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नई दिल्लीएक घंटा पहले
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देश के छोटे इनवेस्टर्स को जल्द ही महंगे शेयरों में भी पैसा लगाने का मौका मिल सकता है। वे 100 रुपए जैसी छोटी रकम में भी महंगे शेयरों का एक छोटा सा हिस्सा (फ्रैक्शनल शेयर) खरीद सकेंगे। कंपनी लॉ कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में देश में फ्रैक्शनल शेयरों की अनुमति देने की सिफारिश की है।
अमेरिका, ब्रिटेन, जापान समेत ज्यादा विकसित देशों में पहले से यह सुविधा
अमेरिका, ब्रिटेन और जापान समेत ज्यादातर विकसित देशों में फ्रैक्शनल शेयरों की ट्रेडिंग होती है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को भेजी अपनी रिपोर्ट में कमेटी ने कहा है कि मौजूदा कंपनी अधिनियम के तहत कंपनियों को फ्रैक्शनल शेयर जारी करने की अनुमति नहीं है। यदि इसकी अनुमति दी जाती है तो रिटेल इनवेस्टर्स को हाई-वैल्यू शेयरों में पैसा लगाने का मौका मिलेगा। इससे पूंजी बाजार में बड़े पैमाने पर पैसा आएगा।
अकेले वित्त वर्ष 2020-21 में ही 1.42 करोड़ नए रिटेल इनवेस्टर्स ने शेयर बाजार में कदम रखा है। लॉ कंसल्टेंसी फर्म जे. सागर एसोसिएट्स के पार्टनर आनंद लाकरा कहते हैं, शेयर बाजार में रिटेल इनवेस्टर्स की बढ़ती भागीदारी को देखते हुए फ्रैक्शनल शेयरों की ट्रेडिंग की अनुमति देने की सिफारिश शानदार पहल है। इससे छोटे इनवेस्टर्स को ऐसे शेयरों में पैसा लगाने की सुविधा मिलेगी, जिनमें वे अभी निवेश नहीं कर सकते।
फ्रैक्शनल स्टॉक निवेशकों और कंपनियों दोनों के लिए फायदे का सौदा
- भारत में अभी शेयर में निवेश की न्यूनतम इकाई एक शेयर है। यानी किसी कंपनी का कम से कम एक शेयर खरीदना होता है।
- देश में सबसे महंगा शेयर टायर कंपनी एमआरएफ (67,500 रुपए) का है।
- फ्रैक्शनल शेयर किसी शेयर का एक अंश होता है। आप जितने रुपए उस शेयर में लगाते हैं, उतना हिस्सा आपको मिल जाता है।
- अगर आप एमआरएफ का 100 रुपए का फ्रैक्शनल शेयर लेते हैं तो आपको उसका 675वां हिस्सा मिल जाएगा।
- ट्रस्टी के जरिए निवेशक इन्हें बेच भी सकते हैं। शेयर बेचने पर अपने हिस्से के बराबर राशि शेयरधारकों को मिल जाती है। ऐसे शेयरधारकों को कंपनी की ओर से जारी लाभांश भी उनके हिस्से के अनुपात में मिलता है।
- ज्यादातर अच्छे शेयरों की कीमत अधिक होती है। यदि कोई हर महीने हजार रुपए के शेयर लेना चाहता है तो वह रिलायंस, टीसीएस या नेस्ले के शेयर नहीं खरीद सकता। ये तीनों ही शेयर एक हजार रुपए से महंगे हैं।
- शेयरधारकों को फ्रैक्शनल शेयरों की डिलीवरी नहीं होती। आमतौर पर ऐसे शेयर संबंधित कंपनी के बोर्ड की तरफ से नियुक्त एक ट्रस्टी के अकाउंट में क्रेडिट किए जाते हैं, जो इनका केयरटेकर भी होता है।
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