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महंगाई पर नहीं, ग्रोथ पर फोकस: RBI की तरफ से ब्याज कटौती की राहत मिलने की संभावनाएं कम, 2022 की मार्च तिमाही में हो सकती है इंटरेस्ट रेट बढ़ाने की बात

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नई दिल्ली15 घंटे पहले

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भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) इस बार की मौद्रिक समीक्षा में भी अहम ब्याज दर यानी रेपो रेट को जस-का-तस रहने दे सकता है। यह अनुमान दिग्गज रेटिंग फर्म इकरा की चीफ इकोनॉमिस्ट अदिति नायर और वरिष्ठ अर्थशास्त्री वृंदा जागीरदार सहित ज्यादातर आर्थिक जानकारों का है। दो वरिष्ठ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सिस्टम से अतिरिक्त नकदी निकालने के लिए रिजर्व बैंक रिवर्स रेपो रेट बढ़ाने पर विचार कर सकता है। अभी रेपो रेट 4.00% और रिवर्स रेपो रेट 3.35% है।

महंगाई अस्थाई है, ग्रोथ पर फोकस जरूरी

अर्थशास्त्री रिजर्व बैंक की तरफ से ब्याज दरों में बढ़ोतरी नहीं किए जाने की संभावना को लेकर महंगाई के ऊंचे लेवल पर होने के बावजूद इकोनॉमिक ग्रोथ पर फोकस होने का तर्क दे रहे हैं। फिलहाल, खुदरा महंगाई दर RBI के कंफर्ट लेवल से ऊपर बना हुई है और सबसे बड़ी बात है कि कोर इनफ्लेशन (फूड और फ्यूल शामिल नहीं) भी ऊपर है।

RBI को जो मैंडेट मिला है, उसके मुताबिक वह महंगाई को 4% से 2% नीचे और इतना ही ऊपर यानी 2 से 6% के दायरे में रख सकता है। लेकिन उसका कहना है कि महंगाई में उछाल अस्थाई है, इसलिए इसको नजरअंदाज किया जा सकता है।

‘अकमोडिटव स्टांस’ बनाए रखा जा सकता है

दिग्गज रेटिंग फर्म इकरा की चीफ इकोनॉमिस्ट नायर का कहना है कि ग्रोथ को लेकर फिलहाल अनिश्चितता बनी हुई है। ऐसे में ग्रोथ को बढ़ावा देने के लिए RBI पॉलिसी रिव्यू में रेपो रेट को जस-का-तस रख सकता है और मौजूदा ‘अकमोडिटव स्टांस’ को बनाए रख सकता है।

नायर का यह भी कहना है कि ग्रोथ में रिवाइवल होने और उसमें मजबूती आने पर इस वित्त वर्ष की मार्च तिमाही में रिजर्व बैंक पॉलिसी नॉर्मलाइजेशन शुरू कर सकता है। उस समय वह अपने स्टांस को अकमोडिटव से बदलकर न्यूट्रल कर सकता है।

अकमोडिटव स्टांस का मतलब यह होता है कि रिजर्व बैंक जरूरत पड़ने पर अहम ब्याज दर (रेपो रेट) में कटौती कर सकता है। स्टांस न्यूट्रल होने का मतलब यह होता है कि RBI सिस्टम में नकदी समुचित स्तर पर बनाए रखने के लिए रेपो रेट घटा या बढ़ा सकता है।

आपूर्ति से जुड़ी समस्या से बढ़ी है महंगाई

वरिष्ठ अर्थशास्त्री वृंदा जागीरदार का कहना है कि रिजर्व बैंक महंगाई के बजाय ग्रोथ पर ध्यान देगा क्योंकि महंगाई में आया उछाल कुछ समय के लिए है। उनके मुताबिक, महंगाई में इजाफा इसलिए नहीं हुआ कि सामान या सेवाओं की सबकी तरफ से मांग बढ़ी है, बल्कि यह समस्या आपूर्ति से जुड़ी है। अभी लोग कोविड के चलते बुरे वक्त के लिए पैसे बचाकर रख रहे हैं, इसलिए मांग कमजोर बनी हुई है। रेट कट भी नहीं हो सकता कि महंगाई अस्थाई रूप से ही सही, ऊंचे लेवल पर तो है।

इकोनॉमिक एक्टिविटी पूरी तरह शुरू होना जरूरी

वृंदा के मुताबिक, कोविड से सप्लाई चेन में आई रुकावट दूर नहीं हुई है और इकोनॉमिक एक्टिविटी अभी पूरी तरह शुरू नहीं हो पाई हैं। ऐसे में जब तक पूरी तरह टीकाकरण नहीं हो जाता, लोगों के दिलों से कोविड का डर निकल नहीं जाता और आर्थिक गतिविधियां, खास तौर पर सर्विसेज साइड में सामान्य नहीं हो जातीं, तब तक महंगाई ऊंचे लेवल पर बनी रह सकती है। इसलिए फिलहाल रिजर्व बैंक का ध्यान पूरी तरह ग्रोथ को बढ़ावा देने पर होगा।

रिवर्स रेपो रेट 3.35% से 3.75% किया जा सकता है

वृंदा का कहना है कि रिजर्व बैंक सिस्टम से अतिरिक्त नकदी हटाने के लिए रिवर्स रेपो रेट बढ़ाने पर विचार कर सकता है। डीबीएस की इकोनॉमिस्ट राधिका राव का भी यही कहना है। राव के मुताबिक, RBI रिवर्स रेपो रेट को 3.35% से बढ़ाकर 3.75% कर सकता है। इससे रेपो और रिवर्स रेपो के बीच का अंतर फिर से घटकर 0.25% रह जाएगा। रिवर्स रेपो वह रेट होता है जो बैंक सरप्लस रकम RBI के पास जमा करके कमाते हैं।

पॉलिसी नॉर्मलाइजेशन के संकेतों पर होगी नजर

कोटक महिंद्रा लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के ईवीपी डेट इनवेस्टमेंट्स, चर्चिल भट्ट का कहना है कि मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की मीटिंग में रेट को जस-का-तस रखने पर फैसला हो सकता है। लेकिन सबका ध्यान इस बात पर होगा कि रिजर्व बैंक पॉलिसी रेट को लेकर अपने रुख के नॉर्मल होने को लेकर क्या अनुमान देता है।

आने वाले समय में ब्याज दर किस राह और किस रफ्तार से बढ़ेगी, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि RBI बाजार में नकदी की स्थिति को संतुलित बनाने के लिए क्या कदम उठाता है। यह इस बात से भी तय होगा कि बॉन्ड मार्केट में यील्ड कर्व (बेंचमार्क बॉन्ड पर मिलने वाली ब्याज दर) को लेकर उसकी तरफ से क्या कदम उठाए जाते हैं।

नगदी सही लेवल पर बनाए रखने पर भी जोर

दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में सेंटर फॉर डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स के एमडी प्रोफेसर राम सिंह का भी मानना है कि रिजर्व बैंक रेपो रेट को जस का तस रहने देगा। RBI का फोकस पूरी तरह ग्रोथ को बढ़ावा देने पर है, उसके लिए अस्थाई तौर पर बढ़ी महंगाई को नजरअंदाज कर सकता है। उसका जोर बाजार में नगदी को सही लेवल पर बनाए रखने पर भी होगा।

उनका कहना है कि महंगाई में उछाल की एक वजह कोविड रिलेटेड कंजम्पशन बढ़ना भी है जो टीकाकरण बढ़ने पर कम होने लगेगा। चीन की तरफ से कमोडिटी की डिमांड घटने से भी महंगाई में कमी के मौके बनेंगे। इसके अलावा सर्विसेज सेक्टर में एक्टिवटी बढ़ने से ग्रोथ को सपोर्ट मिलेगा।

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