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कोल शॉर्टेज: बीते सालों में भी देश में कोयले की कमी देखी गई, जानिए भारत समेत पूरी दुनिया में कितना कोल प्रोडक्शन किया जाता है

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नई दिल्ली14 मिनट पहले

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भारत कोयले की कमी का सामना कर रहा है। कोयले से चलने वाले ज्यादातर पावर प्लांट के पास कुछ ही दिनों का स्टॉक बचा है। सेंट्रल इलैक्ट्रिसिटी अथॉरिटी ऑफ इंडिया के आंकड़ों से पता चलता है कि बीते सालों में भी सितंबर-अक्टूबर के महीनों में कोयले की कमी आई थी। तब भी कोयले का रिजर्व स्टॉक कुछ ही दिनों का बचा था। हालांकि इस कमी का बिजली उत्पादन पर ज्यादा प्रभाव देखने को नहीं मिला था। इस बार भी सरकार की तरफ से आश्वस्त किया गया है कि पावर प्लांट के पास कोयले का स्टॉक मौजूद है।

सरकार की तरफ से कहा गया है कि थर्मल पावर प्लांट (TPP) में 11 अक्टूबर को उपलब्ध स्टॉक 7.3 मिलियन टन (MT) था, जो चार दिनों के लिए पर्याप्त है। अगले 4-5 दिनों में 1.94 MT की मांग के मुकाबले 1.5 MT से 2 MT कोयला पावर स्टेशनों तक पहुंच जाएगा। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि देश में चल रही कोयले की कमी की खबरें बिल्कुल निराधार हैं। भारत एक पावर सरप्लस देश है।

इससे पहले केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा था, ‘हमने अपनी सप्लाई बकाया के बाद भी जारी रखी है। हम राज्यों से स्टॉक बढ़ाने का अनुरोध कर रहे हैं… कोयले की कमी नहीं होगी।’ उन्होंने कहा, ‘बारिश के कारण कोयले की कमी हो गई है, जिससे अंतरराष्ट्रीय कीमतें 60 रुपये प्रति टन से बढ़कर 190 रुपये प्रति टन पहुंच गईं। इसके घरेलू कोयले पर दबाव बढ़ा है।’

ऐसे में हम आपको बताने जा रहे हैं कि देश में पहले कब कोयले की कमी देखी गई थी। देश और दुनिया में कोल प्रोडक्शन की क्या स्थिति है? भारत कितना और किस क्वालिटी का कोल इम्पोर्ट करता है:

भारत के कोयला उत्पादन में सितंबर में 30.93% की ग्रोथ
coal.gov.in के प्रोविजनल डेटा के अनुसार दुनिया के दूसरे सबसे बड़े कोयला उत्पादक देश भारत ने सितंबर 2021 में 2019 के 39.48 मिलियन टन (MT) की तुलना में 51.70 MT कोयले का उत्पादन किया। ये 30.93% की ग्रोथ है। 2020 के 38.9 मिलियन टन (MT) से इसकी तुलना करें तो ये 33% की ग्रोथ है। अप्रैल 2021 से सितंबर 2021 की अवधि की बात करें तो इस दौरान भारत के कोयला उत्पादन में पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 12% की बढ़ोतरी देखी गई। 2019 की तुलना में ये बढ़ोतरी 5.5% की है। प्रोविजनल डेटा के अनुसार भारत ने साल 2020-21 में 716 MT कोयले का उत्पादन किया था, जो कि साल 2019 की तुलना में करीब 15 MT कम था।

2020 में वर्ल्ड कोल प्रोडक्शन में 4.8% की कमी
इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (IEA) के डेटा के मुताबिक तीन साल की बढ़ोतरी के बाद, साल 2020 में वर्ल्ड कोल प्रोडक्शन में 4.8% की कमी आई थी। दुनिया का सबसे बड़ा कोयला उत्पादक देश चीन ही ऐसा था जिसने 2020 में 2019 की तुलना में कोयले का उत्पादन बढ़ाया। डेटा के मुताबिक चीन ने साल 2020 में 3764 मिलियन टन (MT) कोयले का उत्पादन किया। 2019 की तुलना में ये 1.1% ज्यादा था। 2019 में चीन ने 3724 MT कोयले का उत्पादन किया था। वहीं भारत ने साल 2020 में 760 MT कोयले का उत्पादन किया।

कोयले की डिमांड
कोयले के दो मुख्य उपयोग है, बिजली उत्पादन और इस्पात निर्माण। पिछले 20 वर्षों में चीन की शानदार इकोनॉमिक ग्रोथ और इंडिया में इलैक्ट्रिफिकेशन का एक्सपेंशन मुख्य रूप से कोयले पर आधारित था। 2020 में, कोयले से चीन में 63% और भारत में 72% बिजली का उत्पादन हुआ। वर्तमान में कोयले की डिमांड की बात करें तो भारत के पावर प्लांटों में कोल की डिलीवरी 60,000 से 80,000 टन प्रतिदिन कम हो रही है। अप्रैल से सितंबर 2021 की छह महीने की अवधि में भारत में कोयले का उत्पादन पिछले साल की समान अवधि के 282 MT से बढ़कर 315 MT हो गया है, जो लगभग 12 प्रतिशत की बढ़ोतरी दिखाता है। इसके बावजूद भारत में कोल की डिमांड पूरी नहीं हो पा रही है।

2020 में ग्लोबल डिमांड में 4% की गिरावट
IEA के अनुसार, 2020 में कोयले की ग्लोबल डिमांड में 4% की गिरावट आई थी। सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद यह सबसे बड़ी गिरावट थी। गिरावट का मुख्य कारण कोविड-19 के कारण लगाया गया लॉकडाउन था जिसने बिजली की मांग को कम कर दिया था। हालांकि चीन इकलौता ऐसा देश था जहां 2020 में कोयले की मांग बढ़ी थी। IEA ने ये भी कहा था कि 2021 में, हम आर्थिक गतिविधियों में सुधार की उम्मीद के साथ कोयले की ग्लोबल डिमांड में 2020 की तुलना में 4.5% की बढ़ोतरी की उम्मीद कर रहे हैं।

कोयले की खपत
पूरी दुनिया में कोयले की सबसे ज्यादा खपत भारत और चीन में होती है। yearbook.enerdata.net के मुताबिक साल 2020 में चीन 3,830 MT कोयले की खपत के साथ पहले नंबर पर रहा। वहीं भारत ने 976 MT कोयले की खपत की और दूसरे नंबर पर रहा। तीसरे नंबर अमेरिका था जहां कोयले की खपत 419 MT रही।

भारत में कोयले का इंपोर्ट
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोल इंपोर्टर है। इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रीका और अमेरिका जैसे देशों से भारत कोयले का इम्पोर्ट करता है। 2020-21 के दौरान, भारत में कोयले और कोक का कुल इम्पोर्ट 215.92 MT था। FY20 की तुलना में यह लगभग 12.6% कम था। FY20 में 247.10 MT कोयले का इम्पोर्ट किया गया था। वहीं कमोडिटी कंसल्टेंट केप्लर के आंकड़ों से पता चलता हैं कि जून के बाद से भारत के कोल इम्पोर्ट में कमी आई है।

4 अक्टूबर से शुरू हुए हफ्ते में केप्लर ने भारत के थर्मल कोल के इंपोर्ट का आकलन 2.67 मिलियन टन किया था। यह इस साल के सबसे लोएस्ट वीक से ज्यादा है। इस साल का लोएस्ट वीक 13 सितंबर से शुरू हुआ वीक रहा था, जिसमें इंपोर्ट सिर्फ 1.46 MT था। कोल इम्पोर्ट में इस साल के सबसे मजबूत वीक की बात करें तो यह 3 मई से शुरू हुआ वीक था, जिसमें इंपोर्ट 3.83 मिलियन था।

चीन में कोयले का इम्पोर्ट
fitchratings.com की रिपोर्ट के अनुसार चीन का 2020 में कोल इंपोर्ट 1.4% बढ़कर 304 मिलियन टन हो गया था, जो 2014 के बाद सबसे अधिक था। वहीं केप्लर की रिपोर्ट के अनुसार, 4 अक्टूबर से शुरू हुए हफ्ते में चीन का थर्मल कोल इंपोर्ट 3.29 मिलियन टन था।

चीन और भारत दोनों की देश अपने कोल इम्पोर्ट नहीं बढ़ा रहे हैं इसका प्रमुख कारण ग्लोबल एनर्जी क्रंच है जिसकी वजह से कोल के प्राइज रिकॉर्ड हाई पर पहुंच गए हैं। चीन की इकोनॉमिक प्लानिंग एजेंसी ने कहा कि देश कोयले के इम्पोर्ट में धीरे-धीरे बढ़ोतरी करेगा।

कोयले की क्वालिटी
कोयला मुख्य रूप से कार्बन से बना है। यह मिट्टी के नीचे दबे पौधे के अवशेषों पर पड़े जियोलॉजिकल प्रेशर से लाखों वर्षों में बनता है। हमारे देश में कोयले के भंडार की हीट वैल्यू (ग्रॉस कैलोरिफिक वैल्यू में मापी जाती है) अंतरराष्ट्रीय कोयला भंडार की तुलना में कम है। यूनाइटेड स्टेट्स जियोलॉजिकल सर्वे के अनुसार कोयले के मुख्य रूप से चार प्रकार है। एन्थ्रेसाइट, बिटुमिनस, सबबिटुमिनस और लिग्नाइट। पावर प्लांट में बिजली के उत्पादन के लिए सबसे ज्यादा बिटुमिनस और सबबिटुमिनस कोल का इंपोर्ट किया जाता है। भारत भी बिजली उत्पादन के लिए इसी कोल का इंपोर्ट करता है।

कैलोरिफिक वैल्यू के हिसाब से भी कोयले की ग्रेडिंग की जाती है। कैलोरिफिक वैल्यू यानी एक किलो कोयले को जलाने पर जितनी ऊर्जा पैदा होती है। कैलोरिफिक वैल्यू जितनी ज्यादा होगी, कोयले की क्वालिटी भी उतनी ही बढ़िया होगी।

1. एन्थ्रेसाइट:
यह कोयले का हाईएस्ट ग्रेड है जिसमें फिक्स्ड कार्बन का हाई परसेंटेज होता है। यह हार्ड, ब्रिटल, ब्लैक और चमकदार होता है। इसमें 80% से ज्यादा कार्बन कंटेंट होता है। यह जम्मू और कश्मीर के क्षेत्रों में कम मात्रा में पाया जाता है।

2. बिटुमिनस:
यह मीडियम ग्रेड का कोयला है जिसकी हीटिंग कैपेसिटी हाई होती है। यह भारत में बिजली उत्पादन के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला कोयला है। अधिकांश बिटुमिनस कोयला झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में पाया जाता है।

3. सबबिटुमिनस
यह काले रंग का होता है लेकिन चमकदार नहीं होता। सबबिटुमिनस कोयले की लो-टू-मॉडरेट हीटिंग वैल्यू होती है। इसका उपयोग भी बिजली उत्पादन में किया जाता है।

4. लिग्नाइट:
यह लोएस्ट ग्रेड कोल है। इसमें सबसे कम कार्बन कंटेंट होता है। यह राजस्थान, तमिलनाडु और जम्मू और कश्मीर के क्षेत्रों में पाया जाता है।

देश में पहले भी कोयले की कमी देखी गई
सेंट्रल इलैक्ट्रिसिटी अथॉरिटी ऑफ इंडिया के आंकड़ों से पता चलता है कि बीते सालों में भी सितंबर-अक्टूबर के महीनों में कोयले की कमी देखी गई थी। तब भी कोयले का रिजर्व स्टॉक कुछ ही दिनों का बचा था। एक्सपर्ट्स के मुताबिक कोयले की सप्लाई बाधित होने की एक वजह खदान वाले इलाकों में भारी बारिश है। यहां हम आपको ये भी बता दें कि कोयले की रेगुलर सप्लाई बाधित होने पर रिजर्व स्टॉक का इस्तेमाल किया जाता है।

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