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ओलिंपिक के सूरमा: रियो में जीता टोक्यो का कोटा, तीसरी बार ओलिंपिक खेलेंगे संजीव राजपूत

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यमुनानगरएक घंटा पहलेलेखक: अनिल बंसल

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  • रियो ओलिंपिक में जीता कोटा, दूसरे को दिया पर हिम्मत नहीं हारी

2008 बीजिंग फिर 2012 लंदन ओलिंपिक के बाद संजीव राजपूत ने 2016 रियो ओलिंपिक के लिए भी ओलिंपिक कोटा जीता था, लेकिन उनका कोटा किसी और को दे दिया। तब उन्हें लगा कि उनकी सालों की तपस्या को मिट्टी में मिला दिया गया है, तब कहा गया कि उनकी उम्र हो गई है, अब उनसे नहीं हो पाएगा। वह वक्त काफी बेचैनी बढ़ाने वाला था। इससे उभरते हुए उन्होंने खुद को और मजबूत किया और रियो में ही जाकर विश्व कप में रजत पदक जीता और टोक्यो ओलिंपिक के लिए क्वालीफाई किया।

इस बार कोई सामने नहीं आया और अब 40 साल की उम्र में जगाधरी के संजीव राजपूत अपना तीसरा ओलिंपिक खेलेंगे। संजीव राजपूत का कहना है कि अपने जीवन के अनुभव का निचोड़ इस ओलिंपिक में लगाने की कोशिश है, विश्वास भी है कि देश के लिए मेडल जीतने में कामयाब रहेंगे। वे तकनीक में कोई बदलाव करने के बजाए सुधार में लगे हैं। पिछले दो ओलिंपिक में फाइनल में भी जगह नहीं बना सकने के बावजूद इस बार ज्यादा मेहनत कर फाइनल राउंड के दबाव से निपटने को लेकर तैयारी हो रही है।

पिता ने कहा था- मेरा बेटा ठेला नहीं लगाएगा: संजीव राजपूत के पिता कृष्ण कुमार की आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं थी। आमदनी के लिए खाने का ठेला लगाते थे। एक दिन किसी ने उन्हें टोक दिया था। बेटे को भी सीखा रहे हो क्या, तब ही उन्होंने तय किया, चाहे जो हो संजीव पढ़ेगा और आगे बढ़ेगा। इसी सोच के साथ जगाधरी के एसडी पब्लिक स्कूल में दाखिला कराया था। पढ़ाई के साथ खेलों में आगे रहने वाले संजीव के मन में देशप्रेम की भावना थी। 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के साथ ही नेवी के लिए एग्जाम दिया और कामयाबी हासिल कर ली। पिता कृष्ण कुमार को अब विश्वास हो गया कि बेटा जरूर कामयाब होगा और देश को मेडल दिलाएगा। वे हर आलोचना का जवाब भी श्रेष्ठतम प्रदर्शन से देते हैं।

जल सेना की ट्रेनिंग के दौरान सीखी निशानेबाजी बन गई जीवन
नेवी में भर्ती होने की प्रक्रिया के दौरान प्रारंभिक ट्रेनिंग में बंदूक चलाने का अभ्यास किया तो वे रोमांचित हो उठे। इसके बाद नेवी में जब भी अवसर मिलता, वे ट्रेनिंग करते। अपनी रुचि से उच्च अधिकारियों को अवगत कराया तो उन्होंने इसे खेल के रूप में आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद रुटीन अभ्यास शुरू कर दिया। 3 साल बाद सुखद पल तब आया, जब पाकिस्तान में उन्होंने कमाल किया। तीन मेडल जीते।

इस पर पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने उन्हें बधाई भी दी थी। इस सफलता को मेलबोर्न में हुए राष्ट्रमंडल शूटिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर दोहराया दिया। यह सिलसिला 15 साल बनाए रखा। वर्ल्ड कप में 50 मीटर थ्री पोजीशन राइफल में रजत पदक के साथ ओलिंपिक कोेटा तीसरी बार हासिल किया। इससे पहले 2008 व 2012 में भी वे देश का प्रतिनिधित्व ओलिंपिक में कर चुके हैं।

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