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टीम इंडिया में शामिल हुए तेज गेंदबाज मुकेश की कहानी: किस्मत बिहार से कोलकाता ले गई, पिता ने टैक्सी तक चलाई लेकिन हौसला बढ़ाया

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स्पोर्ट्स डेस्क3 मिनट पहलेलेखक: आदर्श कुमार

ऑस्ट्रियन न्‍यूरोलॉजिस्‍ट सिगमंड फ्रायड का एक मशहूर कोट है- ‘एक दिन वर्षों का संघर्ष, बहुत खूबसूरत तरीके से तुमसे टकरायेगा।’ साउथ अफ्रीका के खिलाफ चल रही वनडे सीरीज में पहली बार टीम का हिस्सा बने तेज गेंदबाज मुकेश कुमार ने फ्रायड की इन लाइनों को सही साबित किया है।

मुकेश बिहार की राजधानी पटना से लगभग 150 किलोमीटर दूर गोपालगंज जिले के एक छोटे से गांव काकरकुंड के रहने वाले हैं। वो बचपन से ही भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा बनना चाहते थे। लेकिन, जहां खेल के इन्फ्रास्ट्रक्चर के नाम पर खिलवाड़ और रणजी की टीम भी नहीं हो। वैसी जगह से निकलकर कैसे मुकेश भारतीय टीम तक पहुंचे। उन्होंने खुद अपनी कहानी भास्कर को बताई। उसी बातचीत के अंश…

मुकेश कुमार बंगाल के जब शुरुआती दिनों में रणजी खेलना शुरू किया तो उन्हें मोहम्मद शमी ने अपने जूते दिए थे।

मुकेश कुमार बंगाल के जब शुरुआती दिनों में रणजी खेलना शुरू किया तो उन्हें मोहम्मद शमी ने अपने जूते दिए थे।

सवाल: आप पटना से करीब 150 किमी दूर गोपालगंज के रहने वाले हैं। वहां खिलाड़ियों के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर ना के बराबर है, वहां से भारत के लिए खेलने का सपना देखना बहुत बड़ी बात है, इस सपने को आपने कैसे पूरा किया?
जवाब: मेरा बचपन से ये सपना था कि एक दिन इंडिया के लिए खेलूं। ये नहीं जानता था कि ये कैसे होगा। इसलिए बस अपने खेल पर फोकस किया। मेहनत करता गया। जिस टीम में मैं खेलता था मुझे कहा गया कि आप बस अच्छी बॉलिंग और विकेट लेने पर ध्यान दीजिए। मैंने बस वही किया। उसी मेहनत और खेल के प्रति मेरे लगाव के चलते मैं यहां पहुंच पाया हूं।

टीम इंडिया के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के साथ मुकेश। माही को मुकेश अपना आदर्श मानते हें।

टीम इंडिया के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के साथ मुकेश। माही को मुकेश अपना आदर्श मानते हें।

सवाल: हमने सुना कि आप CRPF में जाना चाहते थे और आपके पिताजी आपके क्रिकेट खेलने के पक्ष में नहीं थे…क्या ये सच है?
जवाब: पिताजी मेरे क्रिकेट खेलने के खिलाफ नहीं थे। बल्कि वो तो क्रिकेट के बहुत बड़े फैन थे। उस समय हमारी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। उन्हें शुरुआत में इस बात पर भरोसा नहीं था कि एक छोटी जगह से आने वाले लड़के का भी क्रिकेट में करियर बन सकता है।

पटना से 150 किमी दूर एक छोटे गांव में रहने वाला लड़का क्रिकेटर बनने का सपना नहीं देखता है। यहां सिर्फ एक ही ऑप्शन है – पढ़ाई और फिर जॉब। फिर पिताजी ने मुझपर विश्वास जताया और कहा कि ठीक है, एक बार ट्राई करो।

पहले पापा मुझे जॉब पर ध्यान देने के लिए कहते थे, लेकिन मैंने क्रिकेट क्लब में अपना नाम लिखवाया। इस दौरान चोट भी लगी। तब पापा ने कहा कि ऐसा कब तक चलता रहेगा, 1 साल गुजर गया है। मैंने पापा से 1 साल का समय और मांगा। इस एक साल में मैंने जी तोड़ मेहनत की। इसके बाद जब रिजल्ट आया और रणजी ट्रॉफी की लिस्ट में अपना नाम देखा तो पहला फोन पापा को ही किया।

मुकेश कुमार अभी तक IPL में डेब्यू नहीं कर सके हैं। 2022 सीजन में वो दिल्ली की टीम की ओर से नेट बॉलर थे।

मुकेश कुमार अभी तक IPL में डेब्यू नहीं कर सके हैं। 2022 सीजन में वो दिल्ली की टीम की ओर से नेट बॉलर थे।

सवाल: आपकी जिंदगी संघर्ष से भरी रही, इस दौरान पिताजी का साया भी सर से उठ गया। तो क्या कभी क्रिकेट छोड़ने का ख्याल आया?
जवाब: हमारा बिजनेस था, लेकिन कुछ साल-डेढ़ साल के लिए बिजनेस ठीक नहीं चला। इस दौरान पिताजी ने टैक्सी चलाई। रणजी ट्रॉफी में सिलेक्शन के बाद से मुझे कभी नहीं लगा कि मुझे क्रिकेट छोड़ देना चाहिए।

उससे पहले जब मैं रणजी ट्रॉफी में सिलेक्शन के किए कोशिशें करता था तो सोचता था कि पापा से जो 1 साल का समय मांगा है। शायद उतने समय में मेरा सिलेक्शन नहीं हो पाएगा। फिर भी मैं लगा रहा, कोशिश करता रहा। मैंने ठान लिया था कि कुछ भी हो अपनी तरफ से मेहनत में कमी नहीं रखूंगा। जो होगा वो देखा जाएगा।

भारतीय तेज गेंदबाज की ये तस्वीर बिहार में उनके गांव की है।

भारतीय तेज गेंदबाज की ये तस्वीर बिहार में उनके गांव की है।

सवाल: जब आप बिहार के लोकल ग्राउंड्स में खेलते थे तो लोग आपको ब्रेट ली कहकर पुकारते थे। ये नाम कैसे पड़ा? इसकी कहानी बताईए…
जवाब: उस समय मैं टेनिस बॉल से क्रिकेट खेलता था। मैं बहुत तेज गेंदबाजी करता। मेरा एक्शन भी ब्रेट ली से मिलता-जुलता था। इसलिए मुझे उनका नाम दे दिया गया। मैं ब्रेटली का बहुत बड़ा फैन हूं। मैं उन्हें अपना आदर्श मानता हूं। जब लोग मुझे ब्रेट ली पुकारते थे तो बहुत खुशी होती थी।

सवाल: गोपालगंज से कोलकाता का सफर कैसे तय किया…बिहार से आकर पश्चिम बंगाल के लिए खेलना कैसे संभव हुआ?
जवाब: मेरा पूरा परिवार रोजगार की तलाश में कोलकाता गया था। हमारा वहां छोटा सा बिजनेस था। मैं गांव से ही पढ़ाई करता था। मम्मी के साथ आता-जाता रहता था।

ग्रेजुएशन के दौरान गोपालगंज में मेरा एक छोटा सा एक्सीडेंट हो गया। तब पापा ने कहा कि ग्रेजुएशन चल ही रहा है यहां आ जाओ। तब मैं कोलकाता चला गया। पापा ने कहा कि देखो यहां क्या कर सकते हो तो मैंने यहां क्रिकेट क्लब ढूंढना शुरू किया। उन्होंने काम ढूंढने को भी कहा।

मेरे घर के पास कुछ दोस्त थे। उन्हें जितना धन्यवाद दूं वो कम है। उनकी वजह से ही मैं क्रिकेट क्लब तक पहुंच सका। वहां से ही मेरी क्रिकेट जर्नी शुरू हुई। मैंने सेकंड और फर्स्ट डिवीजन खेला। 2020 में मेरा सिलेक्शन रणजी ट्रॉफी के लिए हुआ।

2020 के रणजी ट्रॉफी सेमीफाइनल में कर्नाटक के खिलाफ मुकेश ने 8 विकेट झटके थे।

2020 के रणजी ट्रॉफी सेमीफाइनल में कर्नाटक के खिलाफ मुकेश ने 8 विकेट झटके थे।

सवाल: आपको बंगाल क्रिकेट और BCCI का कितना सपोर्ट मिला? लड़के जो क्रिकेट में भविष्य बनाना चाहते हैं उन्हें आप क्या कहना चाहेंगे?
जवाब: मैं सिर्फ यही कहूंगा कि हमेशा अपनी मेहनत पर भरोसा रखें। खुद पर विश्वास रखना जरूरी है। मैं BCCI (बोर्ड ऑफ कंट्रोल फॉर क्रिकेट इन इंडिया) और CAB (क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल) को धन्यवाद देना चाहूंगा कि जहां बिहार में क्रिकेट का उतना स्कोप नहीं है। वहां के एक लड़के को भारतीय टीम में चुनना बड़ी बात है।

मेरी परफॉरमेंस को ध्यान में रखा गया वो भी तब, जब मैं IPL खेला भी नहीं हूं। डोमेस्टिक क्रिकेट की परफॉरमेंस से मेरा इंडिया टीम में सिलेक्शन हुआ है।

सवाल: दिसंबर में IPL की नीलामी भी होने वाली है। आप किस टीम से खेलना चाहेंगे?
जवाब: इसका जवाब अभी मेरे पास नहीं है। मैं सिर्फ इतना कह सकता हूं कि मुझे जिस भी टीम से खेलने का मौका मिलेगा मैं अपना 100% दूंगा।

सवाल: आपका उपनाम है ‘ब्रेटली’ है। कहीं न कहीं फैंस की भी आपसे अपेक्षा है कि आप उन्हीं की तरह खेलें। ऐसे में आप कितना दबाव महसूस कर रहे हैं?
जवाब: मैं किसी तरह के दबाव में नहीं हूं बल्कि खुश हूं। मैं खुश हूं कि जिस ग्रुप में शार्दूल ठाकुर, शिखर धवन भाई, श्रेयस अय्यर हैं ऐसी टीम में मुझे खेलने का मौका मिला है।

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