ओलिंपिक के सूरमा: स्किल और स्ट्रेंथ बढ़िया, मेडल की राह मजबूत: विकास
भिवानी6 मिनट पहलेलेखक: अनिल बंसल
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- विपक्षी के गेम प्लान अनुसार करता है वार व बचाता है अंक, हुक व बैकफुट पंच पर गजब का कंट्रोल
भीम स्टेडियम में कुछ बच्चे रेस लगा रहे थे, जब पूछा तो पता लगा कि ये मुक्केबाज है। उनकी स्पीड पर नजर रख रहे कोच विष्णु भगवान से पिता ने कहा- म्हारे विकास को भी ले लो और मुक्केबाज बनाओ, कोच बोले- 10 साल का यह बच्चा कर लेगा मुक्केबाजी, डरेगा तो नहीं। जवाब में पिता बोले- न गेम छोड़ेगा और न ही डरेगा। अभ्यास शुरू हुआ, विकास ने जिस प्रकार पढ़ाई में टॉपर बनता था, मुक्केबाजी में भी वहीं अंदाज दिखाना शुरू कर दिया।
महज 6 माह के अभ्यास के बाद ही सबसे पहले पहली स्टेट में गोल्ड मेडल से शुरुआत की थी, उसे एक ही साल में नेशनल के बेस्ट बाॅक्सर और अगले साल वर्ल्ड सब जूनियर चैंपियन के रूप में आगे बढ़ाया। जीत का सिलसिला 11 साल बाद भी बरकरार। वह भी एमेच्योर के मुकाबले पेशेवर मुक्केबाजी में भी। समय के साथ बढ़ते अनुभव और इंटरनेशनल मेडल ने आत्मविश्वास इस कदर बढ़ाया कि 23 जुलाई से शुरू हो रहे टोक्यो ओलिंपिक में वह देश के सबसे अनुभवी मुक्केबाज के तौर पर हिस्सा लेगा। इटली में अभ्यास कर रहे विकास के मुताबिक बढ़िया लय है। मुझे पता है कि यह मेरा अंतिम ओलिंपिक है, मैंने अपनी ओर से पूरा जोर लगा दिया है।
बता दें कि विकास की खेल में शुरुआत बैडमिंटन के जरिए हुई थी, लेकिन अभ्यास के दौरान जब एक दिन हॉल में घुटन महसूस हुई तो उसे डाॅक्टरों के पास ले जाया गया, तब डाक्टरों ने कहा कि जहां ज्यादा सफोकेशन होती है, जिस कारण उसे बुखार चढ़ता है। वहां विकास सहज नहीं होता। तब पिता ने दूसरे खेल की ओर रूख किया। कोच विष्णु भगवान, भूपेन्द्र व जगदीश ने उसे मुक्केबाजी सिखाई।
परिवार भेजेगा 20 किलो मावा
विकास की साइंस व अंग्रेजी पर काफी अच्छी पकड़ है, इसके अतिरिक्त शतरंज व वाॅलीबाॅल खूब खेलते हैं, मानसिक मजबूती के लिए योग एवं तैराकी दिनचर्या का हिस्सा है। खाने में उसे घर के परांठे और मावा पसंद है, परिवार की ओर से टोक्यो में 20 किलो मावा भेजने की तैयारी की जा रही है। बिजली निगम से सेवानिवृत पिता किशन कुमार ने कहा कि उन्हें ऐसा कोई कारण नजर नहीं आता, जिससे ओलिंपिक मेडल विकास से दूर रहे।
इसलिए है पदक की दावेदारी
सीनियर मुक्केबाजी कोच विष्णु भगवान के अनुसार पंच पावर, स्पीड व एक्सपीरियस की तिकड़ी विकास पदक का दावेदार बना रही है। वह कभी भी गेम से कंट्रोल नहीं खोता, अपने खेल के साथ विपक्षी के गेम प्लान को भी समझकर वार करता है। हुक एवं बैकफुट पंच पर उसका गजब का कंट्रोल है। इसके अतिरिक्त अब तक के सफल प्रोफेशनल बॉक्सिंग करियर ने विकास कृष्ण की ताकत को और अधिक बढ़ाने में मदद की है। एमेच्योर के मुकाबले पेशेवर मुक्केबाज काफी मजबूत होते है। पेशेवर मुक्केबाजी का अनुभव होने के बाद एमेच्योर मुकाबले के दौरान शरीर पर लगने वाली चोट की सहन शक्ति बढ़ जाती है।
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