्तिशाली बताया जा सकता है।

2. प्रोपेगैंडा टूल
ओलिंपिक के जरिए शक्तिशाली देश दुनियाभर में अपनी धाक जमाने की कोशिश करते हैं। उनका संदेश होता है कि हम ओलिंपिक में इसलिए अच्छे हैं क्योंकि हमारा सिस्टम, हमारी अर्थव्यवस्था, हमारी टेक्नोलॉजी बेहतर है। अमेरिका और सोवियत संघ ने यह काम प्रभावशाली तरीके से किया। अब चीन भी इस दिशा में सफलता हासिल कर रहा है।

3. अपने लोगों का भरोसा जीतना
ओलिंपिक में भले ही जंग न हो, लेकिन मुकाबले में दुनियाभर के एथलीट होते हैं। इसमें मेडल हासिल करने वाले देशों के लोगों का आत्मविश्वास बढ़ता है और उनका अपने देश, अपनी सरकार, अपने सिस्टम पर यकीन बढ़ता है।

सुपर पावर देश ओलिंपिक में जीत के लिए क्या करते हैं

बड़ा खर्च

  • अमेरिका, चीन, रूस, ब्रिटेन जैसे देश ओलिंपिक में अच्छे प्रदर्शन के लिए काफी खर्च करते हैं। जरूरी नहीं कि ये खर्च सिर्फ सरकार की ओर से हो। अमेरिका अपने ओलिंपिक एसोसिएशन को कोई फंडिंग नहीं देता है, लेकिन प्राइवेट जरियों से हर ओलिंपिक के लिए अमेरिकी एथलीटों पर करीब 20 हजार करोड़ रुपए खर्च होता है।
  • ब्रिटेन में हर साल खेल इन्फ्रास्ट्रक्चर और ट्रेनिंग के लिए 1.5 बिलियन डॉलर (करीब 11 हजार करोड़ रुपए) खर्च किया जाता है।
  • चीन और रूस से खर्च के आंकड़े सामने नहीं आते। माना जाता है कि चीन ओलिंपिक के लिए खिलाड़ियों को तैयार करने पर 4 साल के हर साइकिल में 18-20 हजार करोड़ रुपए खर्च कर रहा है।

बेहतरीन इन्फ्रास्ट्रक्चर
अमेरिका और चीन जैसे देशों के लगभग हर बड़े शहर में बेहतरीन स्पोर्ट्स इन्फ्रास्ट्रक्चर मौजूद है। इनमें इंटरनेशनल क्वालिटी के स्टेडियम, इक्विपमेंट, हाई परफॉर्मेंस सेंटर, बायोमैकेनिक्स सेंटर आदि शामिल होते हैं।

ट्रेनिंग और कोचिंग
ओलिंपिक की शुरुआत अमेच्योर स्पोर्ट्स इवेंट के तौर पर हुई थी, लेकिन बड़े देशों ने इसे प्रोफेशनल तरीके से अप्रोच किया। हर खेल के विज्ञान को समझते हुए खिलाड़ियों को तैयार किया जाता है। इसके लिए स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी और स्पोर्ट्स रिसर्च सेंटर बनाए गए हैं। चीन में खिलाड़ियों की ट्रेनिंग के लिए सख्ती भी बरती जाती है और कम उम्र से ही उन्हें ओलिंपिक के लिए तैयार किया जाता है।

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