नई दिल्ली17 मिनट पहलेलेखक: राजकिशोर
भारतीय टीम साउथ अफ्रीका में चल रही अंडर-19 विमेंस टी-20 वर्ल्ड कप के फाइनल में पहुंच गई है। उसका खिताबी मुकाबला इंग्लैंड के खिलाफ आज शाम 5:15 बजे से होगा।
इस मुकाबले से पहले पूर्व भारतीय ओपनर वीरेंद्र सहवाग के शहर दिल्ली की श्वेता सहरावत चर्चा का विषय बनी हैं। कारण, उनकी विस्फोटक बल्लेबाजी है। 18 साल की सहरावत को लेडी सहवाग कहा जा रहा है। वे 141 के स्ट्राइक रेट से रन बना रही हैं। उनके बल्ले से 3 हॉफ सेंचुरी निकल चुकी हैं।
वर्ल्ड कप जाने से पहले वे अपने परिवार से कहती थीं कि वर्ल्डकप में गेंदबाजों को तोड़ेगी-फोड़ेगी और धूम मचाएगी। अब वे वैसा ही कर रही हैं। अब तक के आंकड़ें उनके कथन को बयां कर रहे हैं। वे टूर्नामेंट की टॉप स्कोरर हैं।
महिपालपुर की रहने वाली श्वेता के पिता संजय सहरावत बिजनेसमैन हैं। फाइनल से पहले संजय ने दैनिक भास्कर से बातचीत की।
पहले ग्राफिक में देखिए वर्ल्ड कप में श्वेता का प्रदर्शन
पिता बोले- उसे शुरुआत से ही एग्रेसिव खेल पसंद
संजय बताते हैं कि श्वेता वर्ल्डकप में खेलने को लेकर उत्साहित थीं। टीम में चयन के बाद हमेशा परिवार के साथ चर्चा में मजाक में वे कहती थीं कि साउथ अफ्रीका में जाकर वह तोड़ेगी-फोड़ेगी और धूम मचाएगी।
वे कहते हैं कि बेटी के इस प्रदर्शन से खुश हूं। मैं चाहता हूं कि वह फाइनल में भी विस्फोटक पारी खेल कर भारत को अंडर-19 वर्ल्ड कप की पहली चैंपियन बनाने में अहम भूमिका निभाए। संजय कहते हैं कि वह शुरू से ही आक्रामक खेलने में भरोसा करती है। वर्ल्डकप में वह अपने नेचर के अनुरूप ही खेल दिखा रही है।
जिद करके क्रिकेट जगत में रखा कदम
श्वेता की क्रिकेट जर्नी बताते हुए संजय कहते हैं- उनकी बड़ी बहन स्वाति अपने कजन से प्रेरित होकर क्रिकेट खेलने जाती थी। मैं स्वाति को सोनेट क्लब लेकर जाता था। मेरे साथ श्वेता भी जाती थी। तब वह 8 साल की थी। वह हमेशा जिद करती थी कि मैं भी खेलूंगी। शुरुआत में मैंने ध्यान नहीं दिया। बाद में जब स्वाति वसंत कुंज क्रिकेट अकादमी में जाने लगी, तो मैंने श्वेता के ज्यादा जिद करने पर एक बैट और टेनिस बॉल लाकर दिया और वह भी वहां जाने लगी।
यह लड़कों की अकादमी थी। एक दिन कोच ने एक लड़के को श्वेता को टेनिस बॉल से गेंदबाजी करने के लिए कहा। श्वेता ने शानदार शॉट खेला। तब से मेरा ध्यान श्वेता पर गया। उसकी बड़ी बहन स्वाति क्रिकेट छोड़कर बीटेक इंजीनियर बन गईं। जबकि श्वेता का फोकस क्रिकेट पर ही रहा।
क्रिकेट खेलने पर परिवार वालों ने उठाए सवाल
संजय कहते हैं कि बेटियों के क्रिकेट खेलने पर शुरुआत में परिवार वालों ने सवाल उठाए थे, पर मैंने साफ शब्दों में कह दिया कि मेरी बेटियां जो करना चाहती हैं, वह करेंगी। मेरी मर्जी है। मैं भी खेल से जुड़ा रहा हूं। मैं वॉलीबॉल और कबड्डी खेलता था। बाद में जब बेटियां आगे बढ़ने लगी तो परिवार वालों के सवाल भी गायब हो गए।
लड़कों के साथ ट्रेनिंग से हुई बल्लेबाजी शैली हुई आक्रामक
श्वेता के आक्रामक शैली पर संजय कहते हैं कि इसकी सबसे बड़ी वजह अकादमी में लड़कों के साथ ट्रेनिंग करना रहा है। अकादमी में केवल 2 लड़कियां थीं। लगभग 4 साल तक वह लड़कों के साथ खेली और इससे उसका डर खत्म हो गया।
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