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विंबलडन में स्कर्ट पहनकर मैच जीतने वाली पहली भारतीय लड़की: बायां हाथ कमजोर था, फिर भी रचा इतिहास, बिना थमे चढ़ जाती थीं पहाड़

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  • The Left Hand Was Weak, Yet History Was Created, The Mountains Used To Climb Without Stopping

12 मिनट पहले

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भारत में जिस दौर में महिलाओं के लिए समाजिक दायरा तय था। उसी दौर में अधिकतर भारतीय महिलाए टेनिस खिलाड़ी साड़ी पहनकर टेनिस खेलती थीं, तब न सिर्फ लीला राव दयाल बल्कि उनकी मां क्षमा ने भी शॉर्ट स्कर्ट पहन कर टेनिस खेलने की हिम्मत दिखाई। उन्होंने भारतीय लोगों की सोच को बदला और साबित किया कि टेनिस खेलने के लिए और मूवमेंट करके शॉर्ट मारने के लिए साड़ी से बेहतर स्कर्ट है।

अपने खेल की बदौलत लीला राव ने कम से कम एक दशक तक भारतीय टेनिस में अपना नाम बरकरार रखा। उन्होंने शास्त्रीय नृत्य जैसे कि भरतनाट्यम, मणीपुरी पर संस्कृत और अंग्रेजी में कई किताबें भी लिखी हैं। 23 साल की लीला राव दयाल भारत की पहली महिला थीं, जिन्होंने टेनिस टूर्नामेंट विंबलडन में मैच जीत कर इतिहास रचा था।

ग्लैडी साउथवेल को हराकर भारत के नाम की जीत दर्ज की

4 फुट 10 इंच लंबी भारतीय लड़की, जो सामना कर रही थी ग्लैडी साउथवेल का। उस वक्त किसी ने सोचा भी ना होगा कि ये लड़की ऐसा कमाल कर जाएगी। मगर, लीला दयाल ने वो कमाल कर दिखाया और उन्होंने 4-6 , 10-8, 6-2 से ग्लैडी साउथवेल को मात दे भारत के नाम इतिहास रच दिया।

मां से सीखा टेनिस खेलना

लीला ने एक असाधारण जीवन जिया। वो भारत के उन चुनिंदा लोगों में से एक थीं, जिसके अपने देश लेकर ब्रिटिश साम्राज्य तक व्यापक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क थे। 19 दिसम्बर 1911 को मुंबई के एक संपन्न परिवार में जन्मीं लीला के पास टैलेंट की कोई कमी नहीं थी। उनके पिता डॉक्टर राघवेंद्र राव थे और माता पंडिता क्षमा राव, जो कि न सिर्फ संस्कृत की विद्वान लेखिका थीं बल्कि टेनिस खेलने में भी माहिर थीं।

लीला की पढ़ाई-लिखाई और टेनिस प्रशिक्षण में उनकी मां का बहुत बड़ा योगदान रहा। उनकी मां क्षमा 1920 के दशक में राजकुमारी अमृत कौर (जो आजादी के बाद देश की प्रथम स्वास्थ मंत्री रहीं) के साथ टेनिस खेला करती थीं, और इस जोड़ी की भारत के बेहतरीन खिलाड़ियों में गिनती होती थी। 1930 के दौरान लीला और उनकी मां क्षमा ने कई डबल्स मुकाबले को एक साथ जीता था।

संपन्न परिवार से होते हुए भी आसान नहीं था विंबलडन तक का सफर

लीला का विंबलडन तक का सफर आसान नहीं था। 1931 में वो ऑल इंडिया चैम्पियन होने के बावजूद विंबलडन में एंट्री शुल्क जमा न कर पाने के कारण भाग नहीं ले सकीं। हालांकि 1931 में ऑल इंडिया चैम्पियनशिप में हिस्सा लेना मेकैना को सीधे सेटों में हराकर महिला सिंगल्स टूर्नामेंट का खिताब जीतने के बाद लीला राव का नाम सुर्खियों में रहा। जिसके बाद 1934 विंबलडन में उन्हें ब्रिटिश इंडिया का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। अपने पहले ही मुकाबले में लीला रो ने ग्लैडी साउथवेल को 4-6 , 10-8, 6-2 से सीधे सेटों में हरा दिया।

लीला अपने अटैकिंग मोड और खेल के लिए जानी जाती थी।

लीला अपने अटैकिंग मोड और खेल के लिए जानी जाती थी।

लेफ्ट हैंड कमजोर होने के बावजूद अटैकिंग के लिए जानी जाती थीं

लीला दयाल का लेफ्ट हैंड कमजोर होने के बावजूद वो एक सफल टेनिस खिलाड़ी बन कर उभरीं। लीला अपने पावरफुल ड्राइव, प्रीसाईस शॉट प्लेसमेंट और अटैकिंग मोड के लिए जानी जाती थीं।

पति के शौक के चलते चढ़े कई पहाड़

लीला की शादी 1943 में हरिश्वर दयाल से हुई थी, जो सिविल सेवा में कार्यरत थे और बाद में उन्होंने नेपाल में भारतीय एम्बेसडर के तौर पर भी काम किया। हरिश्वर दयाल को पर्वतारोहण करने का बहुत शौक था और धीरे-धीरे ये शौक लीला को भी चढ़ गया। लीला और हरिश्वर ने बहुत से पहाड़ों पर पर्वतारोहण किया। लीला ने अपने अनुभव को शेयर करते हुए कई आर्टिकल भी लिखे थे।

विंबलडन में भारतीय महिला खिलाड़ी

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