श्रीलंका में गहराया आर्थिक संकट: सरकार ने विदेशी कर्ज चुकाने से हाथ खड़े किए, केवल खाने-पीने का सामान और फ्यूल खरीदने के लिए डॉलर बचे
कोलंबो17 मिनट पहले
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बेहद बुरे दौर से गुजर रहे श्रीलंका ने अब 51 अरब डॉलर (3.8 लाख करोड़ भारतीय रुपए) का विदेशी कर्ज चुकाने से हाथ खड़े कर दिए हैं। खाने-पीने का सामान और फ्यूल डिमांड पूरी करने के लिए श्रीलंका ने ये कदम उठाया है। दरअसल, श्रीलंका का फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व खाली हो चुका है और उसके पास काफी कम डॉलर बचे हैं। अगर वो कर्ज चुकाने का फैसला लेता तो खाने-पीने का सामान और फ्यूल इंपोर्ट करने के लिए उसके पास डॉलर नहीं बचते। इससे हालात और ज्यादा बेकाबू हो जाते।
एलपीजी खरीदने के लिए लाइन में लगे श्रीलंकाई नागरिक
श्रीलंका के वित्त मंत्रालय ने मंगलवार को एक बयान में कहा कि बॉन्ड होल्डर्स, बाइलेटरल क्रेडिटर्स और इंस्टीट्यूशनल लेंडर्स के सभी बकाया पेमेंट डेट रिस्ट्रक्चर तक सस्पेंड रहेंगे। मंत्रालय ने ये भी बताया कि सरकार इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (आईएमएफ) के साथ बेलाआउट पैकेज के लिए बातचीत में तेजी लाएगी। वहीं केंद्रीय बैंक के गवर्नर, नंदलाल वीरसिंघे ने एक ब्रीफिंग में कहा कि अधिकारी लेनदारों के साथ डिफॉल्ट पर बातचीत कर रहे हैं।
कौन-कौन से कर्ज प्रभावित होंगे?
- अंतरराष्ट्रीय पूंजी बाजार में जारी बॉन्डो की सभी आउटस्टैंडिंग सीरीज।
- सेंट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका और विदेशी केंद्रीय बैंक के बीच स्वैप लाइनों को छोड़कर सभी बाइलेटरल क्रेडिट।
- सभी फॉरेन करेंसी-डिनॉमिनेटेड लोन एग्रीमेंट।
IMF के बेलआउट पैकेज का सहारा
श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार पिछले महीने 16% गिरकर 1.94 अरब डॉलर पर आ गया जबकि उसे 2022 में 7 अरब डॉलर का कर्ज चुकाना है। अब श्रीलंका के पास IMF के बेलआउट पैकेज का ही सहारा बचा है। सरकार को 18 अप्रैल को 2023 डॉलर बॉन्ड के लिए 36 मिलियन डॉलर और 2028 बॉन्ड के लिए 42.2 मिलियन डॉलर का ब्याज भुगतान करना है। एक अरब डॉलर का सॉवरेन बॉन्ड 25 जुलाई को मैच्योर हो रहा है।
राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री पर पद छोड़ने का दबाव बढ़ा
डिफॉल्ट की घोषणा से श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और उनके भाई, प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे पर पद छोड़ने का दबाव बढ़ गया है। लगातार बढ़ती महंगाई के खिलाफ बढ़ते नागरिक विरोधों के बावजूद वे अब तक अपने पद पर बने हुए हैं। श्रीलंका में महंगाई दर 20% तक पहुंच गई है और 13 घंटे तक बिजली कटोती हो रही है। राजपक्षे की पार्टी ने संसद में अपना बहुमत भी खो दिया है।
राष्ट्रपति भवन के सामने प्रदर्शन के दौरान हाथ में श्रीलंका का झंडा लिए एक नागरिक
बाजार को पहले से थी डिफॉल्ट की आशंका
एवेन्यू एसेट मैनेजमेंट में फिक्स्ड इनकम के हेड कार्ल वोंग ने कहा, ‘बाजार को पहले से ही इस डिफॉल्ट की आशंका थी। अब हमें यह देखना होगा कि नई सरकार IMF से बात करते हुए स्थिति को कैसे संभालती है।’ श्रीलंका के वित्त मंत्रालय ने कहा कि विदेशी लेनदार मंगलवार शाम 5 बजे (श्रीलंकाई समयानुसार) के बाद अपने कर्ज पर ब्याज या कर्ज राशि श्रीलंकाई रुपए में वापस ले सकते हैं। इस विकल्प को चुनने के लिए वह पूरी तरह स्वतंत्र है।
आजादी के बाद सबसे बड़ा आर्थिक संकट
श्रीलंका 1948 में अपनी आजादी के बाद से सबसे बुरे आर्थिक संकट से गुजर रहा है। श्रीलंका में लोगों को रोजमर्रा से जुड़ी चीजें भी नहीं मिल पा रही हैं या कई गुना महंगी मिल रही हैं। श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खत्म हो चुका है, जिससे वह जरूरी चीजों का आयात नहीं कर पा रहा है। महंगाई आसमान पर पहुंच गई है।
महिंदा राजपक्षे ने क्या कहा?
श्रीलंकाई प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने देश को संबोधित करते हुए नागरिकों को आर्थिक संकट की वजह समझाने की कोशिश की। महिंदा राजपक्षे ने कहा- कोरोना महामारी की वजह से हमारे देश की अर्थव्यवस्था डगमगा गई। इसके बावजूद हमें लॉकडाउन लगाना पड़ा, इस वजह से देश का फॉरेन करेंसी रिजर्व खत्म हो गया। मैं और राष्ट्रपति देश को इस संकट से बाहर निकालने के लिए हर पल कोशिश कर रहे हैं।
लोगों की आय का बड़ा जरिया पर्यटन
टूरिज्म यहां के लोगों की आय का बड़ा जरिया है। करीब 5 लाख श्रीलंकाई सीधे पर्यटन पर निर्भर हैं, जबकि 20 लाख अप्रत्यक्ष रूप से इससे जुड़े हैं। श्रीलंका की GDP में टूरिज्म का 10% से ज्यादा योगदान है। टूरिज्म से सालाना करीब 5 अरब डॉलर (करीब 37 हजार करोड़ रुपए) फॉरेन करेंसी श्रीलंका को मिलती है। देश के लिए फॉरेन करेंसी का ये तीसरा बड़ा सोर्स है।
करीब 5 लाख श्रीलंकाई सीधे पर्यटन पर निर्भर, जबकि 20 लाख अप्रत्यक्ष रूप से इससे जुड़े हैं
कोरोना महामारी के कारण टूरिज्म सेक्टर ठप पड़ा है। दूसरी इकोनॉमिक एक्टिविटी भी प्रभावित हुई हैं। ज्यादा सरकारी खर्च और टैक्स कटौती ने भी रेवेन्यू कम कर दिया है। वर्ल्ड बैंक का अनुमान है कि महामारी की शुरुआत से 5 लाख लोग गरीबी रेखा से नीचे आ गए हैं, जो गरीबी से लड़ने में पांच साल की प्रोग्रेस के बराबर है। रोजगार न होने के कारण मजबूरी में लोगों को देश भी छोड़ना पड़ रहा है।
सरकार की पॉलिसी से फूड शॉर्टेज
29 अप्रैल 2021 को सरकार ने उर्वरक और कीटनाशकों के इंपोर्ट पर बैन लगा दिया था और किसानों को जैविक खेती करने के लिए मजबूर किया था। कई किसान उर्वरक और कीटनाशकों के उपयोग के बिना खेती करना नहीं जानते थे।
श्रीलंका के केपेटीपोला में एक टमाटर किसान कीट-संक्रमित फसल दिखाते हुए। कीटनाशकों का उपयोग ना करने के सरकार के फरमान से परेशान हैं किसान।
ऐसे में कई लोगों ने नुकसान के डर से फसल नहीं उगाई। इससे एक्सपोर्ट कम हो गया और फॉरेन रिजर्व घट गए। हालांकि, अक्टूबर में सरकार ने अपने फैसले से यू-टर्न ले लिया।
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