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आपकी ‌‌क्रिकेट स्टोरी भास्कर ऐप पर: ये कहानी बक्सर के इंद्र की है, पापा के डर के मारे तकिए में रेडियो भरकर मैच सुनते थे

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  • This Story Is Of Indrabhushan Of Patna, He Used To Take Out The Cotton Of The Pillow And Listen To The Match By Filling The Radio In It To Save Him From His Father.

19 मिनट पहले

क्रिकेट के त्योहार T-20 वर्ल्ड कप पर दैनिक भास्कर ऐप अपने ऑडिएंस को एक गिफ्ट दे रहा है। इसमें हर उस दैनिक भास्कर ऐप पढ़ने और देखने वाले के पास मौका है, खुद की कहानी पब्लिश कराने का। वीडियो और लिख‌ित दोनों फॉरमेट में। बस आपको अपनी क्रिकेट से जुड़ी सबसे मजेदार कहानी सुनानी होती है, लिखकर या मोबाइल से रिकॉर्ड करके। हमें आप [email protected] पर ईमेल या 9899441204 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।

आज की कहानी बक्सर के इंद्रभूषण की-

मेरा घर बिहार के बक्सर जिला के नेनुआं गांव में है। बचपन क्रिकेट की दीवानगी ऐसी थी कि सुबह लोटा लेकर मैदान में निकलते थे तो साथ में रेडियो में क्रिकेट कमेंट्री भी चलती रहती थी।

लेकिन मेरे पापा मेरे इस काम से बहुत खफा रहते थे। कई बार तो कनपटी पर तमाचा रशीद होते-होते बच जाता था। एक बार टीम इंडिया वेस्टइंडीज के दौरे गई थी। वहां के मैच हमारे यहां के टाइम से सुबह 3 बजे शुरू हो जाते थे।

मैं सुबह-सुबह रेडियो लगा के बैठा था। पापा करीब चार बजे आए। जगता देखकर खुश हो गए। लेकिन इधर रेडियो ने कहा कि ये लगा बीएसएनएल चौका, कनेक्टिंग इंडिया। उधर पापा ने रेडियो उठाई और पटकने के लिए हाथ उठाए।

शुक्र हो मम्मी का, वो भागते आईं और हाथ रेडियो छीन लीं। बोलीं कि वो रेडियो छिपाकर रख देंगे और दोबारा हम तीनों भाइयों में से किसी भी को नहीं देंगी।

हमें लगा कि अब तो गया। लेकिन शाम होते-होते हमने मम्मी से रेडियो मांग ही लिया। लेकिन उन्होंने ये कसम दिलाई कि किसी हाल में पापा नहीं देखने चाहिए।

अब कोई तरीका नहीं सूझ रहा था क्या किया जाए। फिर एक आइडिया आया कि तकिए की सारी रु‌ई निकाल ली जाए। और उसके अंदर रेडियो को भरकर ऊपर से तकिए की खोल चढ़ा दी जाए।

किया भी यही। अब हमारा सब मस्त चलने लगा। दो-दिन चार दिन बीता, हम लोग बेफिक्र मैच सुनने लगे। एक दिन सुबह फिर करीब चार बजे पापा आए और पढ़ने के लिए बोल कर चले गए। हम लोग नाम का किताब-कॉपी लेकर बैठे। लेकिन दिमाग तो पूरा क्रिकेट में था।

तभी अचानक पापा आए और उन्होंने सीधे तकिए को उठाया और दे पटक मारा। तकिए के साथ रेडियो भी चूर-चूर हो गया। पूरे दिन घर में बवाल कटता रहा। उन्हें पूरे परिवार से धोखा मिलने जैसा महसूस हो रहा था। फिर हम लोगों ने कान पकड़कर माफी मांगी। तब जाकर मामला शांत हुआ।

घर बवाल तो हमने माफी मांगकर शांत करा लिया लेकिन अंदर जो क्रिकेट सुनने का तूफान उठ रहा था, उसे शांत नहीं कर पा रहे थे। फिर पड़ोसी के चाचा के पास गए। उनसे ज्यादा बनती नहीं थी लेकिन हम एकदम प्यार से जाकर बोले कि अपना रेडियो की आवाज थोड़ी तेज रखा कीजिए।

जब उनके यहां रेडियो चलता तो हम लोग स्कोर पर्ची पर लिखकर और पढ़ाई के दौरान एक-दूसरे को दिखाते रहते।

ये तो थी इंद्रभूषण की कहानी। आपकी कहानी भी इसी तरह दैनिक भास्कर ऐप पर आ सकती है। ईमेल और फोन नंबर हमने ऊपर दिया है। वहीं पर लिखकर या वीडियो बनाकर हमें भेज दीजिए।

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