फैसला लेने में बुद्धिमानी: विदेशी फंड मैनेजर्स की तुलना में घरेलू फंड मैनेजर्स अच्छा काम कर रहे हैं, शेयरों में निवेश करने में हैं माहिर
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मुंबईएक घंटा पहले
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- ऐसे कई शेयर रहे हैं जिनमें घरेलू फंड हाउसों का एक भी रुपए का निवेश नहीं है
- विदेशी निवेशक और रिटेल निवेशकों ने इस तरह के शेयरों में अच्छा निवेश किया है
देश में वर्षों से चले आ रहे कॉर्पोरेट घोटालों ने देश के फंड मैनेजरों के शेयर चुनने की कला को अब बेहतर मुकाम पर पहुंचा दिया है। ये फंड मैनेजर्स अब लगातार विदेशी फंड मैनेजरों और रिटेल निवेशकों को पछाड़ देने की पोजीशन में आ गए हैं।
कई शेयरों में कॉर्पोरेट गवर्नेंस का मुद्दा रहा है
आंकड़े बताते हैं कि हाल के सालों में ऐसे की शेयर रहे हैं जिनमें कॉर्पोरेट गवर्नेंस का मुद्दा सामने आया है। इन शेयरों की कीमतों में भारी गिरावट आई। साथ ही कई शेयरों में अब कारोबार भी बंद हो गए हैं। विदेशी निवेशकों की तुलना में घरेलू फंड हाउस सतर्कता के साथ निवेश करते हैं। इसलिए वे इस तरह के शेयरों में डूबने से बच गए हैं।
घरेलू फंड मैनेजर ज्यादा रिसर्च करते हैं
स्थानीय फंड मैनेजर नुकसान से बचने के लिए कंपनियों, सरकार और आर्थिक माहौल के ज्ञान का इस्तेमाल करने में ज्यादा माहिर हो गए हैं। एक विश्लेषक ने बताया कि पिछले गवर्नेंस में सामने आए मुद्दों के अनुभव से पता चलता है कि घरेलू म्यूचुअल फंडस ने विदेशी साथियों की तुलना में बेहतर शेयरों में निवेश किया है।
मिड और स्मॉल कैप में ज्यादा निवेश
उन्होंने कहा विदेशियों की तुलना में मिड और स्मॉल कैप में लोकल फंड हाउस का ज्यादा एक्सपोजर है। एसएंडपी बीएसई स्मॉल कैप इंडेक्स 2019 के अंत से इस समय 92% ऊपर है। यह एसएंडपी बीएसई सेंसेक्स की तुलना में करीबन तीन गुना ज्यादा भाव पर कारोबार कर रहा है। घरेलू फंड मैनजरों की पसंद भारत के खुदरा निवेशकों की भी तुलना में बेहतर रही है। खासकर महामारी के दौरान इनके प्रदर्शन में काफी सुधर आया है।
12 वर्षों में 16% की चक्रवृद्धि दर से बढ़े हैं शेयर
आंकड़े बताते हैं कि भारतीय म्यूचुअल फंड के ओनरशिप वाले स्टॉक्स पिछले 12 वर्षों में 16% की चक्रवृद्धि दर से बढ़े हैं। खराब माने जाने वाले शेयरों में कॉक्स एंड किंग्स में अगस्त 2019 में कॉर्पोरेट गवर्नेंस का मामला सामने आया था। उस समय तक घरेलू फंड हाउस का इसमें कोई निवेश नहीं था। जबकि विदेशी निवेशकों की होल्डिंग इसमें 77% थी। रिटेल निवेशकों की होल्डिंग 10% थी।
इंडिया बुल्स हाउसिंग फाइनेंस में भी मामला सामने आया था
इसी तरह इंडिया बुल्स हाउसिंग फाइनेंस में जुलाई 2019 में कॉर्पोरेट गवर्नेंस का मामला सामने आया। उस समय भारतीय फंड हाउसों की होल्डिंग केवल 4% इसमें थी। जबकि विदेशी निवेशकों की 70% और रिटेल निवेशक की 6% होल्डिंग थी। दीवान हाउसिंग फाइनेंस का मामला जनवरी 2019 में सामने आया था। इसमें उस समय घरेलू फंड हाउसों के पास 5% शेयर थे जबकि विदेशी निवेशकों के पास 30 और रिटेल निवेशकों के पास 23% शेयर थे।
जी लर्न में 2019 में मामला सामने आया था
जी लर्न का मामला भी जनवरी 2019 में सामने आया था। इसमें घरेलू फंड हाउसों का निवेश जीरो था, जबकि विदेशी निवेशकों का निवेश 57 और रिटेल का निवेश 26% था। यस बैंक में घरेलू फंड हाउसों का निवेश 14% था। विदेशी निवेशकों की होल्डिंग 53 और रिटेल की होल्डिंग 11% थी। यह नवंबर 2018 में सामने आया था।
मनपसंद बेवरेजेस में भी फंसे विदेशी निवेशक
मनपसंद बेवरेजेस का मामला मई 2018 में सामने आया था। इसमें घरेलू फंड हाउसों का निवेश 21% था जबकि विदेशी निवेशकों का निवेश 39% और रिटेल का निवेश केवल 5% था। पीसी ज्वेलर्स में घरेलू फंड हाउसों का केवल 2% निवेश था जबकि विदेशी निवेशकों का 77% निवेश था। रिटेल निवेशकों के पास इसमें 6% शेयर था। वक्रांगी का शेयर आज 19% ऊपर है। हालांकि इसमें भी फरवरी 2018 में कॉर्पोरेट गवर्नेंस का मामला सामने आया था। इसमें घरेलू फंड हाउसों के पास कोई शेयर नहीं था। विदेशी निवेशकों के पास 35% शेयर जबकि रिटेल के पास 15% शेयर था।
बैंकों के पैसे लेकर विदेश भागे गीतांजलि जेम्स के मेहुल चौकसी का मामला फरवरी 2018 में सामने आया था। इसमें घरेलू फंड हाउसों के पास एक भी शेयर नहीं था जबकि विदेशी निवेशकों के पास 8 और रिटेल निवेशकों के पास 43% हिस्सेदारी थी। ट्री हाउस एजुकेशन में भी घरेलू फंड हाउसों ने कोई पैसा नहीं लगाया। पर विदेशी निवेशकों ने 15% और रिटेल निवेशकों ने 35% का निवेश इसमें किया था।
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