पहली गोल्ड मेडल विजेता महिला अवनि की कहानी: एक्सीडेंट में दोनों पैर गंवाए, डिप्रेशन में चली गईं, फिर शूटिंग रेंज गईं तो दिलचस्पी जागी, पर पहली बार गन उठा तक नहीं पाईं थीं
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- After The Accident, She Became So Weak That For The First Time Even The Gun Did Not Rise In The Shooting Range, Today Avani Proudly Raised The Head Of The Whole Country.
जयपुर3 घंटे पहलेलेखक: निखिल शर्मा
राजस्थान की अवनि लेखरा ने इतिहास रच दिया। टोक्यो पैरालिंपिक में अवनि लेखरा ने 10 मीटर एयर राइफल में भारत को पहला गोल्ड दिलाया है। फाइनल में 249.6 पॉइंट हासिल कर उन्होंने यूक्रेन की इरिना शेटनिक के रिकॉर्ड की बराबरी की। शूटिंग में गोल्ड जीतने के साथ ही अवनि देश की पहली महिला खिलाड़ी बन गई, जिसने ओलिंपिक या पैरालिंपिक में गोल्ड मेडल जीता हो।
जयपुर की रहने वाली अवनि ने 9 साल पहले कार एक्सीडेंट में अपने दोनों पैर गंवा दिए थे। अवनि व्हीलचेयर पर हैं। उनके मेडल जीतते ही उनके पिता प्रवीण लेखरा ने भास्कर से बातचीत में कहा, “उन्हें यकीन नहीं हो रहा कि उनकी बेटी ने गोल्ड जीत लिया है। मेडल की उम्मीद थी, मगर यह नहीं सोचा था कि गोल्ड आ जाएगा। शब्द नहीं हैं, कैसे बयान करूं।”
अवनि के पिता रेवेन्यू अपील अधिकारी हैं और फिलहाल गंगानगर में पोस्टेड हैं। उन्होंने बताया, “हमने टीवी पर ही मैच देखा, अब तक उससे बात नहीं हुई है, 2 बजे उससे बात होगी।” पिता ने हमें बताई अवनि के संघर्ष की कहानी..
प्रवीण लेखरा ने कहा, “एक्सीडेंट के बाद बेटी पूरी तरह टूट चुकी थी। चुप रहने लगी थी। किसी से बात नहीं करती थी, पूरी तरह डिप्रेशन में चली गई थी। इतनी कमजोर हो गई थी कि कुछ कर नहीं पाती थी। किस खेल में इसे इन्वॉल्व करूं यही सोचता रहता था, एथलेटिक्स में नहीं भेज सकते थे, क्योंकि जान नहीं बची थी। आर्चरी में कोशिश की, मगर प्रत्यंचा ही नहीं खींच पाई। इसके बाद शूटिंग में कोशिश की। पहली बार तो इससे गन तक नहीं उठी थी, मगर आज इसकी वजह से टोक्यो पैरालिंपिक के पोडियम पर राष्ट्रगान गूंजा।
एक्सीडेंट के बाद मन बहलाने के लिए इसे शूटिंग रेंज लेकर गया था। वहीं से इसमें इंट्रेस्ट डेवलप होने लगा और आज इस मुकाम पर है। काफी समय से अवनि मेहनत कर रही थी, जब तक थककर चूर नहीं हो जाती, रुकती नहीं थी। कोविड के दौरान जब शूटिंग रेंज बंद हो गई, तो उसकी जिद के कारण डिजिटल टारगेट घर लाकर लगाना पड़ा। उस दौर में टारगेट ढूंढने में काफी परेशानी आई। बड़ी मुश्किल से टारगेट ढूंढकर हम घर ला सके।”
लॉकडाउन में शूटिंग रेंज बंद हो गई तो अवनि के पिता ने उसकी जिद पर घर में ही डिजिटल टागरगेट लगवाया। फोटो में घर में शूटिंग की प्रैक्टिस करती अवनि।
पिता का दर्द भी बाहर आया : पैरालिंपिक को लोग कॉम्पिटीशन नहीं मानते
पिता को दुख है कि बेटी ने मेडल तो जीत लिया, मगर इसे स्वीकारा नहीं जाता है। पैरालिंपिक के लिए कहते हैं कि वहां कॉम्पिटिशन नहीं होता है। अच्छा खेल लें तो कहते हैं बैठे-बैठे ही तो निशाना लगाना होता है। इसमें क्या खास है, कोई भी कर सकता है, लेकिन यह इतना आसान नहीं है। इतनी विपरीत परिस्थितयों के बावजूद मेडल लाना गर्व की बात है।
पैरालिंपिक में महिलाओं का तीसरा मेडल, ओलिंपिक में अब तक 8
पैरालिंपिक इतिहास में भारत के लिए महिलाओं ने तीसरा मेडल जीता है, इससे पहले शॉटपुट में दीपा मलिक और इसी पैरालिंपिक में भाविना पटेल ने टेबल टेनिस में मेडल जीता है।
वहीं, ओलिंपिक में महिलाओं ने भारत को अब तक 8 मेडल दिलाए हैं। इनमें पीवी सिंधु ने 2 और कर्णम मल्लेश्वरी, साइना नेहवाल, मैरिकॉम, साक्षी मलिक, मीराबाई चानू, लवलीना बोरगोहेन भारत को एक-एक मेडल दिला चुकी हैं। हालांकि, कोई भी महिला आज तक भारत को गोल्ड नहीं दिला पाई।
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