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क्रिप्टोकरेंसी के बारे में शिकायतों की भरमार: पेमेंट गेटवे कंपनियां पीछे खींच रही हैं पैर, ट्रांजेक्शन बुरी तरह प्रभावित

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मुंबईएक घंटा पहले

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  • बड़े बैंकों ने जब से अपने हाथ खींच लिए हैं तब से पेमेंट गेटवे काफी मुश्किल में पड़ गए हैं
  • रिजर्व बैंक द्वारा लगाई गई पाबंदी ने काफी मुश्किलें खड़ी कर दी है

क्रिप्टोकरेंसी को लेकर नया मामला सामने आया है। इसके खिलाफ ढेर सारी शिकायतें मिलनी शुरू हो गई हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि रिजर्व बैंक ने इनको कहा था कि वह इस तरह की करेंसी के पक्ष में नहीं है।

सोल्यूशन की तलाश कर रहे हैं एक्सचेंज

दरअसल कई क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज बैंकों और पेमेंट गेटवे से आसान लेन-देन के लिए सोल्यूशन तलाश रहे हैँ। इन एक्सचेंजों को परेशानी तब से आनी शुरू हुई है जब से भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा है कि वह इस तरह के डिजिटल करेंसी के पक्ष में नहीं है। बैंक ने ऐसा डिजिटल करेंसी के फाइनेंशियल स्टेबिलिटी के मद्देनजर कहा था। उसने बैंकों से इस बारे में अपना पक्ष स्पष्ट करने के लिए भी कहा था।

सभी प्रमुख एक्सचेंजों पर ग्राहकों की शिकायतें

सोशल मीडिया और ग्राहकों के मुताबिक, भारत के सभी प्रमुख एक्सचेंजों पर ग्राहकों की शिकायतों की बाढ़ सी आई हुई है। क्योंकि प्रमुख पेमेंट गेटवे कंपनियों ने अपने हाथ पीछे कर लिए हैं। इससे लेन-देन या ट्रांजैक्शन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। भारत के सबसे पुराने क्रिप्टो एक्सचेंजों में से एक जेबपे के को-चीफ एग्जीक्यूटिव अविनाश शेखर ने कहा कि बैंक बिजनेस करने में आनाकानी कर रहे हैं। कहने को तो पेमेंट पार्टनर बहुत सारे हैं पर उनकी प्रोग्रेस बहुत ही धीमी है।

तत्काल सेटलमेंट की ऑफरिंग बंद

जेबपे अब तत्काल सेटलमेंट की ऑफरिंग नहीं कर रहा है। पांच क्रिप्टो एक्सचेंजों के प्रमुखों ने कहा कि छोटे पेमेंट गेटवे के साथ टाई अप करने, उनके खुद के पेमेंट प्रोसेसर का निर्माण करने, तत्काल सेटलमेंट को होल्ड करने या केवल आपस में ट्रांजेक्शन करने के लिए विकल्पों का सहारा लिया जा रहा है। कम से दो एक्सचेंजों ने छोटे पेमेंट प्रोसेसिंग फर्म एयरपे के साथ करार किया है, क्योंकि इसके बड़े पेमेंट फर्मों ने संबंध तोड़ लिए हैं।

1.5 करोड़ निवेशक हैं भारत में

भारत में लगभग 1.5 करोड़ क्रिप्टो निवेशक हैं। इनका अनुसार 100 अरब रुपए से ज्यादा का अनुमानित निवेश है। वजीरएक्स जैसे कुछ क्रिप्टो एक्सचेंजों ने कुछ दिनों में केवल आपसी लेनदेन (peer-to-peer transactions) में ही सीमित रहने का फैसला किया है। अन्य क्रिप्टो कंपनियां जैसे कि वैल्ड, मैनुअल सेटलमेंट के साथ बैंक ट्रांसफर की अनुमति देती हैं। क्योंकि उन्हें ऐसे पेमेंट प्रोसेसर की तलाश होती है जो सेटलमेंट का बैकअप रखते हों।

पेमेंट गेटवे से संबंध तोड़ा

यहां तक कि रेज़रपे, पेयू और बिलडेस्क जैसे प्रमुख पेमेंट गेटवे ने संबंध तोड़ लिए हैं। क्योंकि वे भी लेनदेन को प्रोसेस करने के लिए बैंकों पर निर्भर हैं। बड़े बैंकों ने जब से अपने हाथ खींच लिए हैं तब से वे काफी मुश्किल में पड़ गए हैं। कुछ अन्य, जैसे कि कॉइनस्विच और वजीरएक्स ने तुरंत ट्रांसफर (instant transfers) के लिए मुंबई स्थित पेमेंट प्रोसेसर एयरपे के साथ समझौता किया है।

पेमेंट गेटवे का समर्थन वेंचर कैपिटल फंड कलारी कैपिटल और इनवेस्टर राकेश झुनझुनवाला कर रहे हैं जो क्रिप्टोकरंसी के विरोध में आवाज मुखर करते रहे हैं। छोटे पेमेंट गेटवे लेन-देन के बड़े वोल्युम को प्रोसेस करने में बहुत सफल साबित नहीं हुए हैं। इससे ग्राहकों की शिकायतों की बाढ़ आई है।

छोटे फर्म भी हो रहे हैं दूर

बैंकों से सपोर्ट की कमी का मतलब है कि बड़े समकक्षों की तरह छोटी फर्म भी क्रिप्टो की गतिविधियों से दूर हो रहे हैं। एक भारतीय क्रिप्टो एक्सचेंज के संस्थापक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि छोटे भुगतान प्रोसेसर के साथ साझेदारी अभी तक स्थिर नहीं है। डोमेस्टिक एक्सचेंज बिटबींस के चीफ एग्जिक्यूटिव गौरव दहिया ने कहा कि ये सिर्फ स्टॉप-गैप अरेंजमेंट है और इंडस्ट्री को जिस समस्या का सामना करना पड़ रहा है, उसका उसका समाधान नहीं है।

रिजर्व बैंक द्वारा लगाई गई इस पाबंदी ने काफी मुश्किलें खड़ी कर दी है और ग्राहकों को सिर्फ अपने आपसी (पीयर-टू-पीयर या P2P) लेनदेन के लिए ही मौका छोड़ा है जो खरीदारों और विक्रेताओं को सीधे एंगेज करने की अनुमति देता है।

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