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दुनिया में क्रूड ऑयल की खपत कम होगी: ओपेक ने क्रूड की वैश्विक मांग के अनुमान में कटौती की, वजह रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच बढ़ती महंगाई

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विएना3 घंटे पहले

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पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन ओपेक ने मंगलवार को इस साल कच्चे तेल की वैश्विक खपत को लेकर अपने अनुमान में कटौती की। संगठन ने रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच बढ़ती महंगाई को इसकी वजह बताई है। ओपेक ने मासिक रिपोर्ट में कहा है कि 2022 के दौरान पूरी दुनिया में रोजाना 36.7 लाख बैरल कच्चे तेल की मांग रहेगी। यह संगठन के पिछले अनुमान से 4.80 लाख बैरल कम है।

रूस के यूक्रेन पर हमले से कम हुई डिमांड
दरअसल फरवरी में रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया था। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत बढ़कर 139 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थी। 2008 के बाद से कच्चा तेल इस स्तर पर कभी नहीं गया था। इसके बाद तेल के भाव तब नीचे आए जब अमेरिका और अन्य देशों ने घोषणा की कि वे रणनीतिक भंडार का तेल बाजार में उतारेंगे। फिर भी कच्चा तेल 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर ही रहा।

बहरहाल, ओपेक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘हालांकि हमारा अनुमान है कि रूस और यूक्रेन दोनों इस साल मंदी की गिरफ्त में रहेंगे, लेकिन इसका असर केवल इन देशों तक सीमित नहीं रहेगा।

ओपेक क्रूड ऑयल उत्पादक देशों का एक संगठन है। इसमें अभी अल्जीरिया, अंगोला, इक्वेटोरियल गिनी, गैबॉन, ईरान, इराक, कुवैत, लीबिया, नाइजीरिया, कांगो, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और वेनेजुएला सहित 13 सदस्य देश हैं।

साल 1960 में तेल उत्पादक देश ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब और वेनेजुएला ने मिलकर ओपेक बनाया था। इसका हेडक्वार्टर वियना में है। फिर धीरे-धीरे अन्य तेल उत्पादक देश भी इससे जुड़ते चले गए।

ओपेक देशों पर भारत की कितनी निर्भरता?

  • भारत अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए 80% क्रूड ऑयल का आयात करता है। जबकि, चीन 50% और दक्षिण कोरिया, जापान 100% कच्चा तेल आयात करते हैं। दुनिया के क्रूड ऑयल का 12% उत्पादन रूस में, 12% सऊदी अरब में और 16% से 18% उत्पादन अमेरिका में होता है।
  • ओपेक देश भारत की जरूरत का 60% क्रूड ऑयल सप्लाई करते हैं। इनमें सऊदी अरब, इराक, ईरान वेनेज़ुएला शामिल हैं। ये सभी देश ओपेक के संस्थापक सदस्य हैं। जाहिर है भारत की तेल जरूरतों का अधिकांश हिस्सा इन्हीं देशों से पूरा होता है।
  • हालांकि, ये देश ‘एशियन प्रीमियम’ लगा कर भारत से प्रति बैरल 3-4 डॉलर अधिक शुल्क वसूलते हैं। एशियन प्रीमियन यानी एशियाई देशों जैसे मध्य पूर्व के देश भारत, चीन, जापान, और बाकी एशियाई देशों को दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले ज्यादा कीमत पर तेल बेचते हैं।

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