महिला हॉकी टीम में पंजाब से इकलौती प्लेयर गुरजीत कौर: टोक्यो ओलिंपिक में 4 गोल दागने वाली बेटी के पिता करते हैं खेती, गांव में प्राइवेट स्कूल नहीं था इसलिए बहन के साथ साइकिल पर जाती थीं 13 किलोमीटर दूर
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- The Farmer’s Daughter Used To Go To School 13 Km Away On A Bicycle With Her Sister, Living In The Hostel, The Tricks Of Hockey, Now The Name Is Resonating All Over The World.
जालंधर6 घंटे पहले
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ओलिंपिक में गुरजीत कौर।
भारतीय महिला हॉकी टीम ओलिंपिक में कोई पदक तो न जीत सकी लेकिन उनका नाम पूरी दुनिया में गूंज रहा। इसी टीम में अमृतसर की खिलाड़ी गुरजीत कौर खूब चर्चा में है। गुरजीत ने टोक्यो ओलिंपिक में 4 गोल किए, लेकिन इनमें सबसे खास वो पल था, जब क्वार्टर फाइनल में उनके एक गोल ने ऑस्ट्रेलिया जैसी मजबूत टीम को बाहर कर दिया। जिससे भारतीय महिला हॉकी टीम इतिहास में पहली बार ओलिंपिक के सेमीफाइनल में पहुंच गई।
गुरजीत ने एक गोल सेमीफाइनल और 2 ब्रान्ज मेडल मुकाबले में भी किए। हालांकि यहां टीम हार गई। अहम बात यह है कि गुरजीत कौर भारतीय हॉकी टीम में इकलौती पंजाबी खिलाड़ी हैं। इसके मुकाबले पुरुष हॉकी टीम में 9 खिलाड़ी पंजाब से हैं और कप्तान मनप्रीत सिंह भी जालंधर के रहने वाले हैं।
बेटियों को अच्छी शिक्षा देना चाहते थे पिता
अमृतसर के मियादी कलां गांव के सतनाम सिंह बड़ी बेटी प्रदीप कौर व छोटी गुरजीत कौर के लिए अच्छी शिक्षा चाहते थे। गांव में कोई प्राइवेट स्कूल नहीं था। इसलिए दोनों का दाखिला गांव से 13 किलोमीटर दूर अजनाला में करा दिया। सतनाम सिंह किसान थे तो परिवार का बैकग्राउंड ऐसी नहीं था कि उन्हें छोड़ने के लिए गाड़ी का इंतजाम कर सकें। रोज पिता साइकिल पर दोनों बेटियों को स्कूल छोड़ने व घर लाने जाते।
टोक्यो ओलिंपिक में गुरजीत कौर।
किसान परिवार का नहीं हॉकी से संबंध लेकिन दोनों बहनों का बना शौक
गुरजीत के परिवार का हॉकी से कोई संबंध नहीं था। मगर, प्राइवेट स्कूल पहुंचने के बाद गुरजीत ने बड़ी बहन प्रदीप के साथ हॉकी को जाना। इसके बाद साल 2006 में 6वीं में उनका दाखिला तरनतारन के कैरों स्थित एक बोर्डिंग स्कूल में करवा दिया। वहां गुरजीत व प्रदीप हॉस्टल में रहीं। जहां उनकी हॉकी की प्रैक्टिस जारी रही। सही मायने में यहीं उन्होंने अपने हॉकी के गुर को तराशा।
जालंधर ट्रायल में हुआ चयन, यहीं तराशा ड्रैग फ्लिकिंग का हुनर
7वीं में पढ़ाई के वक्त जालंधर में ट्रायल हुए तो ओलंपियन प्रगट सिंह की पंजाब स्पोर्ट्स एकेडमी में उनका चयन हो गया। गुरजीत एक साल जालंधर रहीं और फिर स्कूल वापस लौट गईं। गुरजीत ने जालंधर के लायलपुर खालसा कॉलेज से हायर एजुकेशन ली। यहीं पढ़ाई के साथ हॉकी की ट्रेनिंग व ड्रैग फ्लिकिंग के शौक को आगे बढ़ाया।
टोक्यो ओलिंपिक में ब्रान्ज मुकाबले में बहन गुरजीत को खेलती देखती प्रदीप कौर।
2017 में बनी हॉकी टीम की परमानेंट मेंबर
गुरजीत के हॉकी टेलेंट के बल पर पहले वो जूनियर नेशनल में गईं। स्पोर्ट्स कोटे से उन्हें रेलवे में जूनियर क्लर्क की नौकरी मिल गई। अब वो इलाहाबाद में उत्तर मध्य रेलवे में क्लर्क की नौकरी करती हैं। वहां से वो रेलवे के प्रयागराज मंडल के लिए खेलती हैं। देश के लिए खेलने का मौका गुरजीत को 2014 में मिला, जब उन्हें सीनियर नेशनल कैंप से बुलावा आया। 2017 में वो भारतीय हॉकी टीम की परमानेंट मेंबर बन गईं।
एशिया कप के बाद चमका गुरजीत का नाम, 8 गोल किए थे
गुरजीत कौर का सबसे पहले नाम 2017 में एशिया कप में उभरा। जिसमें भारतीय महिला हॉकी टीम कॉन्टिनेंटल चैंपियन बनी और लंदन में 2018 में हुए हॉकी वर्ल्ड कप के लिए उनकी जगह पक्की हुई। 2018 में हॉकी वर्ल्ड कप में गुरजीत ने सबसे ज्यादा 8 गोल किए थे। वह टूर्नामेंट की तीसरी सबसे ज्यादा गोल करने वाली खिलाड़ी बनीं। इसके बाद स्पेन टूर व 2018 में कॉमनवेल्थ गेम्स में भी गुरजीत ने उम्दा प्रदर्शन किया।
गुरजीत की बहन प्रदीप कौर।
बहन प्रदीप बोली- यहां तक पहुंचना बड़ी बात लेकिन मेडल से ज्यादा खुश होती गुरजीत
गुरजीत की बहन जालंधर के संसारपुर में हॉकी कोच हैं। उन्होंने कहा कि ब्रान्ज मैच में भारत की हार के बात गुरजीत से बात हुई। भारतीय महिला हॉकी टीम का यहां पहुंचना बहुत बड़ी बात है लेकिन अगर मेडल मिल जाता तो एक खिलाड़ी के तौर पर गुरजीत को ज्यादा खुशी होती। उन्होंने अच्छा खेला लेकिन शुक्रवार टीम का दिन नहीं रहा। मेरी नजर में ओलिंपिक में यहां तक पहुंचना भी किसी अचीवमेंट से कम नहीं है।
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