फेसबुक पर नया खुलासा: प्लेटफॉर्म थर्ड पार्ट की कार्रवाई से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और ह्यूमन राइट को रिस्क, नफरत की भावना को मिला बढ़ावा
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नई दिल्ली17 मिनट पहले
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मेटा के प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक और वॉट्सऐप पर अभिव्यक्ति और सूचना की स्वतंत्रता का ध्यान नहीं देने का आरोप लगा है। रिपोर्ट में सामने आया है कि जब ये किसी थर्ड पार्टी की कार्रवाई करते हैं तो ह्यूमन राइट्स का ख्याल नहीं रखते हैं। साथ ही इनके बैन की वजह से नफरत और विरोध की भावना को बढ़ावा मिलता है।
ये रिपोर्ट मेटा के प्लेटफॉर्म से भारत और दूसरे देशों में ह्यूमन राइट के रिस्क पर मेटा ने 2019 में शुरू किए गए एक स्वतंत्र मानवाधिकार प्रभाव मूल्यांकन (HRIA) पर आधारित है। HRIA में 40 सिविल सोसाइटी स्टेकहोल्डर, एकेडमिक्स और पत्रकारों के इंटरव्यू शामिल थे।
इसमें कंपनी और कंटेंट पॉलिसी के एक्सटर्नल स्टेकहोल्डर के बीच समझ के अंतर को भी नोट किया। इसमें यूजर्स की जानकारी का कम होना, कंटेंट की रिपोर्टिंग और कंटेंट को रिव्यू करने में कठिनाइयों और कई लैंग्वेज में कंटेंट पॉलिसी को लागू करने की चुनौतियों का जिक्र है।
रिपोर्ट के अनुसार, प्रोजेक्ट को मार्च 2020 में लॉन्च किया गया था। कोविड -19 की वजह से इसमें देरी हुई। जिसकी वजह से यह प्रोजेक्ट 30 जून, 2021 तक खत्म हो पाया।
भारत में भी नफरत और झूठ फैला रहा फेसबुक
कंपनी की एक अंदरूनी रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ था कि भारत में फेसबुक फेक, भ्रामक खबरें और हिंसा फैलाने का माध्यम बन गया है। विरोधात्मक और नुकसानदेह नेटवर्क भारत एक केस स्टडी’ नामक इस दस्तावेज को कंपनी के ही रिसर्चर ने तैयार किया है। इसके मुताबिक फेसबुक पर ऐसे कई ग्रुप व पेज चल रहे हैं, जो मुसलमानों व भारतीय समाज के कमजोर तबकों के खिलाफ काम कर रहे हैं।
फेसबुक के अवैध कामों की जानकारी दे रही यह रिपोर्ट उसकी पूर्व कर्मचारी फ्रांसेस ह्यूगन ने फेसबुक के कई अहम डॉक्यूमेंट के साथ तैयार की है। 2019 के आम चुनाव के बाद भी भारत पर ऐसी ही रिपोर्ट में फेसबुक ने झूठी खबरें फैलाने व व्यवस्था बिगाड़ने की पुष्टि हुई। उसके मुताबिक पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा देखे गए कंटेंट के 40% व्यू फर्जी थे। वहीं 3 करोड़ भारतीयों तक पहुंच रखने वाला अकाउंट अनधिकृत मिला।
खुद कर्मचारी ने बताई आपबीती
- नई रिपोर्ट में एक कर्मचारी ने बताया था कि उसने फरवरी 2019 में खुद को केरल का बताते हुए फेसबुक अकाउंट बनाया और इसे अगले तीन हफ्ते तक चलाया।
- फेसबुक के अल्गोरिदम ने जो कंटेंट पेश किया, नए-नए पेजों व समूहों से जुड़ने की जो सिफारिशें की, उन्हें वह पढ़ता, देखता और मानता गया।
- रिजल्ट में नफरत भरी व हिंसा वाली सामग्री और झूठी सूचनाओं के सैलाब से उसका सामना हुआ।
कोरोना महामारी को भी नहीं छोड़ा
डॉक्यूमेंट के अनुसार जुकरबर्ग ने अपने प्लेटफॉर्म को ‘अर्थपूर्ण सामाजिक संवाद’ पर केंद्रित रखने के लिए कदम उठाए। लेकिन इनके जरिये भारत के बारे में झूठी खबरें व सूचनाएं ही फैलाई गईं। यहां तक कोरोना महामारी को भी नहीं बख्शा गया।
22 आधिकारिक भाषाएं, केवल पांच की निगरानी
रिपोर्ट में बताया गया कि भारत में 22 आधिकारिक भाषाएं हैं, लेकिन फेसबुक का अल्गोरिदम केवल 5 भाषाओं पर निगरानी रख पा रहा है। इसलिए भड़काऊ सामग्री उचित मात्रा में रोकने में वह नाकाम रहा है। राजनीतिक दलों से जुड़े कई फर्जी अकाउंट, चुनाव प्रक्रिया पर भ्रम फैलाती व मतदाताओं के खिलाफ सामग्री तक वह नहीं रोक पाया है।
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