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भास्कर इंटरव्यू: अवनी लखेरा: पैरालिंपिक चैंपियन ने कहा- आप अपनी बेटियों को सपोर्ट करेंगे तो वे भी हर सपना पूरा कर सकती हैं

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नई दिल्ली4 मिनट पहले

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अगर आप सच्ची लगन के साथ मेहनत करते हैं तो वह कभी बेकार नहीं जाती। इसका जीता जागता उदाहरण हैं राजस्थान की शूटर अवनी लखेरा। उन्होंने टोक्यो पैरालिंपिक में गोल्ड सहित दो मेडल जीते थे। अवनी का रोड एक्सीडेंट हुआ था, लेकिन इसके बाद भी उन्होंने घर पर बैठे न रहकर खेल को चुना और देश को मेडल दिलाया। अवनी का कहना है कि अगर आप बेटियों को सपोर्ट करेंगे तो वह भी हर सपना पूरा कर सकती हैं। आइए जानते हैं अवनी की सफलता का राज…

सवालः 2012 में आपका एक्सीडेंट हुआ। उसके बाद कई लोगों का कहना था कि आप घर बैठ जाएंगीं, लेकिन आपने खेल चुना?
जवाबः 2012 की बात है। तब परिवार के साथ मैं जयपुर से धौलपुर जा रही थी। उसी दौरान यह एक्सीडेंट हुआ था। इसके बाद मैं डिप्रेस हो गई, लेकिन पापा चाहते थे कि मैं खेल शुरू करूं। इसके बाद मैंने 2015 में शौकिया तौर पर शूटिंग शुरू की। शुरुआती दिनों में काफी दिक्कतें हुईं, लेकिन मैंने मेहनत जारी रखी और फिर मुझे पैरालिंपिक में खेलने का मौका मिला।

सवालः पेरेंट्स बेटियों को खेलने से रोकते हैं। यह कहां तक सही है?
जवाबः आप अपनी बेटियों को सपोर्ट करेंगे तो वह कुछ भी हासिल कर सकती हैं। इसलिए उनको भी सपोर्ट करिए। अभी लोगों ने देखा होगा कि महिला खिलाड़ियों ने ओलिंपिक और पैरालिंपिक में काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। शूटिंग के एक इवेंट में लड़का और लड़की एक साथ मुकाबला करते हैं। उस गेम में पैरालिंपिक में लड़कियों ने गोल्ड जीता है।

सवालः आपको कभी खेल से रोका गया?
जवाबः मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ, बल्कि मेरे परिवार ने मुझे खेल शुरू करने के लिए सपोर्ट किया। मेरे पापा मुझे शूटिंग रेंज ले गए और मैंने वहां से अपनी नई शुरुआत की, लेकिन हां, कई लड़कियों के साथ ऐसा हुआ होगा। मैं उनके परिवार से बस यही कहूंगी कि वे सपोर्ट करें।

सवालः जब आपने टोक्यो पैरालिंपिक में मेडल जीता, तब आपके मन में क्या चल रहा था?
जवाबः जब मैं मैच खेल रही थी, तब मेरे दिमाग में यह नहीं चल रहा था कि मुझे मेडल जीतना है, लेकिन मेडल जीतने के बाद जब भारत का तिरंगा ऊपर जा रहा था और एंथम बजा तो काफी अच्छा लगा। मैं उन चीजों को बातों में बयां नहीं कर सकती हूं। आग भी मैं ऐसे ही मेहनत जारी रखूंगी।

सवालः जब आपने शूटिंग शुरू की थी, तब आपसे राइफल नहीं उठती थी, क्या ये सच है?
जवाबः हां। शुरुआती दिनों में मैं राइफल नहीं उठा पाती थी, लेकिन मैं कोशिश करती रही। उस समय मुझे जानकारी भी नहीं थी। जयपुर में कोचिंग की सुविधाएं नहीं थीं। सब खड़े होकर खेलते थे, तो मुझे बैठकर खेलना होता था। पहले मैच में मेरे पास खुद की राइफल नहीं थी, लेकिन मैंने गोल्ड जीता। उसके बाद खेल के प्रति लगाव और बढ़ गया। 2016 में तीन गोल्ड जीते। इसके बाद मेरा सिलेक्शन इंटरनेशनल टूर्नामेंट के लिए टीम में हुआ। 2017 में यूएई में मेरा पहला वर्ल्ड कप था। वहां कई बड़े और अनुभवी खिलाड़ी आए, लेकिन मैंने वहां भी सिल्वर जीता था।

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