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भास्कर इंटरव्यू- भविना पटेल: जो सोचने में सक्षम होते हैं उन्हें मैं दिव्यांग नहीं मानती, मेरी जिद रही है जो काम नहीं आता उसे पहले सीखो

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नई दिल्ली2 मिनट पहले

जिद करने वालों की कभी हार नहीं होती.. इसका जीता जागता उदाहरण टोक्यो पैरालिंपिक की सिल्वर मेडलिस्ट टेबल टेनिस खिलाड़ी भविना पटेल हैं। वो बचपन से जिद्दी हैं। जो काम उनको नहीं आता था, उसकाे वो पहले सीखतीं और फिर उसमें सर्वश्रेष्ठ बनने का प्रयास करतीं। शुरुआती दिनों में उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन सबको दरकिनार करते हुए उन्होंने नाम रोशन किया।

दैनिक भास्कर और माई एफएम नवरात्रि के चौथे दिन भविना के संघर्ष से लेकर सफलता पाने तक की कहानी आपके सामने लाए हैं…

सवालः पैरालिंपिक मेडल जीतने के पल को जब भी याद करती हैं तो आपके मन में क्या चलता है?
जवाबः हमेशा से टेबल टेनिस के पोडियम पर चीन रहता था, पहली बार रिकॉर्ड टूट गया। पहली बार दूसरे नंबर पर भारत की भी खिलाड़ी पोडियम पर खड़ी थी। जब भारत का झंडा ऊपर हो रहा था तब मेरी आंखों से आंसू आ रहे थे। मैं उस क्षण को शब्दों में बयां नहीं कर सकती हूं। वो समय ही कुछ ऐसा होता है।

सवालः आपने वर्ल्ड नंबर-2 को हराने के लिए क्या प्लान बनाया था?
जवाबः कुछ खिलाड़ियों ने पूछा था कि आपका मैच किससे है तो मैंने कहा कि सर्बिया की खिलाड़ी से। उन्होंने कहा कि मुश्किल है। मैच शुरू होने तक मेरे दिमाग में यही चल रहा था कि बस सामने वाली को हराना है और मुकाबले में हुआ भी वही। मैंने लोगों के ख्यालों को भी बदल दिया। बचपन से ही मेरे अंदर जिद करने का जुनून है। अगर कोई बाेल देता है कि यह काम इससे नहीं हो सकता है तो मैं उस काम को जरूर करती हूं। जो काम नहीं आता उसे मैं सीखने की कोशिश करती हूं। इसके बाद उसमें सर्वश्रेष्ठ होने की भी कोशिश करती हूं।

सवालः जो दिव्यांग खिलाड़ी खेल में करियर बनाना चाहते हैं, उन्हें किन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है?
जवाबः मेरा नजरिया यह है कि जो दिमाग से सोच सकता है, वह दिव्यांग नहीं है। पैर नहीं दिए, हाथ नहीं दिए तो वह आपमें थोड़ी सी कमी है, लेकिन दिव्यांग नहीं हैं। मैं उन लोगों को दिव्यांग मानती हूं जो दिमाग से सोच नहीं सकते हैं।

सवालः आपके खेल की शुरुआत कैसे हुई?
जवाबः 2004-05 में मैं अहमदाबाद आईटीआई में कंप्यूटर कोर्स करने गई थी। वहां दोस्तों को खेलते देख मैं भी खेलने लगी। पहले सोचा था कि कंप्यूटर सीखने के बाद कोई जॉब कर लूंगी, लेकिन समय के बाद टेबल टेनिस में दिलचस्पी बढ़ती गई। चैंपियनशिप में मेडल जीतने लगी तो मैंने कहा कि नेशनल से काम नहीं चलेगा। इसके बाद इंटरनेशनल में उतरी और वहां भी मेडल जीतने लगी। उसके बाद पैरालिंपिक में देश को मेडल दिलाने का लक्ष्य बनाया था।

सवालः शुरुआत में लोग खेलने से मना करते होंगे, क्या ऐसे लोगों से आपका कभी सामना हुआ?
जवाबः पैसों की दिक्कतें तो थीं। पापा की छोटी सी दुकान थी। उन्हें कई बार लोन भी लेना पड़ा। 2016 में रियो पैरालिंपिक के लिए क्वालिफाई किया, लेकिन जा नहीं सकी। तब डिप्रेशन में चली गई थी। उस समय पापा और पति ने बहुत सपोर्ट किया।

सवालः टोक्यो पैरालिंपिक में आपके मेडल जीतने पर माता-पिता की कैसी प्रतिक्रिया थी?
जवाबः मेडल जीतने के बाद मम्मी-पापा से अच्छे से बात नहीं हुई थी। जब मैं एयरपोर्ट पहुंची तो मम्मी और पापा खुशी में रोने लगे थे। इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है। मम्मी-पापा ने कहा कि तुमने आज मेरे बेटे वाला काम कर दिया। वे दोनों बहुत खुश थे।

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