भास्कर इंटरव्यू: सोनम मलिक: गांव वालों को गलत साबित करना चाहती थी, इसलिए डॉक्टर की सलाह के खिलाफ जाकर वापसी की
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नई दिल्ली7 मिनट पहले
हौसलों से बड़ी से बड़ी बाधा पार की जा सकती है। यह साबित किया है हरियाणा के सोनीपत जिले के मदीना की पहलवान सोनम मलिक ने। छोटे से गांव से निकलकर टोक्यो तक का सफर तय करने वाली 19 साल की सोनम ने सड़क तक पर प्रैक्टिस की है। 62 किग्रा की नेशनल चैंपियन सोनम वर्ल्ड कैडेट चैंपियनशिप में दो गोल्ड जीत चुकी हैं। जानिए कैसे चोट से उबरकर सोनम ने देश-दुनिया में नाम रोशन किया…
दैनिक भास्कर और माई एफएम नवरात्रि के दूसरे दिन सोनम मलिक के संघर्ष की कहानियों को आपके सामने लेकर आए हैं। जानिए कैसे सोनम ने अपनी जिद और प्रतिभा के दम पर कुश्ती में अपना मुकाम बनाया…
सवालः आपने नेताजी सुभाषचंद्र बोस एकेडमी में शुरुआत की। उस समय एकेडमी में मैट भी नहीं होती थी? तब कैसे तैयारी करती थीं?
जवाबः हमने सुभाषचंद्र बोस एकेडमी से शुरुआत की। उस समय वहां मैट सहित अन्य सुविधाएं नहीं होती थीं। अखाड़े में प्रैक्टिस करते थे। उस दौरान अगर बारिश हो जाती थी तो सड़क पर प्रैक्टिस करते थे। गांव में बातें करते थे कि लड़की है क्या करेगी। अब मैं उनको झूठा साबित करना चाहती हूं। खेल में अच्छा करूंगी और उनको जवाब दूंगी।
सवालः आपने किसी बड़ी एकेडमी में जाकर प्रैक्टिस क्यों नहीं की?
जवाबः पापा किसान हैं। खेती करने वालों के पास उतना पैसा नहीं होता है। इसलिए शहर जाकर महंगे एकेडमी में प्रैक्टिस नहीं कर पाते। मेरा यही रहा है कि कहीं भी रहूं बस प्रैक्टिस करनी है।
सवालः कुछ साल पहले आपको लकवा मार गया था। आप करीब छह महीने तक बेड पर थीं। कैसे रिकवर किया?
कोई कितना भी बुरा चाहे, होता वही है जो भगवान चाहता है। 2016 में कंधे में इंजरी हाे गई थी। उसका इलाज भी हुआ, लेकिन डॉक्टर ने कह दिया था कि आपको लकवे की शिकायत है। अब आप आगे रेसलिंग नहीं कर पाएंगी, लेकिन मुझे तो रेसलिंग करनी थी। गांव वालों ने जो भी बोला, उनको झूठा साबित करना था। छह महीने बेड पर रहने के बाद वापसी की। इस दौरान गांव के लोग बोलते थे कि लड़की है कुछ इंजरी हो जाएगी तो फिर क्या होगा। पर पापा और मम्मी का पूरा सपोर्ट था।
सवालः टोक्यो ओलिंपिक में मिली हार के बाद जब आप वापस घर आईं तो खुद को कैद क्यों कर लिया था। पेरिस ओलिंपिक की तैयारी कैसी है?
जवाबः टाेक्यो ओलिंपिक में सफर अच्छा नहीं रहा। वहां से आने के बाद बहुत दुख हुआ कि कैसे हार गई। सबसे कम उम्र की लड़की थी। हार के बाद मैंने अखाड़ा आना भी बंद कर दिया था। सर मेरे पास गए और बोला कि तुम्हारे पास खोने को कुछ नहीं है। अभी उम्र ही क्या है। इसके बाद मैदान पर लौटी और पेरिस की तैयारी शुरू कर दी।
सवालः क्या आपको लगता है कि अब भी लड़कियां लड़कों से पीछे हैं?
जवाबः गांव में कहते हैं कि लड़कियां गांव में ही अपना काम करे और आदमी बाहर से कमा कर आए। लेकिन छोरियां अब छोरों से कम नहीं है। अब लड़कियां किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। पिछली बार ओलिंपिक में सिर्फ दो महिलाओं से मेडल आया था जबकि इस बार तीन महिला खिलाड़ियों ने मेडल जीते। आगे भी महिला खिलाड़ी मेडल जीतेंगी। उनकी सोच को रोको मत, जो भी वह करना चाहती हैं करने दो और जीतने दो।
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