ब्रॉन्ज मेडलिस्ट मनोज सरकार की कहानी: डेढ़ साल की उम्र में तेज बुखार के चलते आई थी पैर में कमजोरी, मां ने खेतों में काम कर दिलाया था पहला बैडमिंटन रैकेट
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18 मिनट पहले
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टोक्यो पैरालिंपिक खेलों में भारत का शानदार प्रदर्शन जारी है। पैरा-बैडमिंटन स्पर्धा में मनोज सरकार ने बढ़िया खेल दिखाते हुए देश की झोली में एक और मेडल डाल दिया है। SL3 कैटेगरी में मनोज सरकार ने भारत के लिए ब्रॉन्ज मेडल जीता। उन्होंने तीसरे स्थान के लिए हुए मुकाबले में जापान के दाइसुके फॉजीहारा को 22-20, 21-13 से हराया।
सेमीफाइनल में मिली थी हार
बेहतर तालमेल और लाजवाब स्मैश की बदौलत मनोज सरकार ने पैरालिंपिक बैडमिंटन स्पर्धा के सेमीफाइनल में जगह बनाई थी। हालांकि, सेमीफाइनल में उनको हार का सामना करना पड़ा। दूसरी वरीयता प्राप्त ब्रिटेन के डेनियल बेथेल ने मनोज को 21-8, 21-10 से हराया था। मैच में मिली हार के बाद मनोज ने ब्रॉन्ज मेडल के लिए क्वालीफाई किया था।
गरीबी में बीता बचपन
उत्तराखंड निवासी मनोज सरकार का जीवन बहुत ही कठिनाई और बेहद गरीबी में बीता। मनोज की मां जमुना सरकार ने अपने बयान में बताया था कि, मनोज जब डेढ़ साल का था, तो उसे तेज बुखार आया था। उस समय आर्थिक दशा सही नहीं होने के चलते मनोज का झोलाछाप इलाज कराया गया। इस इलाज का उन पर बुरा असर पड़ा और दवा खाने के बाद उनके पैर में कमजोरी आ गई। दिन यूं ही बीतते चले गए, गरीबी इतनी थी कि स्कूल की छुट्टी के दिन उसने पिता के साथ घरों में पुताई का काम भी किया।
नहीं थे रैकेट खरीदने के पैसे
लोगों को बैडमिंटन खेलता देख मनोज ने भी परिवार से रैकेट खरीदने जिद की, लेकिन रैकेट खरीदने के लिए परिवार के पास पैसे नहीं थे। मां जमुना ने बताया कि, उन्होंने खेतों में काम कर पैसे जुटाए और बेटे के लिए बैडमिंटन रैकेट खरीदा।
बैडमिंटन खिलाड़ी ने किया प्रेरित
इंटरमीडिएट तक मनोज ने एक सामान्य खिलाड़ी के तौर पर तीन राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया। उसे अच्छा खेलते देखने के बाद बैडमिंटन खिलाड़ी डीके सेन ने पैरा-बैडमिंटन टीम के लिए खेलने की सलाह दी।
अपने शानदार प्रदर्शन के दम पर उन्होंने नेशनल फिर इंटरनेशनल पैरा-बैडमिंटन टीम में जगह बनाई। हालांकि, साल 2017 में पिता मनिंदर सरकार के निधन के बाद मनोज काफी टूट गए, लेकिन उन्होंने अपने हौसलों और हिम्मत को टूटने नहीं दिया और पैरा-एशियन खेलों की तैयारियों में लग गए।
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