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1936-ओलिंपिक का गोल्ड जीतने के बाद क्यों रोए थे ध्यानचंद: साथियों से बोले- मैं रो रहा हूं, क्योंकि मैंने परतंत्र भारत के लिए मेडल जीता

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9 मिनट पहले

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हॉकी के मैदान पर दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति को परास्त करने के बाद मेजर ध्यानचंद खुश नहीं थे। उनके मन में एक टीस थी और वो टीस थी गुलामी की। आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर मेजर मेजर ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार बता रहे हैं अपने पिता की उस जीत के बारे में।

अशोक कुमार बताते हैं कि 15 अगस्त 1936 को जर्मनी में हॉकी टीम के खिलाड़ी और वहां मौजूद हर भारतीय जीत का जश्न मना रहा था, लेकिन ध्यानचंद उस जश्न में शामिल नहीं थे। जब टीम के साथियों ने इस बात पर गौर किया तो ध्यानचंद की तलाश शुरू कर दी। काफी ढूंढने के बाद मेजर ध्यानचंद साथियों को ओलिंपिक विलेज में मिले। जहां सभी देशों के नेशनल फ्लैग लगे हुए थे। ध्यानचंद वहां बैठे रो रहे थे। जब साथियों ने पूछा- ध्यान, आज हमने इतनी बड़ी जीत हासिल की है, हमने हिटलर की टीम को हराया है और तू रो रहा है।

इस पर ध्यानचंद ने जवाब दिया था- मैं इसलिए रो रहा हूं कि मैंने परतंत्र भारत के लिए मेडल जीता। यदि हम स्वतंत्र होते तो यहां हमारे देश का तिरंगा लहरा रहा होता। काश, हम आजाद भारत के लिए ओलिंपिक मेडल जीतते।

हालांकि ध्यानचंद का वह सपना 12 साल बाद 1948 के लंदन ओलिंपिक में पूरा हुआ। तब ध्यानचंद बतौर कोच भारतीय टीम का हिस्सा थे। उनकी कोचिंग में भारतीय टीम ने अंग्रेजों को 4-0 से हराया था। यह स्वतंत्र भारत का पहला ओलिंपिक गोल्ड था। वर्ल्ड वार-2 के कारण 1940 और 1944 ओलिंपिक गेम्स नहीं खेले गए थे। ऐसे में कहा जाने लगा था कि भारतीय टीम अंग्रेजों के बिना नहीं जीत पाएगी।

1948 लंदन ओलिंपिक की मेडल सेरेमनी के दौरान टीम इंडिया।

1948 लंदन ओलिंपिक की मेडल सेरेमनी के दौरान टीम इंडिया।

फाइनल से एक दिन पहले दिलाई थी तिरंगे की शपथ
अशोक कुमार बताते हैं कि 14 अगस्त 1936 की रात टीम इंडिया के कप्तान मेजर ध्यानचंद ने साथियों को बुलाया और तिरंगे की शपथ दिलाई थी कि हम यहां से जीत कर ही लौटेंगे।

पहले हॉफ के बाद जूते उतारकर खेले थे दोनों भाई
अशोक बताते हैं कि एक दिन पहले बारिश हो गई थी और मैदान गीला था। पहले हॉफ में एक गोल ही स्कोर हो पाया था, क्योंकि खिलाड़ियों को दौड़ने में तकलीफ हो रही थी। ऐसे में मेजर ध्यानचंद और कैप्टन रूप सिंह ने अपने जूते उतार दिए थे। बाद में दोनों भाईयों ने गोल्स की झड़ी लगा दी।

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