कहानी LIC की: एक समय बैलगाड़ी से घर-घर पहुंचते थे एजेंट, आज 65% हिस्सेदारी के साथ देश की सबसे बड़ी इंश्योरेंस कंपनी
कमलजी सहाय3 दिन पहले
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‘जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी’ के टैगलाइन वाली LIC का इनिशियल पब्लिक ऑफर (IPO) 4 मई को सब्सक्रिप्शन के लिए खुल रहा है। संभावना है कि डिसइन्वेस्टमेंट की इस प्रोसेस के बाद LIC मार्केट वैल्यू के आधार पर देश की सबसे वैल्यूएबल कंपनी बन जाएगी। आज से 66 साल पहले LIC की शुरुआत हुई थी और कई लोग अभी भी इंश्योरेंस मतलब LIC ही समझते हैं। आखिर LIC ने यह मुकाम कैसे हासिल किया, इसी की कहानी…
देश में ऐसे काफी कम परिवार होंगे, जो डायरेक्ट या इनडायरेक्ट रूप से LIC से न जुड़े हो। फिर चाहे वह बीमा धारक हो या एजेंट या फिर इसमें कार्य करने वाला कर्मचारी। देशभर में इसके करीब 13 लाख एजेंट हैं। अहम बात यह भी है कि इन्हें मिलने वाले करीब 20 हजार करोड़ रुपए के कमीशन से भी न जाने कितने परिवारों के पेट पल रहे हैं।
कैसे अस्तित्व में आई एलआईसी?
साल 1947 में अंग्रेज अपने पीछे ऐसा देश छोड़ गए थे, जिसकी करीब 36 करोड़ आबादी में से ज्यादातर सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा से कोसों दूर थी। उस समय हाई डेथ रेट और एक ही व्यक्ति की कमाई पर निर्भरता परिवारों की आर्थिक सुरक्षा वक्त की बड़ी जरूरत थी। तब जीवन बीमा को इसका सबसे अच्छा समाधान माना गया, लेकिन उस समय देश में इस क्षेत्र में केवल प्राइवेट कंपनियां ही काम कर रही थीं।
सरकार को महसूस हुआ कि प्राइवेट कंपनियां यह दायित्व नहीं निभा पाएंगी। ऐसे में एक ऐसी सरकारी एजेंसी का विचार पनपा जो आबादी के एक बड़े हिस्से तक पहुंच सके। 19 जून 1956 को संसद ने लाइफ इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन एक्ट पारित कर इसके तहत देश में कार्य कर रहीं 245 प्राइवेट कंपनियों का अधिग्रहण कर लिया। इस तरह 1 सितंबर 1956 को भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) अस्तित्व में आया।
पहले दिन से ही 27 हजार कर्मचारी
चूंकि उस समय देश में काम कर सभी बीमा कंपनियों को मिलाकर एलआईसी का गठन हुआ था और इन सभी कंपनियों में करीब 27 हजार कर्मचारी काम कर रहे थे। ये सभी कर्मचारी एलआईसी के कर्मचारी कहलाए। इसलिए एलआईसी पहले दिन से ही भारत की टॉप एम्प्लॉयर कंपनियों में शुमार हो गई। उस समय 50 लाख पॉलिसियां अस्तित्व में थीं, जो करीब एक हजार करोड़ रुपए का बीमा कवर प्रदान कर रही थीं। आज एलआईसी में 1.2 लाख कर्मचारी काम करते हैं, जबकि करीब 30 करोड़ बीमा पॉलिसियां अस्तित्व में हैं।
बैलगाड़ियों से पैदल तक…
LIC के शुरुआती दिनों में बीमा ऐसा विषय था, जिस पर लोग बात करने से कतराते थे। एजेंटों के लिए लोगों को समझाना बड़ी दिक्कत का काम था, क्योंकि इसमें व्यक्ति को अपनी वर्किंग लाइफ के एक बड़े हिस्से तक निवेश करना था और उसका रिटर्न भी स्वयं को मिलने वाला नहीं था। ऐसे में सिक्योरिटी कवर के साथ कुछ ऐसे प्लान जोड़े गए ताकि लोगों को अपने जीवनकाल में ही कुछ रिटर्न भी मिल सके।
स्कीम के बारे में लोगों को समझाने के लिए शुरुआती योद्धाओं को काफी मेहनत करनी पड़ी। उन्हें ट्रेन, बस, मोटरसाइकिल, साइकिल से लेकर बैलगाड़ियों तक में जाकर प्रचार करना पड़ा। वे कई-कई किमी पैदल चलते। लेकिन उसी का नतीजा है कि आज ग्रामीण अंचलों में एलआईसी की 12 करोड़ पालिसियां हैं।
अनूठा वर्क कल्चर…
शुरुआती दो दशकों में LIC को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान ब्रांच मैनेजर्स का रहा। हालांकि अधिकांश ब्रांच मैनेजर्स ग्रैजुएट भी नहीं थे, लेकिन वे बहुत मेहनती थे और उनमें लोगों को अपने साथ जोड़ने की जबरदस्त काबिलियत थी। उनमें से कुछ तो एजेंट से शुरुआत कर मैनेजर के लेवल तक पहुंचे थे। वे मैनेजर्स यह जानते थे कि अच्छे एजेंट्स, जो बिजनेस लाने के आज भी महत्वपूर्ण टूल्स हैं, की पहचान कर उन्हें कैसे प्रशिक्षित और प्रोत्साहित करना है।
वे कभी भी किसी एजेंट के घर चाय पीने चले जाते और उनके सुख-दुख में हमेशा साथ रहते। इससे एजेंटों के साथ फैमिली बॉन्डिंग बनने में सहायता मिली। मैनेजमेंट की इस शैली ने उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक ऐसा वर्क कल्चर बना दिया कि उसकी तोड़ किसी प्रोफेशनल कंपनी के पास भी नहीं थी। यह वर्क कल्चर केवल एजेंट्स, डेवलपमेंट ऑफिसर और ब्रांच मैनेजर तक ही सीमित नहीं था, बल्कि इसमें बड़े से बड़े अधिकारी भी शामिल थे।
टर्निंग पॉइंट साबित हुआ डिसेंट्रलाइजेशन
LIC में लंबे समय तक कामकाज का सेंट्रलाइजेशन रहा। लेकिन प्राइवेट सेक्टर से बढ़ते कॉम्पिटिशन ने 1980 के दशक में इसकी रिस्ट्रक्चरिंग और डिसेंट्रलाइजेशन की जरूरत को पैदा किया। शुरुआती हिचक के बाद LIC के कर्मचारी इसके लिए राजी हुए। लेकिन यह LIC के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ और इसके बाद इसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। यह इसी का नतीजा था कि जहां डिसेंट्रलाइजेशन से पहले यानी साल 1985 में नई पॉलिसियों के तहत सम-एश्योर्ड का आंकड़ा 7000 करोड़ रुपए था, वही यह 1999 में 92,000 करोड़ रुपए को पार कर गया।
तेजी से होता गया विस्तार
1956 में LIC के देशभर में 5 जोनल ऑफिस, 33 डिवीजनल ऑफिस और 209 ब्रांच ऑफिस थे। आज 8 जोनल ऑफिस, 113 डिविजनल ऑफिस और 2048 फुली कंप्यूटराइज्ड ब्रांच ऑफिस हैं। इनके अलावा 1381 सैटेलाइट ऑफिस भी हैं। 1957 तक LIC का कुल बिजनेस करीब 200 करोड़ रुपए था। आज यह 5.60 लाख करोड़ है।
चेन्नई स्थित एलआईसी की भव्य इमासत। 1998 तक यह चेन्नई की सबसे ऊंची इमारत रही।
विकास में योगदान
LIC के फंड की करीब 80% राशि सोशल स्कीम्स और इंफ्रास्टक्चर पर खर्च होती हैं। 2017-22 की पंचवर्षीय योजना में इसने 28,01,483 करोड़ रु. का योगदान दिया है। 1981 में इसने शहरों और गांवों में विद्युतीकरण के लिए राज्यों के इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड्स को 1200 करोड़ रुपए दिए थे। LIC ने जलापूर्ति और सीवेज योजनाओं पर 322 करोड़ रुपए खर्च किए हैं।
*लेखक LIC में कंसलटेंट और पूर्व एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर रह चुके हैं। उन्होंने एलआईसी ने ‘द एलआईसी स्टोरी : मैकिंग ऑफ़ इंडियाज़ बेस्ट-नोन ब्रांड’ नाम से किताब लिखी है।
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