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ईवी ग्रीन है… ये अधूरा सच: एक इलेक्ट्रिक कार बनाने में पैदा होता है 4 हजार किलो घातक कचरा और 9 टन कार्बन, 13 हजार लीटर पानी भी लगता है

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  • Electric Vehicle ; In Making An Electric Car, 4 Thousand Kg Of Hazardous Waste And 9 Tonnes Of Carbon, 13 Thousand Liters Of Water Are Produced.

नई दिल्ली3 घंटे पहले

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इलेक्ट्रिक कारों को हम जितना ईको-फ्रेंडली समझते हैं, दरअसल ये उतनी हैं नहीं। सोसायटी ऑफ रेयर अर्थ के मुताबिक, एक इलेक्ट्रिक कार बनाने में इस्तेमाल होने वाला 57 किलो कच्चा माल (8 किलो लीथियम, 35 किलो निकिल, 14 किलो कोबाल्ट) जमीन से निकालने में 4,275 किलो एसिड कचरा व 57 किलो रेडियोएक्टिव अवशेष पैदा होता है। वहीं, ईवी बनाने में 9 टन कार्बन निकलता है, जबकि पेट्रोल में यह 5.6 टन है।

ईवी में 13,500 लीटर पानी लगता है, जबकि पेट्रोल कार में यह करीब 4 हजार लीटर है। रिकार्डो कंसल्टेंसी के अनुसार, अगर ईवी को कोयले से बनी बिजली से चार्ज करें, तो डेढ़ लाख किमी चलने पर पेट्रोल कार के मुकाबले 20% ही कम कार्बन निकलेगा। भारत में 70% बिजली कोयले से ही बन रही है। वहीं, ऑस्ट्रेलिया में हुआ शोध कहता है- 3300 टन लीथियम कचरे में से 2% ही रिसाइकिल हो पाता है, 98% प्रदूषण फैलाता है।

लीथियम को जमीन से निकालने से पर्यावरण होता है 3 गुना ज्यादा जहरीला
एरिजोना यूनिवर्सिटी के इकोलॉजी विभाग के एमिरेट्स प्रोफेसर गाई मैक्फर्सन कहते हैं कि लीथियम दुनिया का सबसे हल्का मेटल है। यह बहुत आसानी से इलेक्ट्रॉन छोड़ता है। इसी कारण ईवी की बैटरी में इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। ग्रीन फ्यूल कहकर लीथियम का महिमामंडन हो रहा है, पर इसे जमीन से निकालने से पर्यावरण 3 गुना ज्यादा जहरीला होता है। लीथियम की 98.3% बैटरियां इस्तेमाल के बाद गड्‌ढों में गाड़ दी जाती हैं। पानी के संपर्क में आने से इसका रिएक्शन होता है और आग लग जाती है।

उन्होंने बताया कि अमेरिका के पैसिफिक नॉर्थवेस्ट के एक गड्ढे में जून 2017 से दिसंबर 2020 तक इन बैटरियों से आग लगने की 124 घटनाएं हुईं। यही नहीं, जर्मनी में आईएफओ थिंक टैंक द्वारा किए शोध के मुताबिक, मर्सिडीज सी220डी सेडान प्रति किमी 141 ग्राम कार्बन छोड़ती है, जबकि टेस्ला मॉडल 3 का कार्बन उत्सर्जन 181 ग्राम है।

दुनियाभर की सभी 200 करोड़ कारें ईवी में बदल दें तो असीमित एसिड कचरा निकलेगा, जिसे निपटाने के साधन ही नहीं हैं

क्या सभी पेट्रोल-डीजल कारों को ईवी में बदलने से प्रदूषण का हल हो जाएगा?
एमआईटी एनर्जी इनीशिएटिव के शोधकर्ताओं के मुताबिक, दुनिया में करीब 200 करोड़ वाहन हैं। इनमें 1 करोड़ ही इलेक्ट्रिक हैं। अगर सभी को ईवी में बदला जाए, तो उन्हें बनाने में जो एसिड कचरा निकलेगा, उसके निस्तारण के पर्याप्त साधन ही नहीं हैं। ऐसे में पब्लिक ट्रांसपोर्ट बढ़ाकर और निजी कारें घटाकर ही ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम कर सकते हैं।

पेट्रोल कारों से ईवी बेहतर क्यों है?
पेट्रोल कार प्रति किमी 125 ग्राम और कोयले से तैयार बिजली से चार्ज होने वाली इलेक्ट्रिक कार प्रति किमी 91 ग्राम कार्बन पैदा करती है। इंटरनेशनल काउंसिल ऑन क्लीन ट्रांसपोर्टेशन के अनुसार, यूरोप में ईवी 69% कम कार्बन करती है, क्योंकि यहां 60% तक बिजली अक्षय ऊर्जा से बनती है।

अक्षय ऊर्जा और ईवी को लेकर भारत सरकार ने क्या लक्ष्य तय किए हैं?
केंद्र का लक्ष्य है- 2030 तक 70% कॉमर्शियल कारें, 30% निजी कारें, 40% टू-व्हीलर व 80% थ्री-व्हीलर वाहनों को इलेक्ट्रिक करना है। वहीं, 2030 तक 44.7% बिजली अक्षय ऊर्जा से बनाएंगे, अभी 21.26% है।

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