एवरग्रांडे की चिंताएं होंगी कम: दिग्गज रियल एस्टेट कंपनी को राहत देने की तैयारी में चीन; एक्सपर्ट्स का मानना- लेहमैन ब्रदर्स जैसा संकट होने की आशंका कम
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मुंबईएक दिन पहले
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चीन की सबसे बड़ी रियल इस्टेट कंपनियों में से एक एवरग्रांडे के लिए राहत की खबर है। एवरग्रांडे का शेयर फ्रैंकफर्ट स्टॉक एक्सचेंज पर बुधवार को 20% उछाल के साथ कारोबार कर रहा था। ऐसा इसलिए क्योंकि कंपनी ऑनशोर बॉन्ड्स पर ब्याज चुकाने की तैयारी में है।
चीन के शेयर बाजार के साथ ये रियल्टी सेक्टर, इकोनॉमी और दूसरे ग्लोबल बाजारों के लिए राहत की खबर है। हालांकि, कंपनी पर मोटी रकम बकाया है। एवरग्रांडे को 8.35 करोड़ डॉलर का ब्याज मार्च 2022 तक चुकाना है। वहीं, 23 सितंबर 2022 तक इसे 4.75 करोड़ रुपए ब्याज के रूप में चुकाने हैं।
‘टू बिग टू फेल’ की कहानी
चीन समेत कोई भी देश बड़ी कंपनियों को बचाने की हर हाल में कोशिश करता है। यहां तक कि लेहमैन ब्रदर्स को भी अमेरिका में बचाने की भरपूर कोशिश की गई। लेकिन उस समय लेहमैन ब्रदर्स ने स्ट्रेस्ड एसेट्स से जुड़ी शर्त रखी, जिससे बार्कलेज बैंक के साथ डील नहीं हो पाई। 2008 में लेहमैन ब्रदर्स की कुल असेट्स 680 अरब डॉलर थी।
लेहमैन ब्रदर्स और एवरग्रांडे के मामले अलग-अलग हैं। लेहमैन ब्रदर्स बैंक था, जबकि एवरग्रांडे रियल एस्टेट कंपनी। अर्थव्यवस्था में बैंक की अहम भूमिका होती है। ऐसे में बैंक के डूबने का अर्थव्यवस्था पर ज्यादा असर होता है। एवरग्रांडे के साथ ऐसा नहीं है। वहीं, चीन एवरग्रांडे को डूबने से बचाने की पूरी कोशिश कर रहा है। खुद कंपनी भी संकट से निकलने के लिए हाथ पैर मार रही है।
संयोग एक ही तारीख का
लेहमैन ब्रदर्स के डूबने और एवरग्रांडे के संकट में आने की तारीख एक ही है। लेहमैन ब्रदर्स 16 सितंबर 2008 को डिफॉल्ट घोषित हुआ था। एवरग्रांडे के संकट में आने की कहानी भी इसी तारीख से चल रही है।
यह शॉर्ट टर्म का मामला है?
HDFC बैंक के रिसर्च के मुताबिक, यह शॉर्ट टर्म का मामला है और हम अभी भी सावधानी बरत रहे हैं। चीन सरकार इस कंपनी को बेलआउट कर सकती है। रिसर्च में कहा गया है कि चीन के बाजारों में दो दिन की छुट्टी थी। भारतीय समयानुसार जब बुधवार को यहां के शेयर बाजार खुले तो बाजार में गिरावट आई, पर यह अनुमान से कम रही। दरअसल, उम्मीद है कि एवरग्रांडे में चीन का सेंट्रल बैंक (पीपल्स बैंक ऑफ चाइना) कुछ समय के लिए पैसा डाल सकता है।
भारतीय बाजारों के लिए इसका क्या मतलब है?
एवरग्रांडे संकट का भारतीय बाजार पर ज्यादा असर देखने को नहीं मिला है। कैपिटल वाया ग्लोबल रिसर्च के रिसर्च प्रमुख गौरव गर्ग का कहना है कि एवरग्रांडे संकट से दूसरे ग्लोबल बाजारों पर कमजोरी देखने को मिली, लेकिन भारतीय शेयर बाजारों ने 21 सितंबर को अच्छी शुरुआत की।
300 अरब डॉलर का कर्ज
एवरग्रांडे चीन की दूसरी सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी है। इस पर 300 अरब डॉलर का कर्ज है। यह कर्ज चीन की GDP (सकल घरेलू उत्पाद) की तुलना में 2% है। इसके पास 280 शहरों में 1300 प्रोजेक्ट हैं। हाउसिंग के अलावा एवरग्रांडे ने इलेक्ट्रिक व्हीकल, स्पोर्ट्स, थीम पार्क आदि में भी निवेश किया है।
कंपनी का फूड और बेवरेजेस बिजनेस भी है। कंपनी की दिक्कतें तब शुरू हुईं, जब चीन सरकार ने हाउसिंग मार्केट का फायदा उठाने पर कड़क प्रतिबंध लागू कर दिए। इसके अलावा कंस्ट्रक्शन की बढ़ती लागत, सप्लाई की कमी और वैश्विक महंगाई भी कंपनी को संकट में लाने का कारण रही हैं। इससे कंपनी के प्रॉफिट मार्जिन पर बुरा असर देखा गया।
15 लाख अधूरी यूनिट्स
दिसंबर 2020 तक एवरग्रांडे की 15 लाख यूनिट्स अधूरी थी। सितंबर 2020 से अब तक कंपनी का शेयर 85% टूट चुका है। हालांकि, जानकारों की मानें तो अगर कंपनी पूरी तरह से दीवालिया होती है तो इसका असर ग्लोबल बाजारों पर पड़ेगा। ऐसा होने पर शेयर बाजारों में तेज बिकवाली हो सकती है। सबसे ज्यादा असर चीन के ही शेयर बाजार पर दिखेगा।
पेमेंट को लेकर मोलभाव की मंजूरी
चीन के रेगुलेटर्स ने एवरग्रांडे मामले में बकाया को लेकर मोल भाव करने को मंजूरी दे दी है। यानी बैंक और अन्य लेनदारों ने कंपनी को पेमेंट के लिए और समय दिया है। इसी बीच चीन के सेंट्रल बैंक ने 18.6 अरब डॉलर की रकम बैंकिंग सेक्टर में भी डाल दी है, ताकि किसी तरह का संकट आने पर बैंक उससे निपट सकें।
एवरग्रांडे की प्रॉपर्टी सेक्टर में 4% हिस्सेदारी
चीन में बिकने वाली सालाना प्रॉपर्टी में एवरग्रांडे की सिर्फ 4% भागीदारी है। जोखिम तभी ज्यादा बढ़ेगा, जब यहां की दूसरी रियल्टी कंपनियां डिफॉल्ट होती हैं। एवरग्रांडे के बाद यहां की कंट्री गार्डेन पर भी 300 अरब डॉलर की देनदारी है। रियल्टी कंपनियों के डिफॉल्ट होने से घरों की कीमतें कम हो सकती हैं। चीन की अर्थव्यवस्था में रियल इस्टेट सेक्टर का योगदान 29% है। अगर एवरग्रांडे डिफॉल्ट होती है तो चीन की अर्थव्यवस्था की रफ्तार कम हो सकती है। इसी के साथ मेटल की कीमतों पर भी इसका असर पड़ने की आशंका है। मई 2021 के बाद से मेटल की कीमतें 60% गिरकर 100 डॉलर प्रति टन हो गई हैं।
128 बैंकों का कर्ज
एवरग्रांडे के डिफॉल्ट का ज्यादा असर उन देशों पर होगा, जो चीन पर निर्भर हैं। एवरग्रांडे पर 128 बैंकों का कर्ज है। 21 नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों ने भी कर्ज दिया है। HSBC बैंक का 20.69 करोड़ डॉलर का निवेश एवरग्रांडे के बॉन्डस में है। UBS और ब्लैकरॉक ने 27.5 और 37.5 करोड़ डॉलर इसके बॉन्ड में निवेश किया है। एग्रीकल्चर बैंक ऑफ चाइना ने एवरग्रांडे को दिए गए लोन का प्रोविजन कर दिया है। कुछ और बैंक एवरग्रांडे को दिए गए कर्ज को रोल ओवर करने की कोशिश में हैं।
एवरग्रांडे के 2 लाख कर्मचारी
एवरग्रांडे में 2 लाख कर्मचारी कार्यरत हैं। हर साल वह चीन में डायरेक्ट और इनडायरेक्ट 38 लाख रोजगार जनरेट करती है। भारत में स्टील, मेटल और आयरन ओर का निर्माण करने वाली कंपनियां अपना 90% माल चीन को बेचती हैं। इसमें भी एवरग्रांडे सबसे बड़े खरीदारों में से एक है। अगर ये कंपनी डूबी तो चीन और भारत के बीच निर्यात भी प्रभावित होगा।
भारत के स्टील, मेटल और आयरन सेक्टर से जुड़ा है एवरग्रांडे का रिश्ता
भारत में स्टील और आयरन सेक्टर में 25 लाख लोग काम करते हैं। चीन की एक कंपनी का डूबना इनके परिवारों को प्रभावित कर सकता है। वहीं, चीन की जिन कंपनियों ने भारत में निवेश किया है वो भी एवरग्रांडे के डूबने से प्रभावित होंगी।
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