डिस्कस थ्रो के फाइनल में आज दिखेंगी कमलप्रीत कौर: छोटे से गांव से निकलकर ओलंपियन बनीं; शाकाहार डाइट 6 फीट 1 इंच हाइट , बड़े संस्थान में दाखिला न मिला तो स्कूल स्टेडियम में की प्रैक्टिस
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मुक्तसरएक मिनट पहले
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कमलप्रीत क्वालिफाइंग राउंड में 64 मीटर डिस्कस फेंक कर ओवरऑल दूसरे स्थान पर रहीं थी।
जब आदमी कुछ कर गुजरने की ठान लेता है तो फिर कोई भी डगर मुश्किल नहीं होती। यह कहानी है पंजाब के मुक्तसर जिले के छोटे से गांव कबरवाला से निकलकर खेलों के महासमर ओलिंपिक तक पहुंची डिस्कस थ्रो की एथलीट कमलप्रीत कौर की, जो जापान के टोक्यो में चल रहे ओलिंपिक खेलों में आज डिस्कस थ्रो के फाइनल मुकाबले में अपना जोश और जुनून दिखाने को तैयार है। अगर कमलप्रीत कौर आज इतिहास रचती हैं तो भारत की स्वर्णिम उपलब्धियों में एक और कामयाबी जुड़ जाएगी।
कमलप्रीत शनिवार को डिस्कस थ्रो के क्वालिफाइंग राउंड में 64 मीटर डिस्कस फेंक कर ओवरऑल दूसरे स्थान पर रहीं थी। कमलप्रीत देश के लिए मेडल जीतने से न चूकें, इसलिए वह टोक्यो से वीडियो कॉल के जरिए अपने निजी कोच राखी त्यागी के मार्गदर्शन में ट्रेनिंग कर रही हैं। कोच राखी ने भास्कर को बताया कि रविवार सुबह करीब 2 घंटे कमलप्रीत को वीडियो कॉल के जरिए ट्रेनिंग दी। भारतीय समय के अनुसार सुबह 10 बजे से करीब 12 बजे तक कमलप्रीत कौर ने लाइट वेट ट्रेनिंग और स्पीड वर्क किए।
शॉटपुट में डिस्ट्रिक्ट लेवल पर मेडल जीत चुकी हैं।
रियो ओलिंपिक के ब्रॉन्ज मेडलिस्ट से ज्यादा थ्रो कर चुकी हैं कमलप्रीत
राखी ने बताया कि कमलप्रीत कौर अगर अपना बेस्ट देती हैं, तो भारत का मेडल पक्का है। कमलप्रीत 21 जून को पटियाला में हुए इंटर स्टेट कंपीटिशन के दौरान 66.59 मीटर थ्रो किया था। इस प्रदर्शन को वह दोहराती हैं, तो देश के लिए मेडल जरूर जीत सकती हैं। रियो ओलिंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली क्यूबा की थ्रोअर डेनिया कैबेलरो ने 65.34 मीटर ने थ्रो किया था। जबकि फ्रांस की मलेनिया रॉबर्ट ने 66.73 मीटर के साथ सिल्वर और क्यूरेशिया की सेन्ड्रा परकोविच 69.21 मीटर के साथ गोल्ड मेडल जीता था।
स्कूल स्तर पर शॉटपुट करती थी
राखी ने बताया कि पहले कमलप्रीत शॉट-पुटर थीं। स्कूल लेवल पर उनकी हाइट को देखकर फिजिकल टीचर ने शॉटपुट की ट्रेनिंग के लिए प्रेरित किया था। बाद में जब वह बादल की SAI एकेडमी में आईं, तो अन्य बच्चों को देखकर डिस्कस थ्रो करना शुरू किया। जब मैंने एकेडमी जॉइन की, तो उन्हें कुछ ही दिन डिस्कस थ्रो करते हुआ था। मैंने कमलप्रीत के टैलंट को देखकर उन्हें प्रेरित किया। वह शॉटपुट में डिस्ट्रिक्ट लेवल पर मेडल जीत चुकी हैं।
शुद्ध शाकाहार के दम पर ही इतना बड़ा मुकाम पाया है।
नॉनवेज से कोसों दूर है कमलप्रीत
कमलप्रीत पिछले 7 साल से इस मुकाम के लिए संघर्ष कर रही है। इतना ही नहीं, आम तौर पर देर-सवेर खिलाड़ी नॉनवेज खाने को अपना ही लेते हैं, लेकिन कमलप्रीत कौर ने ऐसा भी कुछ नहीं अपनाया। शुद्ध शाकाहार के दम पर ही इतना बड़ा मुकाम पाया है। नामी संस्थानों में दाखिला नहीं मिला तो वह पास के स्कूल के स्टेडियम में जाती थी। आइए, डिस्कस थ्रो में देश को मेडल की उम्मीद देने वाली कमलप्रीत कौर के इस सफर को थोड़ा विस्तार से समझते हैं…
कमलप्रीत के जन्म पर नई मनाई गई थी खुशी
कमलप्रीत कौर का जन्म 4 मार्च 1996 को मुक्तसर जिले के गांव कबरवाला में मध्यमवर्गीय किसान कुलदीप सिंह के घर हुआ था। पिता के पास ज्यादा जमीन नहीं है और पहली बेटी होने पर परिवार ने खास खुशी भी नहीं मनाई थी। उसके बाद उन्हें एक बेटा भी हुआ। कमलप्रीत कौर ने अपनी 10वीं कक्षा तक की पढ़ाई पास के गांव कटानी कलां के प्राइवेट स्कूल से की है। कद की बड़ी और भारी शरीर की होने के कारण स्कूल में उसे एथलेटिक खिलाया जाने लगा। उसके पिता कहते हैं कि हमारे पास इतनी पूंजी नहीं थी कि वह बेटी को ज्यादा खर्च दे सकें। किसान परिवार में होने के कारण जितना हो पाता, वह उसे दूध-घी आदि देते रहे हैं, मगर प्रैक्टिस के लिए वह कई बार 100-100 किलोमीटर का सफर खुद तय करके जाती रही है।
प्रैक्टिस के लिए कई बार 100-100 किलोमीटर का सफर खुद तय करके जाती रही है।
बेटी का हुनर देखकर पिता ने सहयोग किया
कटानी कलां स्कूल में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद उसने पिता से खेल इंस्टीट्यूट से ट्रेनिंग लेने की इच्छा जाहिर की। परिवार में पहले कोई खिलाड़ी नहीं था तो समस्या थी कि बेटी को कहां लगाया जाए। किसी ने अमृतसर में ट्रेनिंग स्कूल होने संबंधी बताया तो वह उसे वहां ले गए। वहां भी एडमिशन नहीं मिला तो वह गांव आ गए। गांव के ही एक अध्यापक ने बताया कि बादल गांव में भी ट्रेनिंग स्कूल है। जब वह वहां गए तो पता चला कि वहां के हॉस्टल में खिलाड़ी पूरे हो चुके हैं, इसलिए वहां एडमिशन नहीं मिल सकती। वह निराश होकर गांव लौट आए, मगर कमलप्रीत ने हौसला नहीं छोड़ा। विकल्प की तलाश उसे पता चला कि स्पोर्टस अथॉरिटी ऑफ इंडिया के रिजनल सेंटर के पास ही स्कूल है। अगर वह वहां 11वीं में एडमिशन ले लेती है तो वह वहां हॉस्टल मिल सकता है। पिता ने वहां एडमिशन दिलाया और वह रिजनल सेंटर में प्रैक्टिस के लिए जाने लगी।
मां ने कहा- पहले पहल डर था, अब उसी से हमारा नाम
कमलप्रीत कौर की मां राजिंदर कौर बताती हैं कि पहले पहल जब वह हॉस्टल में रहने के लिए गई तो डर था कि अकेली लड़की कैसे रहेगी। क्या करेगी खेलकर, आखिर तो चूल्हा ही संभालना है। आज फख्र होता है कि वह दुनिया में नाम बनाने के लिए पैदा हुई थी। पहले मेरे कहने पर एक बार एथलेटिक छोड़ने का मन भी बना लिया था, मगर पिता कुलदीप सिंह ने उन्हें (कमलप्रीत की मां को) मनाया और वह उसे हॉस्टल में भेजने के लिए राजी हुई।
एथलीट को पहली बार साल 2019 फेडरेशन के कप के दौरान पहचान मिली थी।
कोरोना ने तोड़ा मनोबल, क्रिकेट खेलने लगी थी कमलप्रीत
कमलप्रीत के पिता कुलदीप सिंह बताते हैं कि वह हमेशा कहती थी कि उसे ओलिंपिक में जाना है। मगर कोरोना में ग्राउंड बंद हो जाने के कारण वह काफी हताश थी। यही नहीं वह अब गांव में क्रिकेट खेलने लगी थी और काफी परेशान भी रहती थी। टोक्यो जाते समय भी उसके मन में उदासी थी और उसे लगता था कि वह प्रैक्टिस अच्छे से नहीं कर पाई है अब जब उससे बात होती है वह काफी उत्साहित नजर आती है।
इस तरह से बनाई ओलिंपिक के फाइनल में जगह
6 फीट 1 इंच लंबी इस एथलीट को पहली बार साल 2019 फेडरेशन के कप के दौरान पहचान मिली थी, जब उन्होंने 64.76 मीटर की थ्रो के साथ कृष्णा पूनिया का 9 साल पुराना नेशनल रिकॉर्ड तोड़ दिया था। इसी थ्रो के साथ उन्होंने ओलिंपिक के लिए अपना टिकट भी पाया था। अब भारत को उम्मीद है कि ओलिंपिक में डिस्कस थ्रो में भारत जरूर एक मेडल जीत सकता है। इस साल कमलप्रीत बेहतरीन फॉर्म में हैं। उन्होंने इस साल दो बार 65 मीटर की थ्रो फेंकी है। मार्च के महीने में उन्होंने फेडरेशन कप में 65.06 मीटर की थ्रो फेंक नेशनल रिकॉर्ड बनाया था इसके बाद जून के महीने में उन्होंने अपने ही इस रिकॉर्ड को और बेहतर किया। इंडियन ग्रेंड प्रिक्स-4 में उन्होंने 66.59 मीटर की थ्रो के साथ रिकॉर्ड बना डाला। अब कमलजीत का फाइनल मुकाबला दो अगस्त को खेला जाएगा।
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