WFI अध्यक्ष VS रेसलर्स: विनेश बोलीं- 2013 से प्रताड़नाएं झेल रही हूं, अब हिम्मत जुटाई तो प्रूफ मांगे जा रहे; साक्षी बोलीं: हम झूठ नहीं बोल रहे
पानीपत2 मिनट पहले
- कॉपी लिंक
भारतीय कुश्ती संघ (WFI) के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर यौन शोषण के आरोप लगाने वाले रेसलर्स एक बार फिर सामने आए हैं। इस बार उन्होंने अपनी हर बात बहुत ही खुले तरीके से सार्वजनिक मंच पर कही। एक कार्यक्रम में विनेश फोगाट ने कहा कि हर वक्त जान हथेली पर रख कर इधर-उधर जाना पड़ता है।
पावरफुल व्यक्ति से सीधी टक्कर ली है। पहले भी धमकियां मिल चुकी है। 2013 से प्रताड़नाएं झेलती आ रही हूं। पुरूष प्रधान देश में लड़कियों का बोलना भी उचित नहीं माना जाता, मैंने तो आरोप लगाए हैं। वहीं, साक्षी ने कहा हमसे प्रूफ मांगे जा रहे हैं, जबकि हम झूठ नहीं बोल रहे।
सवाल: आपने शारीरिक शोषण जैसी बातें कब से देखती आ रही है?
विनेश फोगाट ने कहा 2013 से मैं नेशनल में सीनियर कैंप में हूं। जब हम जूनियर होते हैं, तब तो खेलने से मतलब होता है। किसी बस खाना और नींद मिल जाए। मगर, जब हम सीनियर में आते हैं तो हमारी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। लोग आपको हर प्रतियोगिता में वॉच आउट करने लगते हैं।
तभी हमें बहुत चीजें समझ आती है कि कौन हमें किस नजरिए से देख रहा है। क्योंकि जब हम जूनियर होते हैं तो हमें फैमली सपोर्ट करती है। लेकिन जब हम सीनियर हो जाते हैं, तो एक हमारी खुद की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। अपने अनुभवों से दुनिया को देखने और समझने का दौर शुरू हो जाता है। उस दौरान मैंने ये सब देखना और महसूस करना शुरू किया।
बाहर नहीं, गलत के खिलाफ घर पर भी मेरी आवाज उठती है
मुझे एक चीज हमेशा फील होती है कि जब एक महिला खिलाड़ी गलत को गलत बोलती है तो उसे इस नजरिए से देखा जाता है कि ये बोल कैसे रही है। क्या हमारे अंदर भावनाएं नहीं है। क्या हमें पीड़ा नहीं होती है। ऐसा क़तई नहीं है कि मैं बाहरी दुनिया में ही गलत को गलत बोलती हूं। अगर मेरे घर में भी कोई गलत करता है तो उस पर भी मेरी आवाज उठती है। ये सब मुझे मेरे परिवार से ही सीखना को मिला है।
मेरी मां ने हमेशा गलत को गलत बोला है। चाहे कितनी भी मुश्किलें आ जाए। बहुत ही चुनौतीपूर्ण समय में भी मां ने गलत के खिलाफ हमेशा आवाज उठाई है, कभी नहीं सोचा कि उनके तीन बच्चे हैं। अगर उन्हें कुछ हो गया तो बच्चों का क्या होगा। क्योंकि मां की सोच है कि अगर अपने लिए हम नहीं बोलेंगे, तो कोई दूसरा भी नहीं बोलेगा। यहीं से सीखने को मिला कि मैं तो आज इस मुकाम पर हूं कि पूरा देश मुझे सुन सकता है।
मेरे पास रेसलिंग के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं
काफी साल लगे उस चीज को बाहर आने में, बोलने में। मैं आज भी बाहर आई हूं तो अपना कैरियर दांव पर लगा कर आई हूं। अपनी जान हथेली पर लेकर आई हूं। क्योंकि जिस व्यक्ति से हमारा सामाना है, वह काफी राजनीतिक तौर पर स्ट्रांग है। पैसा उनके पास काफी है। पावर में वे बैठे हैं। ओलंपिक आने वाले हैं। क्योंकि मैंने रेसलिंग ही बचपन से अच्छे से की है। न मैंने पढ़ाई अच्छे से की है। न किसी दूसरे ऐसे सोर्स में काम किया है कि मेरे पास हमेशा दूसरा ऑपशन रहे। मेरे पास सिर्फ और सिर्फ एक ही ऑप्शन है वह है रेसलिंग।
हमें पता था अब नहीं, तो कभी नहीं बोल पाएंगे
इस रेसलिंग ने हमें इतना कुछ दिया है। जूनियर खिलाड़ी हमारी ओर आस की नजर से देखती हैं। हम उस वक्त उनकी उम्मीद बन जाती हैं। ऐसे में हमारी भी एक जिम्मेदारी बन गई थी कि क्यों न हमें इस पर भी बोलना चाहिए। एक समय के बाद हर एथलीट अपनी गेम छोड़ देता है। उसके बाद आपकी आवाज कोई नहीं सुनेगा। हमें ये पता था कि अगर अब हम अभी नहीं बोलेंगे, तो कभी नहीं बोल पाएंगे। अब हमें महसूस भी होता है कि हमने पहले क्यों नहीं बोला। इतना सब कुछ सहन करने की जरूरत क्या थी। लेकिन हमारा देश पुरूष प्रधान समाज है। महिलाओं की आवाज को पसंद नहीं किया जाता है।
कोई अध्यक्ष से मांगे उनकी बेगुनाही के सबूत
अभी भी हमसे पूछा जा रहा है कि आपके पास प्रूफ क्या हैं। जबकि एक महिला आंखों में आंखे डालकर बोल रही है, तो क्या वह एक सबूत नहीं है। अगर हम किसी बाजार या पब्लिक प्लेस पर जा रहे हैं, तो वहां कोई हमसे छेड़खानी करता है तो क्या हमारा कैमरा ऑन रहता है उस वक्त। क्या हम उसको ये कहेंगे कि प्लीज एक बार छेड़खानी कीजिए, मैं आपको रिकॉर्ड करूंगी और प्रूफ बनाउंगी। अगर ऐसा किसी पुरूष के साथ भी हो जाए, तो प्रूफ उसके पास भी नहीं मिलेगा। हमने जिस पर इल्जाम लगाया है, उससे सबूत लिया जाए। कि आपने बिल्कुल कुछ नहीं किया है, आप सबूत दीजिए।
टोक्यो ओलंपिक के बाद मिली धमकियां
डर यही है कि हमारा रेसलिंग हमसे कोई छीन लेगा। ओलंपिक के बाद मुझे बहुत मानसिक तौर पर टॉर्चर किया गया। टोक्यो के बाद बहुत बुरा बर्ताव किया गया। जबकि उस वक्त पर मेरे से ज्यादा पीड़ा किसी दूसरे को नहीं हो रही होगी। उस वक्त पर स्पोर्ट करना चाहिए था।
बेशक हमारी कितनी भी गलतिया रही हो। हमारा मेडल आया , नहीं आया। ऐसे में कोई एक भी अगर यही बोल दे कि कोई बात नहीं अगली बार करेंगे। एक यही शब्द काफी होता गिरे हुए को उठाने के लिए। टोक्यो के बाद मेरे पति के पास कॉल आती थी कि आप ऐसे कैसे बोल सकते हैं। आप मीडिया में कुछ नहीं बोलना। नहीं तो आपको मरवा दिया जाएगा। आप कैंप में फैमली से इतनी दूरी रहते हैं, आपके साथ कुछ भी हो जाएगा।
अकेली ने आवाज उठाई तो निकाले गए शॉ-काज नोटिस
अगर आज इस मुकाम पर आने के बाद भी मुझे और मेरे परिवार को इतना डर है, तो नॉर्मल लड़कियां तो कैसे बोलेंगी। वे चुप रहेगी। हम भी इतने सालों से चुप थे। हमारे अंदर हौंसला तब आया है, जब हमारा एक ग्रुप बना है। सिंगल तो मैंने बहुत बारी गलत को गलत बोला। मगर उस वक्त मेरे बोलने पर शॉ-काज नोटिस निकाल दिया जाता था। लिखा जाता था कि आपके अनुशासन में नहीं रहते हैं।
जबकि कोई भी एथलिट इस मुकाम पर बिना अनुशासन के पहुंच ही नहीं सकता है। मैं चाहती हूं कि रेसलिंग जब मैं छोडूं तो अपनी मर्जी से छोडूं। न कि किसी की दादागिरी से, किसी के दबाब से। मेरा ओलंपिक से बहुत ज्यादा अटैचमेंट है। मुझे ओलंपिक न खेलने दिया जाना, मेरे लिए ऐसा हो जाएगा कि इससे अच्छा तो मरना ही बेहतर है। अगर कोई इससे छेडछाड़ करेगा, तो मैं उसे छोड़ूगी नहीं।
साक्षी ने कहा कि रेसलिंग और रेसलर्स बचाने के लिए उठाई आवाज
वो प्रूफ मांग रहे हैं। हमें बहुत लड़कियों ने बताया है, बहुत आगे आई भी है। मुझे रेसलिंग करते हुए 18 साल हो गए हैं। मैं अक्सर बस में ट्रैवल करते हुए, बाहर आते-जाते देखती ही हूं कि महिलाओं से किस तरह का बर्ताव हो रहा है। जंतर-मंतर पर देश के बड़े-बड़े ओलंपियन बैठे हुए थे।
क्या हम इतने बड़े मुकाम पर आकर, अपना कैरियर दांव पर लगाकर, अपनी जान हथेली पर लेकर वहां बैठकर झूठ बोलेंगे क्या? अब हमसे प्रूफ मांगे जा रहे हैं। ऐसे मन टूटता है कि इतने सालों की हिम्मत जुटा कर हमने ये आवाज उठाई है और हमसे प्रूफ मांगे जा रहे हैं। मुझसे तो बेशक आज रेसलिंग छुड़वा दें। मगर हमने आवाज इसलिए उठाई है, ताकि आने वाले रेसलर्स को ये सब न झेलना पड़े।
For all the latest Sports News Click Here
For the latest news and updates, follow us on Google News.