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हॉकी के ब्रॉन्ज मेडल मैच में गोल दागने वाली सलीमा: पिता संग टूर्नामेंट खेलने जातीं, जीतने पर इनाम में मिलती थी बकरी-मुर्गी

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नई दिल्ली9 मिनट पहलेलेखक: संजय सिन्हा

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कॉमनवेल्थ गेम्स में जिस भारतीय महिला हॉकी टीम ने ब्रॉन्ज मेडल जीतकर 16 साल का सूखा खत्म किया, उस टीम में सलीमा टेटे जैसी खिलाड़ी हैं जिन्होंने अपने असाधारण खेल से महज 6 वर्षों में ही कई उपलब्धियां हासिल की हैं। वह टीम की एकमात्र मिड फील्डर हैं जिसने रेगुलर टाइम में एकमात्र गोल किया। हर बार की तरह इस बार भी उन्होंने मिड फील्ड में तेजी और स्ट्राइकिंग स्किल दिखाई।

छोटी उम्र में ही सलीमा ने बड़े सपने देखे

सलीमा टेटे, उम्र 20 साल, 7 महीने। पहचान भारतीय महिला हॉकी टीम की स्टार प्लेयर। 10 साल पहले की बात है जब झारखंड के सिमडेगा जिले के बड़की छापर गांव में बांस की स्टिक से एक लड़की हॉकी खेलती थी। पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि हॉकी स्टिक खरीद सकें। मिट्टी का बना घर ही आशियाना था। थोड़े बहुत खेत जिसकी पथरीली जमीन पर फसल उगाना कभी आसान नहीं रहा। खेतों के बीच बने चुओं (एक प्रकार के पानी का स्रोत) से जिनकी प्यास बुझती। वो घर में अकेली नहीं थी, चार बहनें और एक भाई भी थे। सभी को भरपेट खाना मिल जाए यही बहुत था।

तंगहाली ऐसी कि बड़ी बहन को दिल्ली जाकर मजदूरी करनी पड़ी। तब भी सलीमा ने सपना देखा कि पैरों में जूते हों या न हों, हॉकी स्टिक नहीं तो भी कोई बात नहीं, जर्सी नहीं तो भी क्या…हॉकी तो खेलकर रहेंगे। छोटी सलीमा के इस बड़े सपने को पिता ने अपना सपना माना। इन्हें पूरा करने के लिए बेटी ने जोर लगाया और महज छह वर्षों में ही उन्होंने टोक्यो ओलिंपिक तक का सफर पूरा कर लिया।

सलीमा टेटे ने 2016 में जूनियर महिला हॉकी टीम जॉइन किया था।

सलीमा टेटे ने 2016 में जूनियर महिला हॉकी टीम जॉइन किया था।

बेटी को साइकिल पर बैठाकर ले जाते टूर्नामेंट खिलाने

सलीमा में छिपे टैलेंट को पहचानने वाले मनोज कुमार प्रसाद उर्फ मनोज कोनबेगी बताते हैं कि जब भी ग्रामीण स्तर पर प्रतियोगिता होती पिता सलीमा को साइकिल पर बैठाकर ले जाते। कभी 10 किमी तो कभी 25 किमी साइकिल चलाकर जाते। कई बार नाव से नदी पारकर बेटी को टूनार्मेंट खेलाने के लिए ले जाते। हर टूर्नामेंट में सलीमा के अच्छा खेलने के लिए इनाम के रूप में बकरी और मुर्गी मिलती थी।

पिता भी रहे हैं हॉकी प्लेयर

सलीमा के पिता सुलक्षण भी हॉकी के प्लेयर रहे हैं। मनोज कोनबेगी बताते हैं कि सुलक्षण भी अच्छे डिफेंडर रहे हैं। जिस टूर्नामेंट में उनकी बेटी खेली, उसी में पहले सुलक्षण खेलते थे। वह अपने गांव की टीम लेकर आते थे। इनाम में मुर्गा या बकरा मिलता था। तब हॉकी खेलने का मतलब था इनाम में खस्सी जीतना। टीम जब जीतकर लौटती तो गांव में जश्न होता।

तस्वीर में बायें से सुलक्षण टेटे, सुभानी टेटे, सलीमा टेटे और मनोज कोनबेगी।

तस्वीर में बायें से सुलक्षण टेटे, सुभानी टेटे, सलीमा टेटे और मनोज कोनबेगी।

बेटी को बांस की स्टिक से सिखायी हॉकी

सुलक्षण खेती करते हैं। उनके पास खेती से इतने पैसे नहीं आते थे जिससे कि वह बेटी को हॉकी स्टिक से प्रैक्टिस करा सकें। जब सलीमा 8-9 साल की थीं, तब उन्हें बंबू स्टिक से सिखाते थे। मूव कैसे करना है, कैसे स्ट्राइक करना है, डिफेंड करना है यह सब उन्होंने ही सिखाए।

9 साल की उम्र में ही जबरदस्त स्ट्राइकर रहीं सलीमा

मनोज कोनबेगी बताते हैं कि 2010 में सलीमा टेटे नवयुवक संघ की ओर से आयोजित होने वाले हॉकी टूर्नामेंट में खेलने आई थीं। तब सलीमा की उम्र महज 9 वर्ष थी। अगले साल 2011 में भी वह पिता के साथ खेलने आईं। तब मनोज ने सुलक्षण टेटे से कहा कि आपकी बेटी बेहतरीन हॉकी खेलती है। उसे किसी स्पोटर्स एकेडमी में डाल दीजिए। तब उन्होंने इसे गंभीरता से नहीं लिया। अगले साल 2012 में भी वह टूर्नामेंट खेलने आई और बेस्ट प्लेयर का इनाम जीता। मनोज ने पिछले साल की बात दोहराई और कहा कि सलीमा की प्रतिभा को यूं बर्बाद नहीं होने दीजिए।

सिमडेगा में ग्रामीण टूर्नामेंट में भाग लेती सलीमा टेटे। तस्वीर में दायें से दूसरे क्रम में।

सिमडेगा में ग्रामीण टूर्नामेंट में भाग लेती सलीमा टेटे। तस्वीर में दायें से दूसरे क्रम में।

ट्रायल के तीन साल बाद बनीं जूनियर महिला हॉकी टीम की कप्तान

2013 में सलीमा ने ट्रायल दिया और उनका चयन स्पोटर्स एकेडमी में हो गया। ट्रायल के वक्त सलीमा की उम्र 12 वर्ष के करीब थी। एकेडमी में आने के महज तीन साल बाद ही उनका चयन इंडियन जूनियर टीम के लिए हो गया। वह ऑस्ट्रेलिया टूर के लिए टीम में चुन ली गईं। करिश्मा यह था कि 2017 में यूथ ओलिंपिक में वह जूनियर भारतीय महिला हॉकी की कप्तान बन गईं। तब यूथ ओलिंपिक में सलीमा के नेतृत्व में भारत को सिल्वर मिला था और फिर एक साल बाद 2018 में सलीमा भारतीय सीनियर महिला हॉकी टीम के लिए चुन ली गईं। उसके बाद टोक्यो ओलिंपिक में सलीमा के बेहतरीन खेल को सबने देखा।

मिड डे मील बनाती हैं मां

सलीमा की मां सुभानी टेटे एक सरकारी स्कूल में रसोइया हैं। उन्हें महीने के एक हजार रुपए मिलते हैं। टोक्यो ओलिंपिक में बेटी के खेलने और आर्थिक रूप से मजबूत होने के बावजूद वो पहले की ही भांति बच्चों के लिए मिड डे मील तैयार करती हैं।

बड़ी बहन ने दिल्ली जाकर मजदूरी की

सलीमा की चार बहनें हैं और एक भाई है। जब घर की आर्थिक स्थिति खराब थी तब सुलक्षण के लिए परिवार चलाना मुश्किल था। मजबूरी में सलीमा की बड़ी बहन ने दिल्ली जाकर मजदूरी की। घरों में नौकरानी का काम किया।

छोटी बहन भी हॉकी में धमाल दिखाने को तैयार

सलीमा की छोटी बहन महिमा टेटे भी हॉकी प्लेयर है। वह जूनियर भारतीय महिला हॉकी टीम में है। अभी बेंगलुरु में नेशनल कैंप में है।

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