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रुपए के बुरे दिन: 27 पैसे कमजोर होकर रिकॉर्ड 78.40 पर पहुंचा रुपया, FII की बिकवाली और महंगाई ने बढ़ाया दबाव

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नई दिल्ली14 मिनट पहले

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डॉलर के मुकाबले रुपया बुधवार को रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया। ये 27 पैसे कमजोर होकर 78.40 पर बंद हुआ। रुपया 78.13 पर खुला था और दिनभर के कारोबार में इसने 78.40 का निचला और 78.13 का उच्चतम स्तर बनाया। वित्तीय बाजारों से लगातार विदेशी फंड का आउटफ्लो और कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी ने रुपए पर दबाव बढ़ाया है।

मेहता इक्विटीज के वीपी (कमोडिटीज) राहुल कलंत्री ने कहा, ‘अमेरिकी फेडरल रिजर्व की आक्रामक रूप से ब्याज दरों में बढ़ोतरी की योजना और FII की लगातार बिकवाली रुपए पर दबाव डाल रही है। बढ़ता व्यापार घाटा और कच्चे तेल की ऊंची कीमतें भी रुपए की बढ़त को रोक रही हैं। ऐसा लगता है कि इस हफ्ते रुपया अस्थिर रहेगा और 78.45 के रेजिस्टेंस लेवल को टेस्ट करेगा।’

कैसे तय होती है करेंसी की कीमत?
करेंसी के उतार-चढ़ाव के कई कारण होते हैं। डॉलर की तुलना में किसी भी अन्य करेंसी की वैल्यू घटे तो इसे उस करेंसी का गिरना, टूटना, कमजोर होना कहते हैं। अंग्रेजी में – करेंसी डेप्रिशिएशन। हर देश के पास विदेशी मुद्रा का भंडार होता है, जिससे वह अंतरराष्ट्रीय लेन-देन करता है।

विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से उस देश की मुद्रा की चाल तय होती है। अगर भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर, अमेरिका के रुपयों के भंडार के बराबर है तो रुपए की कीमत स्थिर रहेगी। हमारे पास डॉलर घटे तो रुपया कमजोर होगा, बढ़े तो रुपया मजबूत होगा।

कहां नुकसान या फायदा?
नुकसान: कच्चे तेल का आयात महंगा होगा, जिससे महंगाई बढ़ेगी। देश में सब्जियां और खाद्य पदार्थ महंगे होंगे। वहीं भारतीयों को डॉलर में पेमेंट करना भारी पड़ेगा। यानी विदेश घूमना महंगा होगा, विदेशों में पढ़ाई महंगी होगी।

फायदा: निर्यात करने वालों को फायदा होगा, क्योंकि पेमेंट डॉलर में मिलेगा, जिसे वह रुपए में बदलकर ज्यादा कमाई कर सकेंगे। इससे विदेश में माल बेचने वाली IT और फार्मा कंपनी को फायदा होगा।

करेंसी डॉलर-बेस्ड ही क्यों और कब से?
फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में अधिकांश मुद्राओं की तुलना डॉलर से होती है। इसके पीछे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुआ ‘ब्रेटन वुड्स एग्रीमेंट’ है। इसमें एक न्यूट्रल ग्लोबल करेंसी बनाने का प्रस्ताव रखा गया था। हालांकि, तब अमेरिका अकेला ऐसा देश था जो आर्थिक तौर पर मजबूत होकर उभरा था। ऐसे में अमेरिकी डॉलर को दुनिया की रिजर्व करेंसी के तौर पर चुन लिया गया।

कैसे संभलती है स्थिति?
मुद्रा की कमजोर होती स्थिति को संभालने में किसी भी देश के केंद्रीय बैंक का अहम रोल होता है। भारत में यह भूमिका रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की है। वह अपने विदेशी मुद्रा भंडार से और विदेश से डॉलर खरीदकर बाजार में उसकी मांग पूरी करने का प्रयास करता है। इससे डॉलर की कीमतें रुपए के मुकाबले स्थिर करने में कुछ हद तक मदद मिलती है।

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