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दीपक पूनिया से ब्रॉन्ज मेडल की उम्मीदें बरकरार: मैच देखने के लिए घर पर सुबह से ही जुटी थी भीड़; लोग बोले- मैच हारकर भी दिल जीत लिया छोरे ने

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  • When He Was 5 Years Old, His Father Became ‘Mahavir Phogat’, Taught Tricks In The Field, Raised Him By Selling Milk; Will Get Down On The Mat Today With The Hope Of A Medal

झज्जर/रेवाड़ी4 घंटे पहले

ओलिंपिक सेमीफाइनल खेले झज्जर जिले के गांव छारा के पहलवान दीपक पूनिया।

टोक्यो ओलंपिक में सबसे कम उम्र के पहलवान हरियाणा के झज्जर निवासी दीपक पूनिया 86 किलोग्राम भार वर्ग रेसलिग के सेमीफाइनल मुकाबले में यूएसए के खिलाड़ी डेविड मोरिस टेलर के साथ भले ही मैच हार गए, लेकिन परिवार मायूस नहीं है। अभी भी ब्रॉन्ज पदक की उम्मीदें बरकरार है। परिजन और गांव के लोगों का कहना है कि दीपक से बहुत उम्मीदें थी, मासूम इसलिए नहीं हैं कि उसकी उम्र बेहद कम है, आगे भी मौके मिलेंगे। दूसरी तरफ हरियाणा के दूसरे पहलवान रवि दहिया के प्रदर्शन से दीपक के परिजनों में खुशी है। ग्रामीणों ने कहा कि दोनों ही खिलाड़ी देश के लिए मेडल जरूर लेकर आएंगे।

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मेडल की आस में दीपक टोक्यो में तो घर पर परिवार टीवी उनकी फाइट देखने के लिए पूरी ताकत लगाए रहे।

मेडल की आस में दीपक टोक्यो में तो घर पर परिवार टीवी उनकी फाइट देखने के लिए पूरी ताकत लगाए रहे।

ग्रामीणों का कहना है कि दीपक ने हारकर भी हर किसी का दिल जीत लिया हैं, क्योंकि उसने जीत के लिए हर वो दांव चला, जिससे वह देश के लिए गोल्ड ला सके। गांव के लोगों को अपने बेटे पर नाज है। दीपक पूनिया का मुकाबला टोक्यो ओलंपिक रेसलिग में 86 किलोग्राम भार वर्ग में यूएसए के खिलाड़ी डेविड मोरिस टेलर से था। इस मैच को देखने के लिए बुधवार सुबह से ही लोग दीपक पूनिया के गांव छारा स्थित घर पर पहुंचने शुरू हो गए थे। मैच शुरू होने के बाद दीपक के हर दांव पर ग्रामीणों ने नजरें गड़ाए रखी।

सुबह चीन के पहलवान को किया था पस्त
दीपक पूनिया ने आज सुबह ही फ्रीस्टाइल रेसलिग में चीन के लिन जुशेन को 6-3 के अंतर से हराकर सेमीफाइनल में प्रवेश किया था। उसके बाद सेमीफाइनल में भी उसकी जीत की उम्मीद जताई जा रही थी, लेकिन शुरुआत में ही दीपक पिछड़ गए और उन्हें हार मिली।

महाबली के घर शोकेश में सजी गदाएं और मेडल।

महाबली के घर शोकेश में सजी गदाएं और मेडल।

पांच साल की उम्र में सफर शुरू किया
दीपक के सेमीफाइनल में प्रवेश करने के बाद फाइनल में पहुंचने की उम्मीद परिवार ही नहीं, बल्कि सभी ने लगाई हुई थी। दीपक पुनिया के पिता सुभाष का कहना है कि 5 साल की छोटी सी उम्र में उसने खिलाड़ी बनने का सफर शुरू कर दिया था। शुरुआत में उनके पिता ने ही गांव के खेतों में दीपक पुनिया को खेल के दांव पेच सिखाने शुरू किए थे। जिसके बाद दीपक ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इससे पहले भी दीपक देश और विदेश में आयोजित हुई दर्जनों प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक हासिल कर देश का नाम रोशन कर चुका है।

पिता ने दूध बेचकर की परवरिश
दीपक पुनिया के पिता ने दूध बेचकर दीपक की परवरिश की है और उसे उम्दा खिलाड़ी बनाया है। दीपक के पिता ही नहीं, बल्कि बहन मनीषा को भी अपने भाई से बहुत उम्मीदें थी। हालांकि सेमिफाइनल तक पहुंचकर उसने काफी हद तक वह उनकी उम्मीदों पर खरा भी उतरा।

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