सब्जियों की कीमतें 8 गुना बढ़ीं: दिसंबर महीने में होलसेल प्राइस इंडेक्स 13.56%, नवंबर की तुलना में मामूली गिरावट
- Hindi News
- Business
- Wholesale Price Index 13.56% In December, Marginally Lower Than November, Wholsale Price, Retail Price
मुंबईएक घंटा पहले
- कॉपी लिंक
दिसंबर महीने में होलसेल प्राइस इंडेक्स (WPI) 13.56% रहा। नवंबर में 14.23% की तुलना में इसमें मामूली गिरावट आई है। हालांकि यह लगातार पिछले 9 महीने से 10% से ऊपर ही रहा है। सब्जियों की थोक कीमतें 31.56% रही जो कि नवंबर में 3.91% थी। यानी यह एक महीने में करीबन 8 गुना बढ़ी है।
30 सालों में सबसे ज्यादा महंगाई
ब्लूमबर्ग ने नवंबर में एक सर्वे में कहा था कि यह बीते तीन दशक में यानी दिसंबर 1991 के बाद की सबसे बड़ी महंगाई दर है। होलसेल प्राइस का मतलब थोक महंगाई से होता है। जैसे आप दो तरह से सामान खरीदते हैं। एक आप रिटेल में जाकर दुकानों से खरीदते हैं, और दूसरा आप वही सामान थोकभाव में किसी बड़े डीलर से खरीदते हैं। दिसंबर 2020 में 1.95% से तुलना करें तो थोक महंगाई में करीबन 7 गुना की बढ़त रही है।
दिसंबर 2021 में मैन्युफैक्चरिंग प्रोडक्ट की महंगाई दर 10.62% रही, जो नवंबर में 11.92% थी। इसी सेगमेंट में गिरावट आई है। इनके अलावा मछली, मटन और अंडा की महंगाई दर 6.68% रही। यह नवंबर में 9.66% थी, जिसमें गिरावट दर्ज की गई है।
कई कारणों से बढ़ी महंगाई
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि दिसंबर 2021 में महंगाई की दर मुख्य रूप से तेलों, मेटल्स, कच्चे तेल, केमिकल और खाद्य प्रोडक्ट के साथ कपड़ा, कागज और इसके उत्पादों की वजह से बढ़ी है। सरकार की ओर जारी आंकड़ों में कहा गया है कि प्याज की कीमतें इस दौरान नवंबर की तुलना में घटी है।
प्याज की कीमतें गिरीं
प्याज की कीमतें 30.10% से घटकर दिसंबर में 19.08% पर आ गई है। आलू की कीमतें भी थोकभाव में गिरी हैं। इसी तरह ईंधन और बिजली सेगमेंट की बात करें तो नवंबर की तुलना में इसमें भी गिरावट आई है। नवंबर में यह 39.81% थी जो दिसंबर में 32.30% पर रह गई।
खाने की महंगाई बढ़ी
हालांकि खाने की महंगाई बढ़ गई है। यह 6.70% से बढ़कर 9.24% हो गई है। पिछले साल अप्रैल से लेकर अब तक थोक महंगाई लगातार 10% से ऊपर है। नवंबर में यह सबसे ज्यादा 14.23% पर पहुंच गई थी। रिटेल महंगाई से भी लोग परेशान हैं। बुधवार को ही इसके आंकड़े जारी किए गए, जिसमें दिसंबर में यह 5.59% रही, जो नवंबर में 4.91% थी।
रिटेल महंगाई का मैप दिखाती है थोक महंगाई
मोटे तौर पर समझिए कि थोक महंगाई दर आने वाले समय में खुदरा महंगाई दर का मैप दिखाती है। अगर थोक महंगाई दर लगातार बढ़ रही है तो खुदरा महंगाई भी बढ़ेगी ही, बशर्ते कि अचानक बीच में कोई उतार-चढ़ाव न हो जाए। दोनों महंगाई दर अलग-अलग होकर भी एक दूसरे से जुड़ी हैं। साथ ही यह भी कि इनका असर केवल आपकी रसोई और जेब पर नहीं होता। महंगाई दर की जद में आपका बैंक बैलेंस, निवेश और वित्तीय योजनाएं भी होती है।
सिर्फ थोक कीमतों से होता है ताल्लुक
थोक महंगाई दर सिर्फ थोक कीमतों से ताल्लुक रखती है। इकोनॉमी की भाषा में इसे ‘फैक्ट्री गेट प्राइस’ कहते हैं। यानी उस सामान की कीमत में सिर्फ उसे बनाने में आने वाली लागत शामिल होती है। उस पर लगने वाला टैक्स, ट्रांसपोर्टेशन, वितरक या खुदरा व्यापारी का मार्जिन और अन्य खर्चे शामिल नहीं होते। जैसे-जैसे ये खर्चे जुड़ते जाते हैं, उस सामान की कीमत भी बढ़ती जाती है।
सिर्फ सामानों पर नजर रखती है थोक महंगाई
थोक महंगाई दर सिर्फ सामान (Goods) की कीमत पर नजर रखती है, जबकि खुदरा महंगाई दर में सामान के साथ-साथ सेवाओं (Services) की कीमत भी शामिल होती है। मतलब यह कि खुदरा महंगाई दर आपके मोबाइल, स्कूल फीस से लेकर यात्रा, मनोरंजन, घर का किराया और मेडिकल खर्चों को भी ट्रैक करती है।
होलसेल में 65 पर्सेंट मैन्युफैक्चरिंग का हिस्सा
होलसेल महंगाई दर यानी WPI के बास्केट में 65 प्रतिशत मैन्युफैक्चरिंग गुड्स होते हैं। इनमें कार, टीवी, मोबाइल, कपड़े से लेकर भारी मशीनरी सामान शामिल होते हैं। लेकिन अनाज, फल-सब्जियों जैसे खाद्य सामान और गैस जैसी चीजों को यह अपने बास्केट में सिर्फ 20% तरजीह देता है। ईंधन और बिजली को 13% जगह मिली है।
पेट्रोलियम भी होलसेल में
होलसेल इंडेक्स के बास्केट में पेट्रोलियम सहित कई ऐसी चीजें हैं, जिन पर अंतरराष्ट्रीय बाजार और कीमतों का सीधा असर होता है। कई बार ऐसा भी होता है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम लगातार बढ़ते या घटते रहते हैं, लेकिन देश में केंद्र या राज्य सरकारों की ओर से एक्साइज और वैट बढ़ाने, घटाने या कोई बदलाव नहीं करने से होलसेल और खुदरा महंगाई दर में काफी अंतर आ जाता है।
बैंक जमा पर कैसे असर डालती है महंगाई
मान लीजिए आपने बैंक में एक साल के लिए 1 लाख रुपए फिक्स्ड डिपॉजिट किए, जिस पर 4% ब्याज मिलना है। अब आप मानकर चल रहे हैं एक साल बाद 4 हजार रुपए रिटर्न जोड़कर आपको 1 लाख 4 हजार रुपए मिलेंगे। उस साल अगर महंगाई दर 4%रही तो सीन बदल जाएगा। आपकी नजर में आपको 1 लाख 4 हजार मिले। लेकिन चूंकि चीजों के दाम भी उसी दर से बढ़े हैं, इसलिए बाजार में आपके 1 लाख 4 हजार की कीमत असल में 1 लाख ही है। यानी एक साल पहले 1 लाख रुपए में जो सामान आप खरीद सकते थे, अब वह 1 लाख 4 हजार में मिलेगा।
ब्याज बढ़ाकर महंगाई काबू में होती है
महंगाई काबू करने के लिए सरकारें अक्सर ब्याज दरें बढ़ा देती हैं। इससे बाजार में लिक्विडिटी घट जाती है, यानी खर्च करने वालों के हाथ में रकम कम आती है। इससे भी महंगाई घटाने में मदद मिलती है। लेकिन यहां मामला इतना एकतरफा नहीं होता। महंगाई बढ़ने के अपने कारण होते हैं और कई बार महंगाई ही RBI की दरें तय करती है। आज जब पिछले 9 महीने से लगातार महंगाई बढ़ रही है, RBI पर दबाव बढ़ गया है कि वह नीतिगत दरों (Repo rate) में बढ़ोत्तरी करे।
हालांकि ब्याज दर बढ़ाने से महंगाई तो काबू हो जाएगी, पर इसका उल्टा असर भी हो सकता है। इकोनॉमी में पूंजी की कमी होगी तो उत्पादन और सप्लाई पर भी असर होगा। सप्लाई घटेगी तो फिर कीमतें बढ़ने लगेंगी।
For all the latest Business News Click Here
For the latest news and updates, follow us on Google News.