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छंटनी का भारत पर कितना असर: अमेरिका में 32,000 टेक वर्कर्स की जॉब गई, भारत में स्टार्टअप्स ने 12 हजार को निकाला

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18 मिनट पहलेलेखक: देवेंद्र अडलक

चीन की स्मार्टफोन मैन्युफैक्चर शाओमी (Xiaomi) ने 900 से ज्यादा कर्मचारियों की छंटनी की है। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक कंपनी ने आर्थिक मंदी के बीच अपने लगभग 3% कर्मचारियों को निकाल दिया है। हालांकि Xiaomi ने अभी तक इसकी पुष्टि नहीं की है। मंदी के डर से एपल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी दिग्गज टेक कंपनियों ने भी छंटनी की है।

भारत में भी बीते दिनों कई स्टार्टअप्स ने कर्मचारियों को निकाला है। दरअसल, रुस-यूक्रेन जंग के शुरू होने के बाद से पूरी दुनिया महंगाई का सामना कर रही है। खाने पीने से लेकर अन्य कई चीजें महंगी हो गई हैं। महंगाई से निपटने के लिए रिजर्व बैंक ब्याज दरों में इजाफा कर रहे हैं, जिससे ग्रोथ प्रभावित हो सकती है। ग्रोथ प्रभावित होगी तो मंदी आ सकती है।

दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी अमेरिका भी इससे जूझ रहा है। यहां महंगाई 40 सालों के रिकार्ड स्तर पर है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या जिस तरह से अमेरिकी कंपनियां छंटनी कर रही हैं वैसा ही भारत की बड़ी फर्म्स भी कर सकती हैं? क्या आने वाले दिनों में भारत में लोगों को रोजगार खोना पड़ सकता है? अमेरिका में मंदी आई तो भारत पर कितना असर होगा? भारत पर मंदी का खतरा कितना बड़ा है?

तो चलिए इन सवालों के जवाब जानते हैं? लेकिन उससे पहले उन कंपनियों के बारे में जान लेते हैं जिन्होंने हाल-फिलहाल छंटनी की है:

32,000 टेक वर्कर्स को जॉब से निकाला
पब्लिक और प्राइवेट कंपनियों से जुड़ी इन्फॉर्मेशन प्रोवाइड कराने वाले प्लेटफॉर्म क्रंचबेस के कंपाइल किए डेटा के अनुसार जुलाई तक अमेरिका में 32,000 से ज्यादा टेक वर्कर्स को अपनी जॉब गंवानी पड़ी है। एम्प्लॉइज को निकालने वाली कंपनियों में माइक्रोसॉफ्ट और मेटा जैसी बड़ी टेक कंपनियां भी शामिल हैं। वहीं स्टार्टअप्स में छंटनी को ट्रैक करने वाली वेबसाइट layoffs.fyi के अनुसार दुनियाभर में इस साल 1 अप्रैल से 342 टेक कंपनियों/स्टार्टअप्स के 43,000 से ज्यादा कर्मचारियों को जॉब से निकाला जा चुका है।

एपल, माइक्रोसॉफ्ट में छंटनी
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि टेक दिग्गज एपल ने बीते दिनों 100 कॉन्ट्रेक्ट बेस्ड इम्प्लॉइज को निकाल दिया। ये इम्प्लॉइज HR डिपार्टमेंट में थे और नए इम्प्लॉइज की भर्ती करने का काम इनके पास था। मामले की जानकारी रखने वाले लोगों के अनुसार, एपल ने खर्च को कंट्रोल करने के लिए ये फैसला लिया है।

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि छंटनी का एक कारण एपल की मौजूदा बिजनेस जरूरतों में बदलाव भी है। इसके अलावा दूसरी कंपनियों की तरह एपल को भी मंदी का डर सता रहा है। बीते दिनों एपल ने अपनी अर्निंग्स कॉल में कहा था कि वह अपने खर्च को लेकर सतर्क है। इस बयान से ऐसा लगता है कि कंपनी कुछ कर्मचारियों को निकालकर पैसे बचाने की कोशिश कर रही है।

अभी हाल ही में, गूगल ने कहा था कि वह हायरिंग को धीमा कर रहा है। गूगल के CEO सुंदर पिचाई ने कहा था कंपनी के पास बहुत सारे कर्मचारी हैं, लेकिन काम बहुत कम है। माइक्रोसॉफ्ट ने भी बीते दिनों 2,000 से ज्यादा कर्मचारियों की छंटनी की है। नेटफ्लिक्स, शॉपिफाई, कॉइनबेस, अलीबाबा और रॉबिनहुड जैसी अन्य कंपनियों ने भी कमोबेश कॉस्ट कटिंग के कारण कुछ कर्मचारियों को निकाल दिया।

गूगल का मुनाफा घटा
गूगल की पेरेंट कंपनी अल्फाबेट के मुनाफे में लगातार दूसरी तिमाही (Q2 2022) में गिरावट आई थी। अल्फाबेट ने 2022 की दूसरी तिमाही के दौरान लगभग 16 अरब डॉलर का प्रॉफिट कमाया, जो पिछले साल की इसी अवधि के दौरान 18.5 अरब डॉलर था।

कंपनी के मुनाफे में कमी का कारण उसका ज्यादा खर्च करना है। ऐसा इसलिए क्योंकि Q2 2021 की तुलना में Q2 2022 में कंपनी का रेवेन्यू बढ़ा है, लेकिन प्रॉफिट घटा है। इस तिमाही में कंपनी का रेवेन्यू लगभग 69.7 अरब डॉलर रहा, जो पिछले साल की समान तिमाही 61.9 अरब डॉलर था।

2021 तुलना में गूगल रिसर्च एंड डेवलपमेंट और सेल्स एंड मार्केटिंग दोनों पर लगभग 3 अरब डॉलर ज्यादा खर्च कर रहा है। हेडकाउंट की बात करें तो Q2 2021 में गूगल में 144,056 एम्पलॉई थे। Q2 2022 में यह संख्या बढ़कर 174,014 हो गई।

फेसबुक के रेवेन्यू में पहली बार गिरावट
फेसबुक की पेरेंट कंपनी मेटा को पिछले तीन महीनों में दोहरी मार झेलनी पड़ी है। टिकटॉक से बढ़ते कॉम्पिटिशन और एडवर्टाइजर्स की घबराहट के बीच पहली बार उसके रेवेन्यू में गिरावट आई और लगातार तीसरी तिमाही में प्रॉफिट घट गया।

कंपनी के CEO मार्क जुकरबर्ग ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि हम आर्थिक मंदी में प्रवेश कर चुके हैं जिसका डिजिटल ऐडवर्टाइजमेंट पर प्रभाव पड़ेगा। ‘मैं कहूंगा कि स्थिति एक क्वार्टर पहले की तुलना में बदतर लगती है।’

अमेरिकी कंपनियों ने एक्सपेंशन रोका
महंगाई, धीमी होती अर्थव्यवस्था, अमेरिका और यूरोप में मंदी के डर और यूक्रेन-रूस युद्ध की चिंताओं के बीच कंपनियां अपना एक्सपेंशन रोक रही हैं। मेटा, ट्विटर और टेस्ला सहित अन्य कुछ कंपनियों ने भी अमेरिकी बाजार में अनिश्चितता के बीच हायरिंग को स्लो कर दिया है।

स्टाफिंग स्पेशलिस्ट एक्सफेनो की अगस्त की रिपोर्ट के अनुसार फेसबुक, एपल, अमेजन, नेटफ्लिक्स, माइक्रोसॉफ्ट और गूगल (सामूहिक रूप से FAAMNG के रूप में जाना जाता है) में कुल एक्टिव ओपनिंग 9,000 से कम थी। इन छह कंपनियों में आमतौर पर 40,000 से अधिक एक्टिव जॉब ओपनिंग्स रहती हैं। इन कंपनियों ने ग्लोबल ट्रेंड को देखते हुए भारत में भी हायरिंग को रोक दिया है।

अन्य इंडस्ट्री पर असर नहीं
अमेरिका में टेक सेक्टर में हायरिंग में कटौती का अभी तक अन्य इंडस्ट्री में हायरिंग पर असर नहीं पड़ा है, जो रेड-हॉट बने हुए हैं। जुलाई में अमेरिकी इकोनॉमी ने 528,000 जॉब ऐड किए। कुछ एनालिस्टों का मानना है कि टेक सेक्टर की छंटनी का मतलब यह नहीं कि बड़े लेवल पर हायरिंग स्लोडाउन आ रहा है।

भारतीय स्टार्टअप्स में छंटनी
इंडियन स्टार्टअप्स साल के पहले 6 महीने में करीब 12,000 एम्पलॉइज को निकाल चुके हैं। साल खत्म होते-होते यह संख्या 60 हजार के पार पहुंच सकती हैं। ओला, ब्लिंकिट, बायजूस, अनएकेडमी, वेदांतू, कार्स24, मोबाइल प्रीमियर लीग, लीडो लर्निंग, एमफाइन, ट्रेल, फरलैंको और कई दूसरी कंपनियां इस साल अब तक हजारों कर्मचारियों की छंटनी कर चुकी हैं।

मार्केटिंग खर्च 30-40% कम किया
शेयरचैट और मोजो के चीफ कॉमर्शियल ऑफिसर अजीत वर्गीज ने कहा, ‘स्टार्ट-अप निश्चित रूप से ज्यादा कॉस्ट कॉन्शियस हो गए हैं। चाहे वह क्लाउड हो, यूजर एक्विजिशन, इंफ्रास्ट्रक्चर, या लोग – सभी पर कम खर्च किया जा रहा है। हमने स्टार्ट-अप्स को मार्केटिंग कॉस्ट में 30-40% या इससे भी अधिक की कटौती करते देखा है। वर्गीज ने कहा कि अधिक स्थापित और लाभप्रद लिस्टेड कंपनियों की मार्केटिंग स्पेंड्स में 10-15% की कमी आई है। फिनटेक, एडटेक और क्रिप्टोकरेंसी जैसे सेक्टर्स में सबसे अधिक गिरावट देखी गई।

मंदी और जॉब का कनेक्शन
मंदी की शुरुआत में, जैसे-जैसे कंपनियां कम मांग, घटते मुनाफे और ऊंचे कर्ज का सामना करती हैं, कई कंपनिया कॉस्ट कटिंग करने के लिए एम्पलॉइज की छंटनी शुरू कर देती हैं। बढ़ती बेरोजगारी कई संकेतकों में से एक है जो मंदी को परिभाषित करती है। मंदी में कंज्यूमर कम खर्च करते हैं और इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन भी धीमा हो जाता है।

अमेरिका पर मंदी का कितना खतरा?
अमेरिका में 2022 के जून क्वार्टर के दौरान ग्रोथ 0.9% एनुअलाइज्ड रेट से धीमी हो गई। ये लगातार दूसरा क्वार्टर था जब अमेरिकी इकोनॉमी सिकुड़ी थी। फाइनेंशियल टाइम्स और इनिशिएटिव ऑन ग्लोबल मार्केट्स के किए गए 49 अमेरिकी मैक्रोइकॉनॉमिस्ट्स के एक सर्वे में 2023 तक मंदी के आने की आशंका जताई गई है। सर्वे में दो-तिहाई से अधिक इकोनॉमिस्ट का मानना ​​​​था कि 2023 में मंदी आएगी।

अमेरिकी मंदी का भारत पर कितना असर होगा?
पिछली मंदी जैसे कि 2008 में फाइनेंशियल क्राइसिस और 2000 के दशक की शुरुआत में डॉटकॉम क्रैश के कारण आई थी। 2008 की मंदी की शुरुआत अमेरिका से हुई थी, लेकिन भारत पर इसका बहुत ज्यादा असर नहीं दिखा था। अभी महंगाई बड़ी समस्या बनी हुई है जो क्रय शक्ति और बचत को कम कर देती है। महंगाई से निपटने के लिए रिजर्व बैंक ब्याज दरों में लगातार बढ़ोतरी कर रहा है जिससे ग्रोथ प्रभावित हो सकती है।

अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था है, लिहाजा यहां मंदी आने का असर कम या ज्यादा सभी इकोनॉमीज पर होगा। भारत पर इसके असर की बात करें तो भारत कई उत्‍पादों के लिए अमेरिका पर निर्भर हैं। इसके अलावा यहां की कई आईटी कंपनियों का बिजनेस अमेरिका पर निर्भर है। हालांकि भारत के बड़े कंज्यूमर मार्केट के साथ मैन्युफैक्चरिंग और प्रोडक्शन फैसिलिटी अमेरिकी मंदी का ज्यादा असर नहीं होने देगी।

बीते दिनों गोदरेज इंडस्ट्रीज के MD नादिर गोदरेज ने दैनिक भास्कर को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, ‘मुझे नहीं लगता है कि अमेरिका में लंबे समय तक की मंदी का कोई बड़ा खतरा है। मेटल और खाने की चीजों के दाम कम हो गए हैं। कच्चे तेल में भी गिरावट शुरू हो गई है। ऐसे में महंगाई घटेगी और मंदी की आशंका कमजोर होगी। वैसे अमेरिका में मंदी आती भी है तो भारतीय अर्थव्यवस्था और निर्यात पर ज्यादा असर नहीं होगा।’

भारत पर मंदी का खतरा कितना बड़ा है?
भारत में महंगाई अप्रैल महीने में 7.79% पर पहुंच गई थी। RBI के ब्याज दरों में तीन बार में 1.40% के इजाफे का बाद जुलाई में रिटेल महंगाई घटकर 6.7% पर आ गई है। कमोडिटी के दाम भी अब नीचे आने लगे हैं, लिहाजा RBI को ब्याज दरें ज्यादा बढ़ाने की जरूरत नहीं रह जाएगी। फिर भी नीतिगत दरों में अब तक की तेज बढ़ोतरी और आगे हल्के इजाफा के कारण आर्थिक विकास में मामूली गिरावट आ सकती है।

बीते दिनों ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में बताया गया है कि, कौन कौन से एशियाई देश आर्थिक मंदी की चपेट में आ सकते हैं और किन देशों पर आर्थिक मंदी का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। रिपोर्ट में अर्थशास्त्रियों ने कहा था कि चीन और पाकिस्तान के आर्थिक मंदी में फंसने की संभावना 20% है। मलेशिया की 13%, वियतनाम 10%, थाइलैंड 10%, फिलीपींस 8%, इंडोनेशिया 3% और भारत की शून्य है।

क्या भारत की बड़ी फर्म्स भी छंटनी कर सकती हैं?
रूस-यूक्रेन जंग से कमोडिटी की ऊंची कीमतों से कुछ इंडस्ट्री बुरी तरह प्रभावित हुई हैं, लेकिन कुछ को फायदा भी हुआ है। केमिकल इंडस्ट्री को सबसे ज्यादा फायदा हुआ है। FMCG बिजनेस थोड़ा प्रभावित हुआ है। रियल एस्टेट पर ज्यादा असर नहीं हुआ है। फूड बिजनेस महंगाई से प्रभावित हुए हैं। हालांकि, अब कमोडिटी कीमतों के कम होने से स्थिति में सुधार हो रहा है। ऐसे में बड़ी फर्म्स में छंटनी की आशंका कम है।

भारत पर फिलहाल असर नहीं
अमेरिका में मंदी के डर का असर भारत पर नहीं दिख रहा। भारत में जॉब ग्रोथ मजबूत बनी हुई है। एक रिपोर्ट के अनुसार 2021-22 में भारत में मार्केट कैपिटलाइजेशन के आधार पर टॉप 10 प्राइवेट कंपनियों में से 8 ने 3 लाख से ज्यादा लोगों को जॉब पर रखा। 2020-21 में ये संख्या केवल एक लाख के करीब थी। रिटेल, IT सर्विसेज और बैंकिंग एजुकेशन, टेलीकॉम, E-कॉमर्स, हेल्थकेयर, FMCG और एयरलाइंस ने भी भर्ती में तेजी लाई है।

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