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नीलकंठ मिश्रा से खास चर्चा: PM की इकोनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल सदस्य बोले- रुपया गिरना अच्छा नहीं, पर अभी यही सर्वश्रेष्ठ उपाय

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नई दिल्लीएक दिन पहले

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कुछ हफ्तों में देश में कई आर्थिक गतिविधियां एक साथ हुईं। सरकार ने गेहूं का निर्यात अचानक रोक दिया। रिजर्व बैंक ने रेपो रेट बढ़ाया। महंगाई दर बढ़ी। मांग घटी, बेरोजगारी दर बढ़ी और तेल से हुए मुनाफे पर सरकार की घेराबंदी हुई।

पूर्व वित्त मंत्री ने यहां तक कहा कि देश साइलेंट हार्ट अटैक से गुजर रहा है। वहीं सरकार ने दावा किया कि अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत है। देश में जो भी संकट है, वह वैश्विक प्रभावों जैसे कोरोना और यूक्रेन-रूस के युद्ध के चलते है।

दोनों पक्षों के दावों में इतने अंतर पर इन्वॉयरी प्लेटफॉर्म की शोमा चौधरी ने प्रसिद्ध अर्थशास्त्री, क्रेडिट सुइस के भारत के प्रमुख और प्रधानमंत्री की इकोनॉमिक एडवायजरी काउंसिल के सदस्य नीलकंठ मिश्रा से बात की। चुनिंदा अंश…

महंगाई बढ़ी… सरकार ने कदम नहीं उठाए?
डिमांड अधिक और सप्लाई कम होती है, तब महंगाई बढ़ती है। कोरोना के चलते मांग के मुकाबले सप्लाई बुरी तरह प्रभावित हुई थी। इस बीच सरकार ने यह तय किया कि कोई भूखा न रहे। स्वास्थ्य सेवाओं पर भी खुलकर खर्च किया।

अमेरिका ने लोगों को राहत पैकेज दिया, लेकिन वह बहुत अधिक था और अमीरों तक भी पहुंच गया। भारत में अब इंडस्ट्री खुल चुकी हैं, जॉब्स लौट रहे हैं। ऐसे में ऐसा कोई कारण नहीं है कि महंगाई बनी रहेगी। देश के पॉलिसी मेकर इस बात के लिए सोचते कि राहत पैकेज कितना बड़ा होना चाहिए, कैसा होना चाहिए, इसके पहले ही लॉकडाउन खुलने लगा। अर्थव्यवस्था पर स्थायी दाग नहीं लगे।

रुपया गिर रहा है…?
यह अच्छा विकल्प नहीं है, लेकिन कोई अच्छे विकल्प भी मौजूद नहीं हैं। मान लीजिए देश एक घर है। हम 120 रुपए का उपभोग कर रहे हैं। हमारे पास 100 रुपए ही हैं, तो 20 रुपए कहीं से लाना होंगे या उपभोग घटाना होगा। आप सबसे महंगी चीज का ही उपभोग कम करेंगे, जो देश के मामले में ऊर्जा है। अब इसके दो विकल्प हैं। पहला, आपको उसका आयात घटाना होगा।

इसका सबसे अच्छा उपाय है कि रुपया कमजोर होने दिया जाए। जब तक आयातित एवोकेडो, ब्लूबेरी, 2 लाख रुपए वाले आईफोन महंगे नहीं होंगे, तब तक डिमांड नहीं घटने वाली। एक अन्य विकल्प है पूरी इकोनॉमी को मंद कर दिया जाए, जो ऊंची ब्याज दरों से होगी। मैं अक्सर तर्क करता हूं कि रुपया गिरेगा तो महंगाई बढ़ेगी। इसलिए रुपए का गिरना अच्छी बात नहीं है, लेकिन मौजूदा परिस्थिति में सर्वश्रेष्ठ उपाय है।

वर्क फोर्स में लोग कम हुए, महिलाएं घटीं?
महिलाओं की भागीदारी 15 साल से घट रही है। इस बारे में कुछ करने की जरूरत है। वर्क फोर्स में लोगों की कमी नहीं हुई है। बल्कि लोग असंगठित से संगठित क्षेत्र की तरफ शिफ्ट हो रहे हैं। जो जॉब लॉस है, वह इकोनॉमी बेहतर होते ही सुधर जाएगा।

संगठित क्षेत्र में जॉब नहीं बढ़े?
ज्यादातर जॉब लॉस सर्विस और इंडस्ट्री में हुए। सर्विस में मुख्य तीन सेक्टर ट्रैवल-टूरिज्म, पर्सनल सर्विस और एजुकेशन हैं। तीनों ही सेक्टर फिर चल पड़े हैं। नौकरी न होने का सबसे बड़ा संकेत नरेगा है। लेकिन उसमें भी अब लोग बढ़ रहे हैं। इसलिए निर्माण गतिविधियां आदि शुरू होते ही ये नौकरियां जल्द लौट आएंगी।

GDP की मुश्किलें कब तक रहेंगी?
अभी हम ऊंची कीमतों पर तेल, कोयला, उर्वरक आदि खरीद रहे हैं। ये चीजें हमारी GDP को पीछे खींच रही हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध भी इसका कारण है। स्थितियां बेहतर होते ही सब सामान्य होगा।

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