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कंधे की चोट से उबरकर की वापसी: अजय बचपन में उठाते थे लोहे की भारी रॉड, कॉमनवेल्थ 2022 में हाथ से छिटका मेडल

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बर्मिंघम3 मिनट पहले

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वेटलिफ्टिंग के सितारे अजय सिंह लंबे वक्त से इंटरनेशनल टूर्नामेंट्स में भारत की उम्मीद रहे हैं। हालांकि कॉमनवेल्थ 2022 में वेटलिफ्टिंग के मेंस 81KG वेट कैटेगरी में भारत के अजय सिंह मेडल जीतने से चूक गए हैं। उन्होंने स्नैच और क्लीन एंड जर्क मिलाकर 319 KG वेट उठाया और चौथे स्थान पर रहे।

अजय ने स्नैच के पहले प्रयास में 138 KG, दूसरे में 140 KG और तीसरे में 143 KG का वजन उठाया। वहीं, क्लीन एंड जर्क में उन्होंने 172 और 176 KG वेट उठाया। तीसरा प्रयास विफल रहा।

अजय पहले 600 मीटर दौड़ में स्प्रिंटर थे। 2010 में उन्हें शरीर की बनावट के आधार पर वेटलिफ्टिंग की सलाह दी गई। बस, यहीं से उनकी जिंदगी बदल गई।

झुंझुनू, राजस्थान के लाल अजय सिंह ने 2021 में ताशकंद में आयोजित कॉमनवेल्थ वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर पूरे देश का मान बढ़ाया था। अजय सिंह ने ये कारनामा तीसरी बार किया था। 2020 में अजय का कंधा बुरी तरह चोटिल हो गया था। उस वक्त 1 साल तक बिस्तर पर रहने के बाद अजय ने जोरदार वापसी की थी।

पिता को बचपन से था बेटे के गोल्ड जीतने का यकीन
अजय के वेटलिफ्टर बनने और कॉमनवेल्थ में मेडल जीतने के पीछे संघर्ष की एक लंबी दास्तां है। खड़ोत गांव के एक्स आर्मी मैन धर्मपाल सिंह ने भास्कर को पहले दिए इंटरव्यू में बताया था कि उनके बेटे अजय ने 9 साल की उम्र में ही लोहे की रॉड से वेट उठाना शुरू कर दिया था। इसे देखते हुए अजय के पिता अपने रिश्तेदारों को पहले से ही कहना शुरू कर दिया था कि एक दिन बेटा बड़ा नाम करेगा। देश के लिए गोल्ड मेडल जीतकर लाएगा।

धर्मपाल सिंह ने बताया था कि बेटे को निखारने में स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI) का सबसे बड़ा योगदान है। अजय की इंटरनेशनल वेटलिफ्टर बनने की कहानी आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट पुणे से शुरू हुई। 2008 से 2014 तक अजय सिंह ने वेटलिफ्टिंग के स्थानीय कॉम्पिटिशन खेले। साल 2014 में स्टेट लेवल खेलना शुरू कर दिया था। अजय सिंह की मेहनत रंग लाई और 2015 कॉमनवेल्थ गेम्स में पहला सिल्वर मेडल जीता। वेटलिफ्टिंग में अजय का मेडल जीतने का सिलसिला शुरू हो चुका था।

बहन से किया वादा निभाया
करियर के बडे इम्तिहान के लिए अजय अपनी बहन की शादी तक अटेंड नहीं कर पाए। उनकी बड़ी बहन भारती कंवर की शादी 6 दिसम्बर, 2021 को थी, लेकिन उससे पहले ही ताशकंद कॉमनवेल्थ वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में भाग लेने के लिए अजय को जाना पड़ा। जाने से पहले अजय ने बहन को विदेशी गिफ्ट देने का वादा किया था। तब बड़ी बहन ने भी शादी में न आने पर गोल्ड मेडल जीतने की शर्त रख दी।

जैसे ही अजय सिंह ने ताशकन्द में 81 किलोग्राम भार वर्ग में गोल्ड मेडल जीता तो टीवी स्क्रीन पर मैच देख रही बहन और पूरा परिवार खुशी से झूम उठा था। गोल्ड जीत कर अजय ने बहन के सपने को पूरा कर अपना वादा निभाया।

लगातार कॉम्पिटिशन से हुई इंजरी
लगातार कॉम्पिटिशन खेलने से अजय की 20 जून 2020 को शोल्डर इंजरी हो गई। अजय का मुंबई में 1 साल तक लंबा इलाज चला। इस दौरान अजय को लगने लगा था कि वह दोबारा वेटलिफ्टिंग नहीं कर पाएंगे, लेकिन इंडियन वेटलिफ्टिंग फेडरेशन के सेक्रेटरी सहदेव यादव, नेशनल कोच विजय शर्मा और सेना के कोच इकबाल सिंह ने अजय की मदद की।

हार्ड ट्रेनिंग के बाद अजय की फॉर्म में वापसी हुई। आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट के कमांडेंट कर्नल राकेश यादव ने अजय की ट्रेनिंग की मॉनिटरिंग की। अजय ने इस दौरान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स (NIS) कैंप में हार्ड ट्रेनिंग से पुरानी फॉर्म को प्राप्त किया।

बिपिन रावत ने किया था अजय को सम्मानित
फरवरी 2016 में साउथ एशियन गेम्स में अजय ने पहला गोल्ड मेडल जीता। वहीं अगस्त 2016 में मलेशिया में आयोजित कॉमनवेल्थ वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में अजय ने गोल्ड मेडल जीता। जुलाई 2017 में वाशिंगटन के गोल्ड कोस्ट में वेटलिफ्टिंग का गोल्ड मेडल जीता। 2017 अक्टूबर में नेपाल में आयोजित एशियन चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल जीता।

लगातार मिलती सफलता के बाद उस वक्त के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत ने अजय को प्रशंसा पत्र देकर सम्मानित किया था।

लगातार मिलती सफलता के बाद उस वक्त के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत ने अजय को प्रशंसा पत्र देकर सम्मानित किया था।

अगस्त 2018 में एशियन गेम्स में अजय ने पांचवी पोजीशन प्राप्त की। यह अजय का देश में आजादी के बाद से उस वक्त तक का रिकॉर्ड था। इसके बाद दिसंबर 2019 में काठमांडू में आयोजित साउथ एशियन गेम्स में उन्होंने सिल्वर मेडल अपने नाम किया। लगातार मिलती सफलता के चलते चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत ने भी अजय को प्रशंसा पत्र देकर सम्मानित किया था।

दोस्त बुलाते हैं हॉर्स पावर, मीरा बाई चानू है आइडल
अजय वेटलिफ्टर मीराबाई चानू को अपना आइडियल मानते हैं। उनके ओलिंपिक में जाने का मिशन आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट, पुणे से शुरू हुआ था। जहां अजय की मेहनत और कड़ी ट्रेनिंग को देखकर दोस्त उन्हें ‘हॉर्स पावर’ के नाम से पुकारने लगे।

सेना में नौकरी, कई ऑफर ठुकराए
2015 में अजय सिंह की राजपूताना राइफल में डायरेक्ट हवलदार के पद पर स्पोर्ट्स कोटे से एंट्री हुई। इस दौरान अजय ने अपने पिता के साथ आर्मी की 21वीं राजपूताना राइफल्स रेजिमेंट में नौकरी की। वेटलिफ्टिंग में सक्सेस को देख राजस्थान पुलिस, रेलवे और बैंक ऑफ इंडिया ने भी नौकरी का ऑफर दिया था। मगर आर्मी से लगाव के चलते अजय ने दोनों नौकरी ठुकरा दी।

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