NSE से उपजा विवाद: टॉप मैनेजमेंट पद पर लंबे समय तक एक ही व्यक्ति को न रखें, समय रहते इसे हल करना चाहिए
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मुंबई31 मिनट पहले
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नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) में कॉर्पोरेट गवर्नेंस के मामले ने पूरे फाइनेंशियल सिस्टम को चिंतित कर दिया है। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि किसी भी कंपनी में टॉप मैनेजमेंट के पद पर एक ही व्यक्ति को लंबे समय तक नहीं रखना चाहिए। इसे समय रहते ही हल करना चाहिए।
सेबी के पूर्व चेयरमैन की राय
सेबी के पूर्व चेयरमैन और एक्सीलेंस एनेबलर्स के चेयरमैन एम. दामोदरन ने कहा कि NSE की घटना के बाद सभी कॉरपोरेट्स को तुरंत कुछ बातों को अमल में लाने की जरूरत है। पहला तो यह कि जब एक या दो वही व्यक्ति टॉप मैनेजमेंट पदों पर वर्षों तक काबिज रहते हैं, तो आगे चलकर यह घातक हो जाता है।
सभी फैसले को कंट्रोल में करने की लालसा
उनका कहना है कि किसी अथॉरिटी के उच्च पदों पर बैठे व्यक्तियों के अंदर यह लालसा होती है कि वे अपने आप को संगठन में खुद की पोजिशन इतना मजबूत कर लें कि किसी भी तरीके और कम से कम प्रयास कर सभी फैसले को अपने कंट्रोल में कर लें। निश्चित रूप से यह एक रिस्क फैक्टर है। इसे हर कंपनियों को समय रहते हल कर लेना चाहिए।
MD की नियुक्ति भी अड़ंगा का काम करती है
दामोदरन ने कहा कि दूसरा मुद्दा यह है कि बोर्ड के एक गैर-कार्यकारी (non-executive) सदस्य के रूप में MD की नियुक्ति होती है। कई मामलों में यह प्रक्रिया नए नियुक्त हुए MD को दिए गए अधिकारों में अड़ंगा डालने का काम करता है। इससे भी बड़ी समस्या यह है कि जब पूर्व और वर्तमान पदाधिकारी मिलकर काम करते हैं और संगठन को एक व्यक्तिगत जागीर की तरह चलाते हैं तो वे बाकी बोर्ड के साथ जानकारी साझा करना जरूरी नहीं समझते। साथ ही कॉर्पोरेट संस्थाओं में बोर्ड की भूमिका को महत्व नहीं देते हैं।
बोर्ड के पदों को भरना गंभीर समस्या
उन्होंने कहा कि मैनेजमेंट से संबंधित लोगों के साथ बोर्ड के पदों को भरना एक और गंभीर समस्या हो जाती है। अगर कोई कठिन प्रश्न नहीं पूछे गए और कोई उत्तर नहीं दिया गया तो इससे इससे बोर्ड और मैनेजमेंट के बीच शांतिपूर्ण माहौल कायम हो सकता है। बोर्ड में लेने से पहले उसके पिछले ट्रैक रिकार्ड और उसकी उपलब्धियों पर जरूरत से ज्यादा ध्यान देना एक गंभीर मामला बन सकता है।
कानून और नियमों के तहत हो
वे कहते हैं कि जब ऐसा होता है तो बोर्ड से कानून और नियमों के अनुसार जो होना चाहिए और जो होता है इसमें एक गंभीर अंतर होता है। सूचना ही वह ईंधन है जिस पर बोर्ड कार्य करता है। बोर्ड जो पूरा, सही और समय पर जानकारी की मांग नहीं करता है, वे अक्सर मैनेजमेंट को वो सब करने की छूट देते हैं जो वह करना चाहता है।
रेगुलेटर को सही समय पर सूचना मिले
NSE मामले ने दिखा दिया है कि बोर्ड भी रेगुलेटर से सही समय पर सूचनाओं का आदान-प्रदान नहीं कर सका। हमारे विचार में, रेगुलेटर को सही सही जानकारी साझा न करना एक अलग से दंडनीय अपराध के रूप में माना जाना चाहिए। कई संगठन दावा करते हैं कि उनके पास मजबूत सुरक्षा सिस्टम हैं। इसलिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि किसी भी मैनुअल ओवरराइड की मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए।
सरकारी कंपनियां निजी कंपनियों से सीखें
सरकारी कंपनियों को प्राइवेट कंपनियों से सीख लेनी चाहिए, जहां किसी दूसरे बैंक बैंक का व्यक्ति चीफ विजिलेंस ऑफिसर (CVO) के रूप में कार्य करता है। चूंकि उसका कैरियर ग्रोथ उस बैंक पर निर्भर नहीं है जहां वह CVO के रूप में कार्य करता है। इससे संबंधित व्यक्ति को मैनेजमेंट के सामने झुकने का कोई सवाल नहीं उठता है।
गंभीर शिकायतों को सुलझाएं
मैनेजमेंट के लिए सिस्टम पर पूरा नियंत्रण रखना और गंभीर शिकायतों को ऑडिट कमेटी के चेयरमैन तक पहुंचाना किसी भी तरह से अच्छा नहीं है। कम्प्लायन्स ऑफिसर की भूमिका महत्वपूर्ण है। यह इन व्यक्तियों पर निर्भर करता है कि वे बोर्ड और साथ ही रेगुलेटर को सचेत करें कि क्या टॉप मैनेजमेंट के आशीर्वाद से कोई गलत काम हो रहा है।
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