एम्प्लॉई पेंशन स्कीम: 15 हजार की लिमिट हटाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अब रोजानाआधार पर होगी सुनवाई, यहां समझें लिमिट बढ़ने का क्या होगा असर
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नई दिल्ली12 मिनट पहले
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आज से एम्प्लॉई पेंशन स्कीम यानी EPS के तहत निवेश पर लगे अधिकतम 15 हजार रुपए वेतन के कैप को हटाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। अब से ये सुनवाई रोजाना के आधार पर होगी। अभी अधिकतम पेंशन योग्य वेतन 15,000 रुपए प्रति माह तक सीमित है। इस लिमिट को हटाने को लेकर मामला कोर्ट में है।
क्या है मामला?
सुप्रीम कोर्ट ने 12 अगस्त को भारत संघ और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) द्वारा दायर याचिकाओं के उस बैच की सुनवाई स्थगित कर दी थी, जिसमें कहा गया था कि कर्मचारियों की पेंशन को 15,000 रुपए तक सीमित नहीं किया जा सकता है। वहीं इससे जुड़े मामलों की सुनवाई 17 अगस्त 2021 से प्रतिदिन करने का फैसला किया था।
अभी क्या है नियम?
जब कोई कर्मचारी EPF यानी एम्प्लॉई प्रोविडेंट फण्ड का सदस्य बनता है तो वह EPS का भी सदस्य बन जाता है। कर्मचारी अपने वेतन का 12% EPF में योगदान देता है और उतनी ही राशि एम्प्लॉयर द्वारा भी दी जाती है। लेकिन एम्प्लॉयर के योगदान में एक हिस्सा EPS में जमा किया जाता है।
EPS खाते में योगदान वेतन का 8.33 % होता है। हालांकि अभी पेंशन योग्य वेतन अधिकतम 15 हजार रुपए ही माना जाता है। इससे यह पेंशन का हिस्सा अधिकतम 1250 प्रति माह होता है।
उदहारण से समझें
पर्सनल फाइनेंस एक्सपर्ट और ऑप्टिमा मनी मैनेजर्स के संस्थापक व सीईओ पंकज मठपाल बताते हैं कि अभी के नियमों के अनुसार यदि किसी कर्मचारी का वेतन रुपए 15000 या उससे अधिक है तो योगदान 1250 रुपए होगा और यदि वेतन रुपए 10 हजार है तो योगदान रुपए 833 होगा।
जब कर्मचारी सेवानिवृत होता है तब भी पेंशन की गणना करने के लिए अधिकतम वेतन रुपए 15 हजार माना जाता है। इस हिसाब से एक कर्मचारी EPS के तहत अधिकतम पेंशन 7500 रुपए ही पा सकता है।
15 हजार की लिमिट हटने से कर्मचारियों को होगा फायदा
पंकज मठपाल कहते हैं कि अब यदि पेंशन योग्य वेतन से 15 हजार रुपए का कैप निकाल दिया जाता है तो कर्मचारी को 7500 रुपए से अधिक पेंशन मिल सकती है। लेकिन इसके लिए एम्प्लॉयर द्वारा EPS में योगदान भी अधिक करना होगा।
सरकारी कंपनियों में तो यह फायदेमंद हो सकता है लेकिन निजी क्षेत्र की कंपनियों में कर्मचारी की नियुक्ति CTC यानी कॉस्ट टू द कम्पनी के आधार पर होती है। और ऐसे में यदि एम्प्लॉयर EPS में अधिक योगदान करता है तो या तो EPF में योगदान कम होगा या फिर कर्मचारी के हाथ में मिलने वाला शुद्ध वेतन कम हो जाएगा। जो भी हो सेवानिवृत्ति के बाद यदि अधिक पेंशन मिले तो मेरे हिसाब से तो यह अच्छा ही है।
रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली मासिक पेंशन की गणना
मासिक पेंशन की गणना का फॉर्मूला = (औसत सैलरी X पेंशन योग्य सेवा)/70
यहां औसत सैलरी यानी बेसिक सैलरी+ DA से मतलब नौकरी छोड़ने से पहले के पिछले 5 साल की सैलरी का औसत है। पेंशन योग्य सेवा यानी नौकरी में गुजारी गई अवधि। ध्यान रहे EPS के तहत मैक्सिमम पेंशनेबल सैलरी लिमिट 15000 रुपए प्रतिमाह तक है। यानी इतने ही बेसिक+ DA अमाउंट पर पेंशन कटेगी, फिर चाहे कर्मचारी की सैलरी कितनी ही ज्यादा क्यों न हो जाए।
यानी अगर किसी का मासिक औसत वेतन (अंतिम 5 साल के वेतन का औसत) 15 हजार रुपए है और नौकरी की अवधि 30 साल है तो उसे सिर्फ हर महीने 6,828 रुपए की ही पेंशन मिलेगी।
लिमिट हटने पर कितनी मिलेगी पेंशन
अगर 15 हजार की लिमिट हट जाती है और आपकी सैलरी 30 हजार है तो आपको फॉर्मूले के हिसाब से जो पेंशन मिलेगी वो ये होगी..
30,000 X 30)/70 = 12,857
यानी अगर किसी का मासिक औसत वेतन (अंतिम 5 साल के वेतन का औसत) 30 हजार रुपए है और नौकरी की अवधि 30 साल है तो उसे सिर्फ हर महीने 6,828 रुपए की ही पेंशन मिलेगी।
EPS का लाभ लेने के लिए शर्तें
- कर्मचारी को EPF का सदस्य होना चाहिए।
- नौकरी का कार्यकाल कम से कम 10 साल तक होना चाहिए।
- कर्मचारी 58 साल की उम्र पूरी कर चुका हो। 50 साल की उम्र पूरी कर लेने और 58 साल की उम्र से पहले भी पेंशन लेने का विकल्प चुना जा सकता है। लेकिन ऐसे में आपको घटी हुई पेंशन मिलेगी। इसके लिए फॉर्म 10D भरना होता है।
- कर्मचारी चाहे तो 58 साल पूरा होने के बाद भी EPS में योगदान कर सकता है और या तो 58 साल से ही या फिर 60 साल की उम्र से पेंशन शुरू करा सकते हैं।
- 60 साल की उम्र से पेंशन शुरू कराने पर टाले गए 2 साल के लिए 4% सालाना की दर से बढ़ी हुई पेंशन मिलती है।
- कर्मचारी की मौत होने पर उसका परिवार पेंशन पाने का हकदार होता है।
- अगर किसी कर्मचारी की सर्विस 10 साल से कम है तो उन्हें 58 साल की आयु में पेंशन अमाउंट निकालने का विकल्प मिलता है।
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